रा. सहारा, 2 सितंबर 2008 : अगर चोरी और सीनाज़ोरी की कोई मिसाल ढूंढना चाहे तो उसे कंधमाल जाना चाहिए| कंधमाल उड़ीसा का वह स्थान है, जहाँ 84 वर्षीय लक्ष्मणानंद सरस्वती और उनके चार भक्तों की निर्मम हत्या कर दी गई| 20 बंदूकधारियों ने आश्रम में घुसकर यह अपराध कियाद्व और वे आज तक पकड़े नहीं गए| इस जघन्य हत्याकांड पर क्या कंधमाल या उड़ीसा या भारत के लोगों को अपने मुँह पर पट्टी बांध लेनी चाहिए ? शायद पोप बेनेडिक्ट यही चाहते हैं| इस हत्याकांड पर उन्होंने जैसी प्रतिकि्रया रोम में व्यक्त की है, क्या उसे पड़कर हम यह कह सकते हैं कि यह किसी आध्यात्मिक व्यक्ति की प्रतिकि्रया है ? यह शुद्घ राजनीति है बल्कि निकृष्ट कोटि की राजनीति है| केथोलिक स्कूलों को बंद करने की धमकी को ‘ब्लेकमेल’ के अलावा क्या कहा जा सकता है ? कंधमाल के मसले पर इतालवी सरकार द्वारा भारतीय राजदूत को धमकाया जाना घोर आपत्तिजनक है| यह भारत के आतंरिक मामलों में हस्तक्षेप है| वास्तव में स्वामी लक्ष्मणानंद की हत्या के लिए पोप और इतावली सरकार को भारत से माफी मांगनी चाहिए| भारत चोरी और सीनाजोरी क्यों बर्दाश्त करें ?
कंधमाल के बेकसूर ईसाइयों पर जो हमले हो रहे हैं, वे सर्वथा अनुचित एवं निंदनीय हैं लेकिन यदि उड़ीसा के लोग वहाँ से मिश्नरियों को मार भगाना चाहते हैं तो यह सर्वथा उचित है| मिश्नरियों के काले कारनामों को कई दशक पहले मप्र की नियोगी रपट ने अनावृत्त किया था| मिश्नरी लोग न तो धार्मिक हैं न अध्यात्मिक| उनका ईसा मसीह से कोई लेना-देना नहीं है| ईसा सत्य और अहिंसा की प्रतिमूर्ति थे| ऐसे महान और पवित्र् पुरूष के नाम पर धर्मांतरण करना और उसके लिए लोभ-लालच, भय, झूठ और पाखंड का सहारा लेना ईसा-द्रोह के अलावा कुछ नहीं है| यदि ईसा हमारे बीच आज होते तो अपने चेलों की करतूतें देखकर उनका माथा शर्म से नीचे झुक जाता| उड़ीसा में लक्ष्मणानंद नहींद्व ईसा का हनन हुआ है|
क्या वजह है कि मिश्नरीगण सिर्फ आदिवासियों और अनुसूचितों के बीच काम करते है ? इसलिए कि पढ़े-लिखे और समर्थ लोगों के बीच उनकी दाल नहीं गलती| गरीब और अशिक्षित लोगों को शिक्षा चिकित्सा या नौकरी का लालच देकर व उनका धर्म हर लेते हैं| क्या यह धर्मांतरण है| यह शुद्व धोखाधड़ी है| नैतिक अपराध है| यदि कोई ईसा के व्यक्तित्व पर रीझ जाए और बाइबिल पढ़कर मोक्ष का रास्ता पा ले तो उसका ईसाई बनना तो समझ में आता है लेकिन भोले लोगों को ईसाई बनाने के नाम पर मिश्नरीगण उन्हें ऐसे पापों में डुबोने का काम करते हैं| जिनसे तारने का वादा ईसा जिदंगीभर करते रहे| इसीलिए जो सच्चे ईसाई हैं और शुद्व धार्मिक-अध्यात्मिक व्यक्ति हैं, उन्हें तथाकथित धर्मांतरण के विरूद्घ वैसा ही शंखानद करना चाहिए, जैसा कभी दयानंदद्व विवेकानंद और महात्मा गांधी ने किया था|
विवेकानंद और गांधी तो स्वयं भुक्तभोगी थे| विवेकानंद को मिश्नरियों ने कॉफी में जहर देने की कोशिश की थी और गांधी के गले की माला को एक मिश्नरी ने तोड़ दिया था| पूरे एक हजार साल तक यूरोप में पोप-लीला चलती रही| वह धर्म नहीं, शुद्घ राजनीति थी| यूरोप के राजा-महाराजाओं को पोप सीधी टक्कर देता था| एक म्यान में दो तलवारें रहती थी ? यह काल यूरोप का अंधकार-काल कहलाता है| यदि मार्टिन लूथर का अवतरण नहीं होता और वोट्टनबर्ग के चर्च पर वे सिंहनाद नहीं करते तो सारी दुनिया के चर्च तत्कालीन यूरोप की तरह आज भी व्याभिचार, रिश्वत, अपराध और दुराचार के अड्रडे बने रहते| एशिया में जन्मे महान संत ईसा रोमन तिकड़कियों के हाथ में फंसकर