R Sahara, 30 Aug 2003 : अविश्वास प्रस्ताव की बहस के दौरान अफगानिस्तान का अनायास उल्लेख अपने आप में अजूबा था | प्रधानमंत्री ने आखिर अफगानिस्तान की स्थिति पर चिन्ता क्यों व्यक्त की? शायद इसीलिए कि आजकल भारत और पाकिस्तान के बीच अफगानिस्तान भी विवाद का मुद्रदा बनता जा रहा है | अफगानिस्तान में यदि कोई भी पाकिस्तान-विरोधी गतिविधि होती है तो पाकिस्तानी सरकार पलक झपकाए बिना ही उसे भारत के मत्थे मढ़ देती है | पिछले माह अफगानों ने पाक दूतावास पर हमला कर दिया | जबर्दस्त तोड़-फोड़ की | राजदूत और अन्य कूटनीतिज्ञ अपनी जान बचाने की खातिर पाकिस्तान भाग गए | पाकिस्तान सरकार ने तुरन्त कह दिया कि वह प्रदर्शन भारत ने भड़काया था |
इसी तरह क्वेटा की एक शिया मस्जिद में लगभग सौ लोग हताहत हुए | उसकी जिम्मेदारी भी भारत पर डाल दी गई | यह मस्जिद अमीर अब्दुर रहमान के जमाने में अफगानिस्तान से भागकर आए हजारा जाति के लोगों ने बनाई थी | उनकी भाषा फारसी है और वे शिया हैं | पाकिस्तान सरकार और अखबारों ने आरोप लगाया कि इस अफगान मस्जिद पर हमला करवाने के पीछे भारत का इरादा यह था कि पाकिस्तान को सारी दुनिया में बदनाम किया जाए | अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच कटुता बढ़वाई जाए और मुशर्रफ तथा करज़ई को एक-दूसरे के खिलाफ कर दिया जाए |
यदि भारत जलालाबाद और कंधार में अपने वाणिज्य दूतावास खोलता है तो पाकिस्तान आरोप लगाता है कि यह भारतीय जासूसी जाल के अलावा क्या है? ये दोनों अफगान शहर पाक-सीमा के निकट हैं | इन शहरों के रहनेवाले कुछ पठान पख्तूनिस्तान के पुराने समर्थक हैं | पाकिस्तान का इल्ज़ाम है कि भारत उन्हें भड़का रहा है | पाकिस्तान से कोई पूछे कि कंधार और जलालाबाद में भारतीय दूतावास क्या पहली बार खोले गए हैं और क्या हेरात और मजारे-शरीफ भी उसकी सीमा पर हैं, जहॉं हमारे दूतावास खोले जाते रहे हैं?
यदि काबुल के टी.वी. और रेडियो पर मनोरंजन कार्यक्रमों की बढ़त होती है और सिनेमा घरों में भारतीय फिल्में दिखाई जाती हैं तो पाकिस्तान सख्त एतराज़ करता है | वह कठमुल्लों को समझाता है कि यह हिन्दुआना हरकत है | काफिराना काम है | इस्लामी तत्व इन पर प्रतिबंध लगवाऍं | पाकिस्तान यह भूल जाता है कि हर पाकिस्तानी घर में भारतीय फिल्में खुले-आम नियमित देखी जाती हैं और वहॉं की स्त्र्िायों ने भारतीय टी.वी. चैनलों पर प्रतिबंध का कड़ा विरोध किया है |
पाकिस्तान को अफसोस है कि उसने लगभग बीस साल तक तीस लाख अफगानों को अपने यहॉं शरण दी लेकिन अब वे काबुल पहॅुंचकर उसका धन्यवाद तक नहीं करते | वे भारत की माला जपते रहते हैं | भारत ने उन्हें क्या दिया है? सिर्फ दस करोड़ रूपये, कुछ दवाइयॉं, तीन जहाज, कुछ बसें और थोड़ी-बहुत तकनीकी सहायता | चंद चॉंदी के टुकड़ों पर अफगान अपना ईमान क्यों बेच रहे हैं? अपने आपको वे मुसलमान क्यों कहते हैं ? यह कैसा इस्लामी देश है? यह कैसा पड़ौसी है?
