नया इंडिया, 23 नवंबर 2013: ‘आप’ पार्टी के कुछ उम्मीदवार रंगे हाथ पकड़े गए। आपको धक्का लगा होगा। मुझे तो ज़रा भी आश्चर्य नहीं हुआ। असली आश्चर्य हुआ होगा, अरविंद केजरीवाल को। और धक्का तो पूरी पार्टी को ही लगेगा। ऐन चुनाव के वक्त पूरे गुब्बारे की हवा निकल गई। अब किस दम पर अरविंद दावा करेगा कि हम भाजपा और कांग्रेस से अलग हैं? आप घोषणा-पत्र अलग निकाल सकते हैं। अपने ढंग का अनूठा बना सकते हैं। प्रचार-अभियान में सादगी और सच्चाई ला सकते हैं। पार्टी को जो पैसे मिलते हैं, उनका हिसाब बिल्कुल पाक-साफ रख सकते हैं लेकिन असली सवाल तो मनुष्यों का है, कार्यकर्ताओं का है, नेताओं का है? आप कैसे गारंटी करेंगे कि वे पाक-साफ होंगे? इन्हीं के दम पर आप चुनाव लड़ेंगे और जीत गए तो सरकार बनाएंगे। ये ही लोग घोषणा-पत्र लागू करेंगे। अब ‘आप’ का सिक्का ही खोटा निकल गया तो आपकी दुकान चलेगी कैसे?
‘आप’ पार्टी के नये और मामूली कार्यकर्ता ही नहीं, आंदोलन के ज़माने से स्तंभ माने जानेवाले लोग भी रिश्वत लेने, दलाली करने, काला धन पटाने, मतदान-केंद्र कब्जाने, ब्लेकमेल करने और अय्याश सुविधाएं लेने से गुरेज नहीं करते पाए गए। ‘आप’ के इन नेताओं और कार्यकत्ताओं में दूसरे दलों से ज़रा-भी फर्क नहीं दिखा। सिर्फ देवली का एक उम्मीदवार प्रकाश ऐसा निकला, जिसने ‘स्टिंग आपरेशन’ वालों को बोल दिया कि वह कोई भी गैर-कानूनी काम नहीं करेगा। लेकिन उसने भी एक बम फोड़ दिया। उसने कह दिया कि ‘रिश्वत, दलाली, काला धन की बात हम उम्मीदवारों से क्यों करते हो? हम तो कठपुतलियां (डमी) हैं। अरविंद से पूछो’ हो सकता है कि प्रकाश सबसे चालाक उम्मीदवार हो। उसे शक हो गया होगा कि ये ‘स्टिंग’ वाले लोग कहीं अरविंद के भिजवाए हुए तो नहीं हैं?
अरविंद को अब पता चलेगा कि आंदोलन का मार्ग छोड़कर पार्टी का मार्ग अपनाने के खामियाज़े क्या-क्या हैं? बाबा रामदेव को पार्टी नहीं बनाने की सलाह मैंने क्यों दी थी, यह अरविंद को अब पता चल रहा है। देश के किसी भी नेता से ज्यादा भीड़ रामदेवजी की सभाओं में आती है। पार्टी बनाना उनके बाएं हाथ का खेल था। बाबा रामदेव के मुकाबले अन्ना और अरविंद के अनुयायी देश में पांच प्रतिशत भी नहीं हैं। फिर भी उन्होंने पार्टी बना डाली। अन्ना की तरह रणछोड़दास बनने से यह बेहतर था लेकिन यही एक मात्र रास्ता नहीं था। आज भारत में राजनीति करने का एकमात्र लक्ष्य पैसा बनाना है और अपने अहंकार को पुष्ट करते रहना है। सेवा ओर परिवर्तन तो कहने की बाते हैं। ‘आप’ के लिए अभी तो ये इब्तिदा-ए-इश्क है, रोता है क्या? आगे-आगे देखिए, होता है क्या?? अभी तो आपस में जूतम-पैजार होगा, फूट पड़ेगी, इस्तीफे होंगे, एक-दूसरे के भंडाफोड़ होंगे, जो दाल इकट्ठी हुई है, वह जूतों में बंटेगी। ‘आप’ के लोग अन्य राजनीतिकों से भी अधिक भ्रष्ट हो जाएंगे। अरविंद जैसे आदर्शवादी जवान घोर हताशा में डूब जाएंगे। इस ‘स्टिंग आपरेशन’ ने अरविंद के पुनर्जन्म का रास्ता खोल दिया है। वह चाहे तो इस पार्टी को आज ही भंग कर दे और दुबारा बड़े आंदोलन का संकल्प कर ले। आज देश को एक महान और बुनियादी आंदोलन की जरुरत है, सत्ता की पालकी ढोनेवाले कहारों की नहीं। आठ-दस उम्मीदवारों को हटा देने से कहारों के जुलूस में कोई कमी नहीं होनेवाली है।
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