नया इंडिया, 21 मई 2014 : कांग्रेस की कार्यसमिति में क्या हुआ? वही हुआ, जो मैंने कहा था। चुनाव में इतनी शर्मनाक हार हुई लेकिन एक भी ‘नेता’ ने मुंह नहीं खोला। बस वे दबी जुबान से फुसफुसाते रहे। लकवाग्रस्त जुबान से हकलाते रहे। सिर्फ चिदंबरम ने थोड़ी-सी हिम्मत जुटाई, यह कहने के लिए कि टिकिट ठीक से नहीं बांटे गए। दो उम्मीदवार तो टिकिट लेकर भी खिसक गए। भाजपा में शामिल हो गए। बाकी सभी लोगों ने वही किया, जो किसी राजा के दरबारी करते हैं या किसी सेठ के घरेलू नौकर-चाकर करते हैं। सोनिया और राहुल ने इस्तीफे नहीं दिए। देते भी किसे? मालिक का मालिक कौन? उन्होंने सिर्फ अपनी इच्छा जताई। बस इतना ही काफी था। जी-हुजूर और खुशामदी टूट पड़े। अरे आप इस्तीफा दे देंगी तो भला हमारा क्या होगा? हम मर जाएंगे। हम अनाथ हो जाएंगे। कांग्रेस पहले ही बहुत कमजोर है। अब वह टूट जाएगी। मोदी का सपना साकार हो जाएगा। भारत कांग्रेस-मुक्त हो जाएगा। आप हैं तो कांग्रेस हैं। आप नहीं रहे तो कांग्रेस नहीं रहेगी। भाव-विभोर भक्तों की आंख से बस आंसू नहीं निकले लेकिन मालकिन का गला रुंध गया। चार बार उन्होंने दोहराया कि मेरा इस्तीफा देने का मन हो रहा है। सिर्फ दोहराया, दिया नहीं। यही राहुल ने किया। मां-बेटे का नाटक सफल हुआ। नाटक का सुंखात हो गया लेकिन अब एक बड़े दुखांत नाटक का पर्दा उठ रहा है। अब कांग्रेस निरंतर कमजोर होती चली जाएगी। राज्यों की कांग्रेस-सरकारें भी गिरेंगी। दल-बदल होगा। लोग डूबते जहाज से कूदते नज़र आएंगे। यह देश का दुर्भाग्य होगा। लोकतंत्र क्षीण होगा।
इस मौके का इस्तेमाल करके मां-बेटा अपनी छवि सुधार सकते थे। लेकिन जैसे उन्होंने सत्ता गंवाई, वैसे ही यह मौका भी गवां दिया। राहुल को चाहिए था कि वह नीतीश कुमार को अपना चाचा बना लेते। नीतीश ने गजब का दांव मारा। चाहे अपने चहेते को उन्होंने गद्दी पर बिठा दिया लेकिन वह ‘त्यागमूर्ति’ बन गए। उनकी करारी हार, उनका दल-बदल का खतरा, उनकी सरकार का पतन-सभी गेंदों को उन्होंने एक ही शाॅट से खेल लिया। इसे कहते हैं, नेता होना। अ-नेताओं को यह पैंतरा खुद नहीं सूझा तो इसे नीतीश से ही सिख लेते लेकिन कागज के फूलों से कभी खुशबू आ सकती है, क्या? अभी तो कांग्रेस को विपक्षी दल की मान्यता मिलने में ही दिक्कत आ रही है? वह तीसरा मोर्चा कैसे खड़ा करेगी? बंगाल, तमिलनाडु और उ.प्र. की महिला-नेतागण क्या सोनिया को अपने पासंग भर भी समझती हैं? अब मां-बेटा को कोई समझाए कि राजनीति और लोक-सेवा आपके बस की बात नहीं है। दस-बारह साल तक आपने राजनीति का यह नाग अपने गले में लपेटे रखा, यही कांग्रेसियों पर आप की बड़ी कृपा रही। अब इससे अपना पिंड छुड़ाइए और बेचारे कांग्रेसियों का भी आप पिंड छोड़िए ताकि वे इस प्राइवेट लिमिटेड कंपनी को अब एक लोकतांत्रिक पार्टी बना सकें।
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