नया इंडिया, 04 फरवरी 2014: अभी तक इटली की अदालतों को सिर्फ ये प्रमाण मिले हैं कि भारतीय नेताओं, अफसरों और उनके रिश्तेदारों को 360 करोड़ रु की रिश्वत दी गई है। अभी तक देश के किसी बड़े नेता का नाम साफ तौर पर सामने नहीं आया था। अब जो ताजा दस्तावेज इटली की सरकार ने पकड़े हैं, उनमें सोनिया गांधी, मनमोहनसिंह, प्रणब मुखर्जी, वीरप्पा मोइली, अहमद पटेल आदि के नाम प्रकट हुए हैं। इतालवी अदालत में जो फेक्स प्रमाण के तौर पर पेश किया गया है, उसमें मुख्य दलाल सी. माइकेल ने दिल्ली स्थित आगस्ता-वेस्टलैंड कंपनी के प्रतिनिधि को लिखा था कि वह उक्त लोगों से संपर्क करे और 3600 करोड़ याने 36 अरब रु. के इस सौदे को पटा ले। 36 अरब रु. में यह कंपनी भारत को 12 हेलिकॉप्टर बेचने वाली थी। इन हेलिकॉप्टरों को भारत इसीलिए खरीदना चाहता था कि उनके अनुसार सोनिया गांधी अब एमआई-8 हेलिकॉप्टरों में उड़ना पसंद नहीं करती हैं। इतालवी अदालत ने इसके पहले जो दस्तावेज़ पकड़े थे, उसमें स्पष्ट नाम नहीं थे लेकिन नामों के संकेत थे। जैसे ‘फेमिली’, एपी, डिफसेक्रे आदि लेकिन उक्त दस्तावेज़ में कई तथाकथित बड़े नाम साफ़-साफ़ लिए गए हैं।
उस फेक्स में बड़े नाम लिये गए हैं, इसका यह मतलब कैसे लगाया जाए कि इन लोगों ने प्रभावित होने के लिए रिश्वत खाई होगी? यह प्रमाणित नहीं होता। रिश्वत देनेवाले हरचंद यह कोशिश करते हैं कि निर्णय करनेवालों को प्रभावित करें। जो रिश्वत नहीं देते हैं, वे भी यही करते हैं। निर्णेताओं को प्रभावित करते हैं लेकिन इस सौदे में रिश्वत दिए जाने के प्रमाण उपलब्ध हैं। इसीलिए डर के मारे यह सौदा रद्द किया गया है याने सरकार समझ गई है कि रिश्वत की बात खुल गई है। तो अब सरकार को यह सिद्ध करना पड़ेगा कि जिन नेताओं के नाम उछल रहे हैं, उन्होंने रिश्वत नहीं ली है। और जिन्होंने रिश्वत ली है, उनके नाम सरकार जल्दी से जल्दी प्रकट करे। प्रकट ही न करे, उनकी सारी चल-अचल संपत्ति जब्त करे और उन्हें कठोर सजा दिलवाए।
यदि सरकार ऐसा नहीं करती है तो हेलिकॉप्टरों का सौदा बोफोर्स की तोपों के सौदे से भी ज्यादा गड़गड़ाहट पैदा करेगा। बोफोर्स की तोपों ने सिर्फ राजीव सरकार को उड़ा दिया था लेकिन इटली के ये हेलिकॉप्टर कांग्रेस को भी पता नहीं कहां उड़ा ले जाएंगे। सरकार तो सरकार, अब पार्टी भी साफ़ हो जाएगी। इस समय देश में भ्रष्टाचार के विरुद्ध प्रभंजनकारी हवा बह रही है। इस हवा में हेलिकॉप्टरों की भावी सवारियों का चूरा हो जाएगा। यदि आगस्ता-वेस्टलैंड कंपनी के अधिकारी द्वारा बताए गए नाम सचमुच इस दलदल में फंसे पाए गए तो जरा सोचिए कि कौन-कौन जाएगा? यह सोचकर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं। चुनाव के पहले ही सारी सरकार गुड़क जाएगी लेकिन हमारे सरकारी नेता भी गजब के अनासक्त संन्यासी हैं। उन पर इतने गंभीर आरोप लग रहे हैं और उन्हें गुस्सा तक नहीं आता। ज़रा सोचिए कि इनकी जगह जयप्रकाश या लोहिया या नरेंद्रदेव होते या नेहरु, शास्त्री या मोरारजी होते तो वे क्या करते? हमारी सरकार ने सौदा तो रद्द कर दिया लेकिन सौदे के रहस्य तो इटली में खुल रहे हैं। इतावली अदालत की कार्रवाई ऐसे वक्त पर हो रही है, जबकि हमारी संसद का अंतिम सत्र शुरु होने जा रहा है। कहीं ऐसा न हो कि इटली की सरकार हमारी सरकार को ले बैठे। तब लोग कहेंगे- ‘तुम्ही ने दर्द दिया था, तुम्ही ने दवा दे दी।’
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