नया इंडिया, 09 अप्रैल 2014: कश्मीर की हुर्रियत कांफ्रेंस के अध्यक्ष मीरवाइज़ उमर फारुक ने आज एक अंग्रेजी अखबार में भारत की जनता के नाम लंबा-चौड़ा पत्र लिखकर मांग की है कि वह कश्मीरियों को आत्म-निर्णय का अधिकार प्रदान करे। भारत की जनता से उन्होंने यह भी अपील की है कि अब जो नई सरकार बने, उस पर भी वह दबाव डाले कि कश्मीर की जनता की महत्वाकांक्षाओ का वह सम्मान करे।
उमर फारुक ने दो-तीन हजार शब्दों का यह पत्र क्यों छपवाया? क्या उमर का पत्र पढ़कर भारत की जनता अपनी राय बदल देगी? उमर ने कश्मीर में होने वाली हिंसा का बार-बार उल्लेख किया है। वे बार-बार इस हिंसा के लिए भारत सरकार और फौज को जिम्मेदार ठहराते हैं। उनसे कोई पूछे कि भारतीय फौज ने कितने लोग मारे हैं और कश्मीरी आतंकवादियों ने कितने लोगों को मारा है? फौज तो जिन्हें कसूरवार मान लेती है, उनको मारती है लेकिन आतंकवादी तो बेकसूर लोगों पर हमला करते हैं। फौजी जवानों द्वारा की गई हत्याओं की बाकायदा जांच होती है और यदि कोई दोषी पाया जाए तो उसे सजा होती है लेकिन हुर्रियत ने आतंकवादियों के विरुद्ध आज तक कोई प्रभावशाली मुहीम क्यों नहीं चलाई? आतंकवादियों ने अब तक लगभग 80 हजार लोग मार डाले हैं। ये लोग कश्मीरी हैं और इनमें से ज्यादातर मुसलमान हैं। फिर भी हुर्रियत ने कभी मुंह नहीं खोला। ऐसे में उमर का भारत की जनता को मुंह खोलने के लिए बोलना शुद्ध मजाक मालूम पड़ता है। दरअसल आजकल उमर और उमर-जैसे कश्मीरी नेताओं की नींद हराम हो रही है। वे समझ गए हैं कि नरेंद्र मोदी आ रहा है। वह लल्लो-चप्पो नहीं करेगा। वह आतंकवादियों को भी ठोकेगा और उनकी अम्मा को भी! इसीलिए यह अपील जारी की गई है। आत्म-निर्णय की बात बिल्कुल निराधार है। संयुक्त राष्ट्र संघ उसे रद्द कर चुका है। उसका कोई कानूनी महत्व नहीं है। भारत-जैसे लोकतांत्रिक और खुले देश में आत्मनिर्णय की बात करना आत्मघाती है। अलग राष्ट्र की हैसियत से कश्मीर जिंदा रह नहीं सकता और पाकिस्तान में मिलकर वह अपना विनाश क्यों करवाए? हां, उसकी स्वायत्तता, उसके विकास और उसकी संतुष्टि के लिए जो भी अधिक से अधिक किया जा सकता है, वह नई सरकार को करना चाहिए। इस सब की प्राप्ति ही सच्ची आजादी है। यह आजादी, सिर्फ कश्मीरियों को ही क्यों, प्रत्येक भारतीय को मिलनी चाहिए। इसीलिए नरसिंहरावजी ने कहा था कि ऐसी आजादी की सीमा आकाश तक है। अनंत है। लेकिन अलगाव की मांग मेरी राय में शुद्ध गुलामी है। अपने कश्मीरी भाई-बहनों को हम गुलामी की भट्ठी में कैसे झोंक सकते हैं? इसीलिए मैं कहता हूं, ‘आजादी हां, अलगाव ना!’
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