कैसी दुर्गति को प्राप्त हुए ? क्या हमारे ईसाई, जो दुनिया के किन्हीं भी ईसाइयों से कमतर नहीं हैं, ईसा का उद्घार नहीं करेंगे ? उन्हें चाहिए कि पैसे, डंडे और कपट के दम पर धर्मांतरण करनेवाले पादरियों को वे भारत से निकाल बाहर करें| गाँधी से बड़ा असांप्रदायिक व्यक्ति कौन था ? यदि गांधी ने धर्मातरण की निंदा की और उसे अनैतिक कहा तो उस समय के हमारे राष्ट्रवादी ईसाइयों ने उनका स्पष्ट समर्थन किया| उस समय मिश्नरी गतिविधियों का मुख्य लक्ष्य लोगों को अंग्रेज-भक्त बनाना था| स्वाधीनता-संग्राम के दिनों में मिश्नरी गतिविधियाँ बि्रटिश सामा्रज्य की अवैध संतान बनकर भारत की छाती पर लदी थीं|
आज भी भारत के मिश्नरी अपना काम-काज विदेशी धन से चलाते हैं | वे अमेरिकी और यूरोपीय ईसाई संगठनों के प्रति जवाबदेह हैं| यह कहना कठिन है कि उन्हें कौन ज्यादा पि्रय है, बाइबिल के सिद्घांत या विदेशी धन ? अमेरिका और यूरोपीय गुप्त दस्तावेजों के संग्रहालय अब धीरे-धीरे खुल रहे हैं| उनसे भी मालूम पड़ेगा कि इन देशों ने धर्म के नाम पर हमारे ईसाई मिश्नरियों का कैसा बेजा इस्तेमाल किया है| मिश्नरियों की आपत्तिजनक गतिविधियों के कारण ही कई राज्यों में धर्मांतरण-विरोधी विधेयक पारित हुए हैं| इन विधेयकों को पारित करनेवाली सरकारें और विधायक हमेशा जनसंघी, संघी या आर्यसमाजी ही नहीं रहे हैं, वे लोग भी रहे हैं, जो गलत-सलत मुद्दों पर भी अल्पसंख्यकों के संरक्षक बन रहते हैं| आश्चर्य है कि इन विधेयकों का जबर्दस्त इस्तेमाल क्यों नहीं होता ?
हमारे सेक्यूलरवादियों को सच और झूठ से ज्यादा मतलब नहीं है| वोट ही उनका भगवान है| थोक में वोट पाने का लोभ इतना प्रबल है कि उसके लिए सेक्यूलरवाद को भी माचिस दिखानी पड़े तो उन्हें कोई झिझक नहीं है| पादरी ग्राहम स्टैन्स और उनके बेटे की हत्या जैसा जघन्य कृत्य सर्वथा निंदनीय था लेकिन स्वामी लक्ष्मणानंद की हत्या पर हमारे सेकुलरवादियों के मुंह पर ताले क्यों जड़े हुए हैं ? रजनी माझी नामक एक महिला को ईसाई भिक्षुणी बताकर उसकी मौत पर हल्ला मचानेवाले हमारे सेकुलरवादियों को अब पता चल है कि वह वीर हिंदु युवती थी (इंडियन एक्सप्रेसद्व 28 अगस्त 2008) जिसने एक ईसाई अनाथालय के बच्चों को बचाने के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी| वह जलते हुए घर की छत के नीचे दब गई| रजनी को मेरे प्रणाम ! पोप के स्वर में स्वर मिलाकर हिंसा की निंदा करनेवालों का ध्यान मिश्नरियों की सतत और सूक्ष्म हिंसा पर क्यों नहीं जाता ? उड़ीसा में जो लोग मारे जा रहे हैं, ज्यादातर पुलिस की गोलियों से मारे जा रहे हैं| उड़ीसा की सरकार संभावित हिंसा का मुकाबला हिंसा से कर रही है| सिमी के देशद्रोहियों की तारीफ में कसीदे काढ़नेवाले सेकुलरवादी इस दुतरफा हिंसा को रोकने के लिए क्या कर रहे हैं ? अपने आपको राष्ट्रवादी और हिंदुत्व के पक्षधर कहनेवाले दलों और संगठनों का दिग्भ्रम आश्चर्यजनक है| यह ठीक है कि बिहार की बाढ़ और जम्मू-कश्मीर जैसे बड़े मसले फिलहाल देश के सामने हैं लेकिन मिशनरियों और पोप ने जो हिमाकत की है, उसके विरूद्व संपूर्ण राष्ट्र को जागृत करना क्या उनका कर्त्तव्य नहीं है ? बेकसूर और निहत्थे ईसाइयों पर हो रहे हमलों पर उनका चुप रहना गुजरात की गलती दोहराना है| ईसाइयों को तंग करने से स्वामी लक्ष्मणानंद वापिस नहीं लौंटेगे| जरूरी है कि ईसाइयों को मिश्नरियों और पोप के चंगुल से छुड़ाना ! हत्यारों की सजा बेकसूरों को क्यों दें ?
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