नया इंडिया, 29 दिसंबर 2013 : ऐसा लगता है कि कांग्रेस सरकार की दुर्दशा के बारे में जो कुछ लिखा-पढ़ा जा रहा है उसे राहुल गांधी के सलाहकार ठीक से हृदयंगम कर पर रहे हैं। राहुल गांधी खुद सारे अखबार पढ़ें और उनमें लिखी बातों को समझ सकें, ऐसी क्षमता का परिचय उन्होंने नहीं दिया है लेकिन उनके सलाहकारों को बधाई कि आजकल वे ठीक किस्म की चाबी भर रहे हैं। राहुल अगर इसी तरह अपनी केंद्र और राज्य सरकारों की खबर लेते रहे तो कोई आश्चर्य नहीं कि अगले आम चुनाव में वे कांग्रेस का सफाया होने से बचा लेंगे। पहले उन्होंने पत्रकार-सम्मेलन में केंद्रीय मंत्रिमंडल के निर्णय को उलट दिया और अपने मुख्यमंत्री सम्मेलन में उन्होंने महाराष्ट्र सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया। राहुल ने केंद्र सरकार को बुरी तरह झिड़का। कहा कि उसके निर्णय को कूड़े की टोकरी के हवाले कर दीजिए। कौनसा निर्णय था, वह? वह था, अपराधी विधायकों और संसदों को बचानेवाला अध्यादेश। इस अध्यादेश की सिफारिश करनेवाले मंत्रियों और प्रधानमंत्री के लिए इससे अधिक लज्जा की बात क्या हो सकती थी? प्रधानमंत्री यदि पानीदार आदमी होते तो वे अपने विदेश-प्रवास को काटते, तुरंत भारत लौटते और इस्तीफा दे देते। लेकिन ऐसा कदम तो नेता लोग उठाते हैं। नौकरीपेशा लोग ऐसा कैसे कर सकते हैं? लेकिन राहुल ने वार कर ही दिया। नतीजा क्या हुआ? नतीजा उल्टा हुआ। कांग्रेस पार्टी की इज्जत बढ़ने की बजाय घट गई। इस पार्टी के माथे पर बेशर्मी का तमगा चिपक गया। प्रधानमंत्री की इज्जत पैंदे में बैठ गई। यदि राहुल सिर्फ बयान ही नहीं देते बल्कि अपने कुछ विधायकों और सांसदों को, जिन पर गंभीर आरोप हैं, निकाल बाहर करते तो उनकी बहादुरी कुछ रंग लाती लेकिन वह बांझ साबित हुई। देश के चित्त पर वह जवांमर्दी एक हल्की-सी लकीर भी नहीं छोड़ पाई। इसी तरह अब उन्होंने महाराष्ट्र सरकार को भी कटघरे में खड़ा कर दिया है। मैंने ‘नया इंडिया’ में लिखा था कि कांग्रेस ने भ्रष्टाचार में आदर्श कायम किया है। चार मुख्यमंत्रियों को जांच आयोग ने भ्रष्ट पाया। दो मंत्री और दर्जन भर अफसरों के नाम भी आए। इस रपट को रद्द कर देना दोहरा भ्रष्टाचार है लेकिन अब राहुल का कहना कि मैं महाराष्ट्र सरकार से सहमत नहीं, इस बात का महत्व क्या है? कुछ भी नहीं। सिर्फ खबर बन गई और मेरे जैसे आशावादी लोग खुश हो गए लेकिन यह सब ऊपरी और तात्कालिक प्रभाव है। यदि राहुल चाहते हैं कि लोग उन्हें नेता समझें तो वे सिर्फ बोलें ही नहीं, कुछ करके दिखाएं। क्या वे उन सब लोगों को पार्टी की तरफ से दंडित करने को तैयार हैं, जिनके नाम रपट में आए हैं और क्या आदर्श सोसायटी से उन सब फ्लैट-मालिकों को बेदखल करने या करवाने को तैयार हैं, जिन्हें गलत तरीकों से फ्लैट लिए हैं। अदालत और सरकार जब कारवाई करेंगी तब करती रहेंगी लेकिन पार्टी तो तुरंत अनुशासनात्मक और आंदोलनात्मक कारवाई कर ही सकती है। यदि यह नहीं होता है तो राहुल का बहादुरी का यह तेवर एक चाबी भरे गुड्डे के नाच से ज्यादा कुछ नहीं सिद्ध होगा। पार्टी की छवि और एक भले और ईमानदार मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण की छवि को भी ठेस लगे बिना नहीं रहेगी।
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