नया इंडिया, 17 अक्टूबर 2013 : दिल्ली के बारे में हो रहे चुनाव-पूर्व सर्वेक्षणों के नतीजे काफी चौंकाने वाले हैं। इन नतीज़ों को हम अनुमान भी कह सकते हैं, क्योंकि कई बार इस तरह के सर्वेक्षण बुरी तरह से गलत साबित होते हैं। इन अंदाजी घोड़ों को दौड़ाए रखने के लिए कई बार पार्टियां और उम्मीदवार सइसों को काफी जबर्दस्त घास भी डालती हैं। जो भी हो, आजकल जो सर्वेक्षण आ रहे हैं, उनके मुताबिक दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 22, भाजपा को 24 और आम आदमी पार्टी को 18 सीटें मिलने की उम्मीद है। कांग्रेस और भाजपा के बारे में सर्वेक्षण का अनुमान सही हो सकता है, हालांकि दिल्ली की जनता शीला दीक्षित से नाराज़ दिखाई नहीं पड़ती लेकिन यह हो सकता है कि दिल्ली में भी मोदी का जादू चल पड़ा हो।
यों तो भाजपा में नेतृत्व का संकट उसकी छवि को मंद कर रहा है। रोज ही भाजपा के संभावित मुख्यमंत्री के लिए किसी एक नए नाम की चर्चा होने लगती है। इसके अलावा राजनीतिक पर्यवेक्षक यह मानकर चल रहे हैं कि अरविंद केजरीवाल की पार्टी सबसे ज्यादा नुकसान भाजपा को ही पहुंचाएगी, क्योंकि भाजपा को मिलने वाले असंतुष्ट कांग्रेसी वोट अब आम आदमी पार्टी खींच ले जाएगी लेकिन अब एक नया प्रपंच दिखाई पड़ने लगा है। वह यह कि सर्वेक्षणों में अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री के लिए सबसे अधिक लोकप्रिय उम्मीदवार बन गए हैं। याने अब उनकी पार्टी कांग्रेस के वोट भी अपनी तरफ खींचेगी! साधारण मतदाता अब यह सोच सकता है कि यदि उसने आम आदमी पार्टी को वोट दिया तो उसका वोट बेकार नहीं जाएगा। शायद केजरीवाल ही मुख्यमंत्री बन जाए। चुनाव की घड़ी आते-आते यदि यह भाव व्यापक हो गया तो कोई आश्चर्य नहीं कि आम आदमी पार्टी सरकार बनाने की स्थिति में आ जाए। अगर ऐसा न भी हो और ताज़ा सर्वेक्षण सही निकले तो भी ‘आप’ के बिना दिल्ली में सरकार बन नहीं सकती। यह कम बड़ा चमत्कार नहीं है।
इसका कारण क्या हो सकता है? यही कि लोग देश में नए और निष्कलंक चेहरे देखना चाहते हैं। वे नेताओं से ऊब चुके हैं, चाहे वे किसी भी पार्टी के हों। ‘आप’ के युवा नेताओं ने इतने कम समय में इतनी हवा बना ली, यह छोटी-मोटी उपलब्धि नहीं है। अगर वे किसी भी रुप में सत्ता में आ गए और उन्होंने अपने वादों के मुताबिक कुछ ठोस करके दिखा दिया तो सारे देश में उनकी हवा बहने में देर नहीं लगेगी। मान लें कि उन्हें 5-10 सीटें ही मिलीं तो ये भी 50 के बराबर मानी जाएंगी, क्योंकि ‘आप’ के निष्कलंक नेता अपना चुनाव बहुत ही स्वच्छ तरीके से लड़ रहे हैं। उनके पीछे करोड़ों-अरबों का काला धन काम नहीं कर रहा है। वे आम जनता के पैसों से चुनाव लड़ रहे हैं। उनकी हर बात पारदर्शी है। वे हारें या जीतें, उनका राजनीति में होना ही हमारे लोकतंत्र की शक्ति है।
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