पाकिस्तान का एक आरोप यह भी है कि अफगानिस्तान उस भारत का बगलगीर हो रहा है,, जो कश्मीरी मुसलमानों की रोज़़ हत्या कर रहा है | कश्मीरी मुसलमान इस्लाम के लिए लड़ रहे हैं और अफगानिस्तान इस्लामी देश है | अफगानिस्तान के ही मुजाहिदीन और तालिबान ने ”कश्मीरी स्वातन्त्र्य-संग्राम” में प्राण फूके थे और अब अफगानिस्तान उसकी तरफ से बेखबर हो गया है | इस महान अफगान-भूमिका के लिए ही इस्लामी देशों ने अफगान छापामारों को कभी माला-माल कर दिया था| अब अफगानिस्तान इतना एहसान-फरामोश कैसे हो गया है? क्या इसका कारण भारत नहीं है?
पाकिस्तान को यह डर भी है कि अगर नए अफगानिस्तान में भारत के डाक्टरों, अध्यापकों, सलाहकारों और विशेषज्ञों की संख्या बढ़ती गई तो किसी दिन यही पंजा पाकिस्तान को तोड़ने के काम आएगा | अफगान फौज में भारत का बढ़ता हुआ असर पाकिस्तान की हडि्रडयों में कॅंपकॅंपी दौड़ा देता है | उसे लगता है कि भारत ने उसके पिछवाड़े एक स्थायी सैनिक मोर्चा खोल दिया है | यदि कभी फिर से युद्घ की नौबत आई तो आश्चर्य नहीं कि अफगानिस्तान से भी हमला बोलवा दिया जाए |
पाकिस्तान को सबसे ज्यादा तकलीफ इस बात से है कि भारत ने ईरान के जरिए अफगानिस्तान के लिए नया रास्ता खोल दिया है | भारत की सहायता से अब जो नया रास्ता बन रहा है, उसके कारण पाकिस्तान की दादागीरी खत्म हो जाएगी | जब से पाकिस्तान बना है, अफगानिस्तान की सबसे बड़ी समस्या यह है कि वह हिन्द महासागर तक कैसे पहॅुंचे? अफगानिस्तान अपने अन्तरराष्ट्र्रीय यातायात और आवागमन के लिए पाकिस्तान पर निर्भर है | अगर पाकिस्तान रास्ता न दे तो अफगानिस्तान का हुक्का-पानी बंद हो जाता है | अफगानिस्तान चारों तरफ से जमीन से घिरा हुआ है | उसकी सीमा को समुद्र कहीं भी नहीं छूता | जो जमीनी सीमाऍं ईरान, तुर्कमेनिस्तान, उज़बेकिस्तान, चीन और ताजि़किस्तान को छूती हैं, उनसे होकर कई रास्ते बाहर जाते हैं और अन्दर आते हैं लेकिन वे यूरोप, अमेरिका, चीन और भारत जैसे देशों के लिए बहुत लंबे पड़ते हैं और बड़े खर्चीले हैं | यदि उन रास्तों से अफगानिस्तान अपना अन्तरराष्ट्र्रीय व्यापार करे तो उसका दीवाला पिट जाए | पाकिस्तान होकर जानेवाले रास्तों का इस्तेमाल हजारों वर्षों से हो रहा है | वे सबसे छोटे और सस्ते हैं | अफगान लोग उन पर अपना प्राकृतिक अधिकार जताते हैं | इसी कारण पाकिस्तान अफगानों को ब्लेकमेल करता रहता है | 1950, 1955 और 1961 में दोनों देशों की सीमाऍं सील हो गई थीं | युद्घ की नौबत आ गई थी | सोवियत संघ ने ताशकंद और काबुल के बीच हवाई पुल का निर्माण कर दिया था | अफगानिस्तान का दाना-पानी बंद न हो जाए, इसलिए उसने हवाई जहाजों का तांता लगा दिया था | अब जबकि भारत की सहायता से अफगानिस्तान के पश्चिमी क्षेत्र में जो सड़क बन रही है, वह पाकिस्तान पर अफगानिस्तान की निर्भरता सदा के लिए समाप्त कर देगी | अफगान यातायात और परिवहन के लिए कराची का स्थान बंदरे-अब्बास ले लेगा और उसका माल अब हिन्दमहासागर की बजाय फारस की खाड़ी से सारी दुनिया में पहॅुंचेगा |
