नया इंडिया, 5 अक्टूबर 2014: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और संघ प्रमुख मोहन भागवत ने भारत की जनता के नाम जो आह्वान किए हैं, वे अत्यंत प्रशंसनीय हैं लेकिन क्या वे सिर्फ सांकेतिक नहीं हैं? खादी पहनना, साफ सफाई करना, स्वदेशी वस्तुओं और स्वभाषा का प्रयोग करना, गोरक्षा, नशामुक्ति भारत बनाना आदि ऐसे काम हैं, जो सिर्फ सरकार और नौकरशाही के जरिए नहीं हो सकते। कठोर कानून काफी मदद कर सकता है लेकिन उससे भी ज्यादा जरूरी है, इन कामों के लिए जन आंदोलन को चलाना।
जन आंदोलन कैसे चलते हैं? सबसे पहले जनता को जगाना पड़ता है। जनता को जगाने के लिए आपके पास ऐसे लाखों कार्यकर्ताओं का समूह होना चाहिए, जो घर घर पहुंचे और आम लोगों को इन आंदोलनों के लक्ष्यों से परिचित करवाए। कक्षाएं ले, सभाएं करे, प्रदर्शन और जलूस निकाले, पर्चे और पुस्तकें बाटे।
यह काम नौकरशाही नहीं कर सकती। वास्तव में भारत की नौकरशाही, नौकरशाही नहीं, मालिकशाही है। अभी नही तक न तो ऐसा कोई प्रधानमंत्री आया है और न ही सरकार, जो इन नौकरशाहों को जनता का सेवक बना सके। ये नौकरशाह, नौकर कम, शाह ज्यादा होते हैं। इनकी बजाए राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता या सामाजिक सांस्कृतिक संगठनों के स्वयंसेवक यह काम बाखूबी कर सकते हैं। लेकिन क्या इन संगठनों को सक्रिय किया गया है? बिल्कुल नहीं।
सिर्फ टेलिविजन चैनलों और अखबारों में प्रचार हो रहा है। इस कागजी और हवाई प्रचार की उम्र कितनी है? सिर्फ कुछ घंटे। एक दिन हाथ में झाडू उठा लेने और एक दिन खादी पहन लेने से क्या देश में स्वच्छता और स्वभूषा आ जाएगी? अखबारों और टेलिविजन चैनलों की अपनी मजबूरी है। वे आपकी खबर इसलिए दे रहे हैं, क्योंकि आप एक पद पर बैठे हुए हैं। इसलिए आप में और आपकी बात में भी वजन पैदा कीजिए।
आपकी बात में वजन तब पैदा होगी, जब आप जो कहते हैं, वह खुद करने लगेंगे। यदि प्रधानमंत्री अपना कमरा और कमोड रोज खुद साफ करें और खुद खादी कातें और पहनें तो करोड़ों न सही लाखों लोग उनका अनुकरण करने लगेंगे। तब वे जनता के सच्चे नेता बनेंगे। प्रधानमंत्री बनना आसान है, जनता का नेता बनना काफी कठिन है।
Leave a Reply