नया इंडिया, 29 अगस्त 2013 : आसाराम बापू का अपराध अभी तक सिद्ध नहीं हुआ है लेकिन वे जिस बदहवासी में एक जगह से दूसरी जगह भागते फिर रहे हैं और पुलिस को चकमा देने की कोशिश कर रहे हैं, उससे उनकी छवि कैसी बन रही है? क्या इतनी मोटी बात उनकी समझ में नहीं आ रही है? वे तो छवि-निर्माण के उंचे कलाकार हैं। सिर्फ छवियां दिखा-दिखाकर उन्होंने सैकड़ों ज़मीन कब्जाई हैं, करोड़ों रु. बनाए हैं और अपने हज़ारों अंध-भक्त खड़े किए हैं। लेकिन लगता है, इस दुर्घटना के बाद वे इतने हिल गए हैं कि वे अपनी सबसे बड़ी कला ही भूल गए हैं। आसाराम इस मामले में भी अपना तेवर वहीं रखते, आक्रामक और नाटकीय, तो उनकी छवि वैसे नहीं बनती, जैसे कि आज बन गई है। वे अपने बड़बोले और नाटकीय प्रवचनों के लिए सारे देश में जाने जाते हैं।
देश के बड़े से बड़े नेता पर वज्र-प्रहार से वे कभी चूकते नहीं, हालांकि किसी कथावाचक से ऐसी आशा नहीं की जाती है। उन्हें चाहिए था कि वे उनके खिलाफ रपट लिखवाने वालों, लिखनेवालों और उन पर ‘सम्मन’ जारी करने वालों पर भी वज्र- प्रहार करने, भूखे शेर की तरह उन पर टूट पड़ते और क्रोध का ज्वालामुखी- विस्फोट कर देते तो लोग समझते कि एक संत को सचमुच फंसाया जा रहा है। लेकिन शेर जब चूहे की तरह बिल तलाश कर रहा हो और भेड़ की तरह मिमिया रहा हो तो लोग क्या अंदाज लगाएंगे? आसाराम यों तो कथावाचन का व्यवसाय करते हैं। उनसे किसी आध्यात्मिकता की आशा करना उन पर अत्याचार ही करना है। फिर भी उनके प्रवचनों का कुछ असर अगर खुद उन पर हुआ होता और सचमुच उनसे वह ‘पाप’ हुआ होता तो वे अपने सारे भक्तों से क्षमा मांगते और अदालत के आगे आत्म-समर्पण करके कहते कि मुझे फांसी दो और मेरी लाश कुत्तों से नुचवा दो। ऐसा करने पर उन्हें सच्चा संत माना जाता, जो प्रायश्चित के लिए तैयार है लेकिन उन्होंने जो मुद्रा धारण कर रखी है और उनके आश्रमों, उनके भूतकाल और उनकी कारस्तानियों की जो खबरें अभी तक, सामने आई है उनको सुनकर चिंता होती है।
चिंता हमें आसाराम की नहीं है, देश के सारे संत-समाज की है। भारत में ऐसे-ऐसे संत अभी भी हैं, जिनका जीवन कई पैगंबरों, अवतारों और महापुरुषों से कम नहीं है। आज वे सब अवाक हैं। वे बोलें तो क्या बोलें? सब ईश्वर से यही प्रार्थना कर रहें हैं कि आसाराम किसी तरह आग के इस दरिया से सही-सलामत बच निकलें लेकिन आसाराम हैं कि उनके आचरण से कोई आस ही नहीं बंध रही। संयोग भी कितना बुरा है? बलात्कार का आरोप भी उन पर इसी समय आना था जबकि सारा देश इस अपराध के खिलाफ बिलबिला रहा है और थू थू कर रहा है। यह जरूरी नहीं कि वह आरोप उनके विरुद्ध सिद्ध हो ही जाए जैसे राजीव गांधी के विरुद्ध बोफोर्स का आरोप सिद्ध नहीं हुआ लेकिन किसी ‘संत’ कहे जाने वाले व्यक्ति के विरुद्ध ऐसे आरोप का लगना ही मृत्युदंड से भी ज्यादा है। अब आसाराम को भगवान ही बचा सकते हैं।
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