नया इंडिया, 06 फरवरी 2014: लगता है, कांग्रेस के महामंत्री जनार्दन द्विवेदी की कुंडलिनी जागृत हो गई है। इस उम्र में आकर अब उन्हें सच बोलने की हिम्मत आ गई है। कहते हैं कि ‘इश्के-बुतां में जिंदगी गुजर गई मोमिन! अब आखिरी वक्त क्या खाक मुसलमां होंगे?’ लेकिन वे अब ईमान की बात बोल रहे हैं तो उनका स्वागत होना चाहिए। जब वे नौजवान थे तो अक्सर डॉ. राममनोहर लोहिया और राजनारायणजी के घर पर उनसे भेंट हो जाया करती थी। उस वक्त हम लोग जात तोड़ो, अंग्रेजी हटाओ, भारत-पाक एका जैसे आंदोलन चलाया करते थे।
अब भाई जनार्दन ने देश की सबसे बड़ी पार्टी के महामंत्री रहते हुए गजब की बात कह दी है। उन्होंने कहा कि जातीय आधार पर चल रहा आरक्षण खत्म किया जाना चाहिए। अभी तक देश में कोई नेता ऐसा कहने की हिम्मत भी नहीं करता था, क्योंकि आरक्षण से करोड़ों आरक्षितों को कोई फायदा मिले या नहीं राजनीतिक दलों के लिए वह कामधेनु गाय सिद्ध हो रहा था। थोकबंद वोट कबाड़ने का यह सबसे बड़ा धंधा है। यदि आरक्षण खत्म हो जाए तो ज्यादातर नेताओं की दुकानों पर ताले पड़ जाएं। बहुत-से क्षेत्रीय दल स्वर्गवासी हो जाएं। आरक्षण के कारण उन लोगों में भी जातिवाद पनपता है, जिनका आरक्षण से कुछ लेना-देना नहीं है।
इस देश में सामाजिक और आर्थिक अन्याय का सबसे बड़ा स्त्रोत जातिवाद ही है। डा. लोहिया ने पिछड़ों को ‘विशेष अवसर’ याने आरक्षण देने का सिद्धांत इसीलिए गढ़ा था कि वे अगड़ों के बराबर हो जाएं और जातियां टूट जाएं। रोटी और बेटी व्यवहार खुलकर हो। लेकिन हुआ क्या? अब पिछड़ों और अनुसूचितों में ‘मलाईदार पर्तें’ पैदा हो गई हैं। आरक्षण से उपजे विशेष अवसरों पर वे कब्जा कर लेती है। करोड़ों अन्यायग्रस्त गरीब, ग्रामीण, पिछड़े लोग सिर्फ ताकते हुए रह जाते हैं। विषमता बढ़ती जाती है।
इसीलिए हमने ‘सबल भारत’ आंदोलन दो-तीन साल पहले शुरु किया। इसका उद्देश्य भारतीय जन-गणना से जातीय गणना को बाहर निकलवाना था। कांग्रेस पार्टी ने 80 साल से रद्द हुई जातीय जन-गणना इसलिए शुरु की थी कि वह थोकबंद वोटों की राजनीति जरा अधिक वैज्ञानिक तरीके से कर सके। दूसरे दल भी इस तिकड़म का फायदा उठाने को तत्पर थे। मैंने किस पार्टी के किस नेता से बात नहीं की? इस जातीय हम्माम में सभी निर्वस्त्र थे लेकिन मैं सोनिया गांधी और प्रणब मुखर्जी को धन्यवाद दूंगा कि उन्होंने ‘सबल भारत’ की बात मानी और जातीय जन-गणना को रुकवा दिया।
अब भाई जनार्दन ने आरक्षण खत्म करने की बात कही है तो राहुल उस पर अमल करे। जैसे गैस का सिलेंडर अचानक सस्ता कर दिया, वैसे ही संसद के इस सत्र में संशोधन लाए और आरक्षण खत्म करे। जन्म के आधार पर आरक्षण खत्म करें और आर्थिक आधार पर सिर्फ शिक्षा में आरक्षण दें। गरीब बच्चों को शिक्षा, भोजन, वस्त्र और आवास की यदि मुफ्त सुविधा मिले, चाहे वे किसी भी जाति के हों तो अगले दस वर्षों में भारत में कोई अशिक्षित नहीं रहेगा और कोई गरीब नहीं होगा। भारत विश्व-शक्ति बन जाएगा। आरक्षण खत्म करने से कांग्रेस को थोकबंद वोट का घाटा जरुर होगा लेकिन वह भारत को पुनर्जन्म दे देगी। उसका हारना तो यों भी तय है लेकिन जाते-जाते वह भारत का भला कर जाए तो बुरा क्या है?
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