नया इंडिया, 18 जनवरी 2014 : सोनिया गांधी ने एक बार फिर बड़ी बुद्धिमानी का परिचय दिया। पहली बार उन्होंने प्रधानमंत्री का पद स्वयं न लेकर मनमोहन सिंह जी को दे दिया। यदि वे प्रधानमंत्री बन जातीं तो उनकी भद्द मनमोहनजी से भी ज्यादा पिट जाती। कांग्रेस का दूसरी बार सरकार बनाना असंभव हो जाता। अब उन्होंने राहुल को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने का विरोध किया है। उन्होंने अपनी, राहुल और कांग्रेस की इज्जत बचाने का अनुपम प्रयास किया है। कांग्रेस तो अब खुशामदियों का गिरोह बन चुकी है। किसकी हिम्मत है कि वह खरी-खरी बात करे। मां-बेटा पार्टी में खुली बहस नहीं होती। खुला साष्टांग दंडवत होता है। सो हुआ। कई नेताओं ने राहुल को मोदी की टक्कर में खड़ा करने की प्रार्थना की लेकिन सोनिया ने उन सब प्रार्थनाओं को रद्दी की टोकरी में डाल दिया।
सोनिया ने अपनी बात रखने के लिए जो बहाना बनाया, वह बिल्कुल तर्कसंगत है।
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करना कांग्रेस की परंपरा नहीं है। कांग्रेस ने ऐसा कभी नहीं किया। अभी वह ऐसा क्यों करे? कांग्रेस महासचिव ने कहा कि कांग्रेस में क्या नेता पद के लिए कोई जूतम-पैजार चल रहा है? क्या नेतृत्व को लेकर कोई विवाद है? सबको पता है कि राहुलजी के नेतृत्व में चुनाव अभियान चल रहा है। (यदि कांग्रेस जीतेगी तो वे ही नेता बनेंगे)। इसके अलावा सोनियाजी ने एक तर्क और भी दिया। वह यह कि कांग्रेस पार्टी पूर्ण लोकतांत्रिक पार्टी है। वह अपने प्रधानमंत्री का चुनाव अपने संसदीय दल से करवाती है। अभी से वह उसे नामजद क्यों करे?
क्या बात है? क्या अदा है? लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं! क्या राजीव गांधी और मनमोहनसिंह से बेहतर उम्मीदवार 1984 और 2004 में कांग्रेस के पास कोई नहीं था? किसे पता नहीं है कि इन दोनों नाउम्मीदवारों को ऊपर से थोपा गया था? दोनों ने कांग्रेस की लुटिया डुबो दी। क्या अब भी कांग्रेस के पास राहुल से बेहतर कोई उम्मीदवार नहीं है? क्या चिदंबरम, क्या जयराम रमेश, क्या सलमान खुर्शीद और क्या ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे लोगों की तुलना में राहुल पांसग बराबर भी है? राहुल में कौन सी काबिलियत है, चुनाव-अभियान का नेतृत्व करने की? न तो उन्हे भाषण देना आता है, न पढ़ना-लिखना आता है, उसकी हिंदी और अंग्रेजी, दोनों ही माशाअल्ला हैं। वह विनम्र है, बेदाग है, भोला है, सीधा-सादा है लेकिन ये सब गुण क्या किसी को नेता बना सकते हैं? सोनियाजी ने ठीक ही किया जो वे खुशामदशाहों के चक्कर में नहीं फंसी। वरना मेनका गांधी का व्यंग्य सटीक बैठता कि कहां एक शेर और कहां एक चिड़िया? कहां नरेंद्र मोदी और कहां राहुल गांधी? राहुल को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने पर कांग्रेस में नाउम्मीदी का माहौल और भी गहरा जाता। कांग्रेस ने राहुल को नामजद नहीं करके अपना भला ही किया है।
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