नया इंडिया, 12 जनवरी 2014 : न्यूयार्क स्थित हमारी राजनयिक देवयानी खोबरगडे सही-सलामत भारत आ गई, यह बड़े संतोष का विषय है। अमेरिकी चाहते तो उसे भारत नहीं आने देते और उस पर मुकदमा ठोक देते। मुकदमे के बाद उनको सजा होती और पता नहीं कितना जुर्माना भरना पड़ता। अब भारत आने के बाद वह महिला राजनयिक अमेरिकियों की गिरफ्त के बाहर हो गई है।
लेकिन देवयानी की गिरफ्तारी और अश्लील तलाशी क्या सिद्ध करती है? सबसे पहली तो यह कि अमेरिका को भारत के गुस्से की बिल्कुल भी परवाह नहीं है। उसको भारत का कोई लिहाज नहीं है। देवयानी ने किसी की हत्या नहीं की, चोरी नहीं की, डाका नहीं डाला, ठगी नहीं की। यदि यह सब भी उसने किया होता तो भी वह राजनयिक थी। वह भारतीय संप्रभुता की प्रतीक थी। दुनिया के सारे राजनयिकों को अनेक छूट मिलती हैं। उन छूटों के तहत वह छूट सकती थी। देवयानी पर जो दोष लगाया गया, वह सिर्फ यही था कि वह अपनी भारतीय नौकरानी से 16-18 घंटे रोज काम लेती थी, छुटि्टयां नहीं देती थी और अमेरिकी हिसाब से उसे वेतन भी बहुत कम देती थी।
जहां तक वेतन का सवाल है, अमेरिकी सरकार से पूछा जा सकता है कि उसके दिल्ली के दूतावास में जो भारतीय कर्मचारी काम करते हैं, क्या उन्हें अमेरिकी हिसाब से वेतन मिलता है? वे उन्हें भारतीय हिसाब से वेतन देते हैं या नहीं? इसके अलावा भारतीय कूटनीतिज्ञों को भी अमेरिकी हिसाब से वेतन नहीं मिलता तो उनके नौकर-चाकरों को अमेरिकी हिसाब से वेतन कैसे दिया जा सकता है? अगर दिया जाए तो नौकरों का वेतन अपने साहबों से ज्यादा हो जाएगा। जहां तक काम के घंटों आदि का सवाल है, घरेलू नौकरों को घर के लोगों की सेवा के लिए रखा जाता है, दफ्तर की फाइलें पकड़ाने के लिए नहीं रखा जाता। इसका अर्थ यह नहीं कि घरेलू नौकरों के साथ क्रूरता की जाए। वह तो सर्वथा निदंनीय है लेकिन देवयानी की नौकरानी संगीता रिचर्डस के अलग ही जलवे थे। इस भारतीय नौकरानी का पति दिल्ली में किसी अमेरिकी राजनयिक का नौकर हे। वह ईसाई है। सहधर्मी और मुंहलगा है। उसने इसका फायदा उठाया और उस अमेरिकी राजनयिक को उकसाकर उसने देवयानी को फंसवा दिया। देवयानी पर कम वेतन
देने, जुल्म करने और संगीता के वीजा में गलत जानकारी भरने का आरोप लगवाया।
यह सारा मामला बातचीत से निपट सकता था लेकिन यह एक नौकर की तिकड़म थी कि उसने अपने निजी स्वार्थ के कारण दो देशों के बीच अपूर्व तनाव पैदा करवा दिया। भारत ने भी एक अमेरिकी राजनयिक को निकाल बाहर किया है। अगर अमेरिका अपने इस नहले पर हमारे दहले को बर्दाश्त कर लेगा तो रेल फिर से पटरी पर आ सकती है। वरना यह मामला इतना तूल पकड़ सकता है कि भारत-अमेरिका की राजनयिक झड़पे भारत-पाक राजनयिक मुठभेड़ो का रूप धारण कर लेगी। बेहतर तो यही होगा कि भारत भी अब बस करे। बदले की भावना से प्रत्याक्रमण न करे और अमेरिका भी दादागीरी से बाज आए। एक नौकर की करतूत को दो महान लोकतंत्रों के संबंधों को चौपट करने का कारण न बनने दे।
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