कुल मिलाकर पाकिस्तान को यह लगता है कि भारत की कुचालों के कारण अब काबुल में पाकिस्तान का पन्ना काफी फीका पड़ जाएगा | इस प्रकि्रया को मजबूत बनाने का काम वे लोग कर रहे हैं ,जिन्हें कल तक मुजाहिदीन के नाम से जाना जाता था और जो आजकल काबुल में काफी प्रभावशाली हैं | ये लोग पिछले दस साल में भारत के मित्र बन गए हैं | हालॉंकि इन्होंने बरसों-बरस पेशावर में अपना घर और मुख्यालय बनाए रखा | पाकिस्तान की सहायता पाकर रूसियों और कम्युनिस्टों से लड़े और 1992 में सत्तारूढ़ भी हुए | लेकिन आज ये लोग पाकिस्तान-विरोधी इसलिए हो गए है कि इन्हें गिराने के लिए ही पाकिस्तान ने तालिबान को उठाया था | पूर्व राष्ट्र्रपति बुरहानुद्रदीन रब्बानी, वर्तमान रक्षामंत्री फहीम, विदेश मंत्री अब्दुल्ला और इस्लामी जमायत के नेता कानूनी को पाकिस्तान अपना दुश्मन इसलिए भी समझता है कि ये लोग फारसीभाषी अफगानों के नेता माने जाते हैं | इन्हें पाकिस्तानी लोग उत्तरी-गठबंधन के नेता कहकर पुकारते हैं | ‘उत्तरी’ इसलिए कि अफगानिस्तान के उत्तरी हिस्सों में रहनेवाले ज्यादातर लोगों की भाषा फारसी है जबकि पूर्वी और दक्षिणी हिस्सों में रहनेवाले पश्तोभाषी हैं | ये हिस्से पाकिस्तान के निकट हैं और उत्तरी हिस्से दूर हैं | पाकिस्तान के पड़ौसी हिस्सों में प्राय: पठान रहते हैं और उत्तर हिस्सों में ताजि़क, उज़बेक, हजारा, किरगीज़ आदि लोग रहते हैं | यद्यपि हामिद करज़ई स्वयं पोपलजई पठान हैं लेकिन उनके मंत्र्िामंडल में गैर-पठानों का बहुमत है | पाकिस्तान की मान्यता है कि रक्षा मंत्री फहीम के दबाव में आकर करज़ई अफगान सेना में गैर-पठानों को भर जाने देंगे | यदि ऐसा होगा तो अफगान राजनीति और फौज, दोनों में से पठानों की प्रभुता समाप्त हो जाएगी | पठानों की प्रभुता काबुल में बनी रहे, यह पाकिस्तान के लिए इसलिए जरूरी है कि खुद पाकिस्तान में अफगानिस्तान से ज्यादा पठान रहते हैं | पठान-डोर का इस्तेमाल करके पाकिस्तान काबुल में अपनी कठपुतलियॉं नचाना चाहता है | इस मनोरथ को भंग करने का कार्य फारसीवान नेता कर रहे हैं | उन्हें भारत के साथ नत्थी करने में पाकिस्तान को एक मिनिट की भी देर नहीं लगती लेकिन पाकिस्तान यह समझने की कोशिश नहीं करता कि पिछले 30 वर्षों के झंझावात ने अफगानिस्तान का राजनीतिक परिदृश्य ही बदल दिया है | 1747 में अहमदशाह अब्दाली ने जैसा अ फगानिस्तान बनाया था, अब ढाई सौ साल बाद भी उसे इतिहास के मर्तबान में मुरब्बे की तरह सुरक्षित नहीं रखा जा सकता | अफगानिस्तान में अब कोई एक जाति अपना एकछत्र वर्चस्व बनाकर नहीं रख सकती | यदि ताजि़क, उज़बेक, हजारा आगे आ रहे हैं तो वे भारत के उकसावे के कारण नहीं बल्कि पिछले 30 वर्षों की उथल-पुथल के कारण आ रहे हैं | यदि आज औसत अफगान कहता है कि हम पामिस्तान का अहसान क्यों मानें तो इसके पीछे भारत का दुष्प्रचार नहीं, उनका अपना अनुभव है | वे कहते हैं कि अफगान-प्रतिरोध के ज़माने में पाकिस्तान ने पश्चिम से जितना पैसा बनाया और हथियार कबाड़े उतने उसने शीतयुद्घ में भी नहीं पाए | जैसे आज वह आतंकवाद को भुना रहा है, वैसे ही उसने बीस साल तक अफगान-संकट को भुनाया | पाकिस्तान ने अफगानिस्तान की जितनी मदद की, उससे ज्यादा अफगानिस्तान ने पाकिस्तान की मदद की है | क्या यह भारत के उकसावे पर कहा जा रहा है ? लेकिन क्या किया जाए? काबुल में हर जगह पाकिस्तान को भारत का भूत दिखाई पड़ रहा है |
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