नया इंडिया, 29 मई 2014: मोदी-मंत्रिमंडल ने पहली बैठक में एक ऐतिहासिक फैसला किया लेकिन इसके लिए पहले बधाई हमें सर्वोच्च न्यायालय को देनी होगी और फिर मोदी सरकार को! न्यायालय ने केंद्र सरकार को आदेश दिया था कि वह विदेशों से काला धन वापस लाने के लिए एक विशेष जांच दल का गठन करे। यह आदेश जुलाई 2011 में दिया गया था लेकिन मनमोहन-सरकार तीन साल तक कुंभकर्ण की नींद सोती रही। अदालत ने दुबारा उसे तीन हफ्ते की मोहलत दी। इस बार भी वह चूक गई। अदालत ने फिर एक हफ्ते का मौका दिया।
मनमोहन-सरकार चाहती तो जांच दल का गठन कोई बड़ी बात नहीं थी लेकिन मोदी-सरकार के सिर यह सेहरा बंधना था सो बंध गया। इसीलिए सर्वोच्च न्यायालय के साथ उसको भी बधाई। इस निर्णय से राष्ट्र का भला तो होगा ही, यह खबरीला भी है। काले धन ने इस देश में जबर्दस्त खलबली मचाई थी। बाबा रामदेव के आंदोलन ने ही मनमोहन सरकार की विदाई तय कर दी थी। राम जेठमलानी जैसे निर्भीक और तेज-तर्रार वकीलों के वकील को भी बधाई कि जिनके तर्कों ने मनमोहन सरकार को धराशायी कर दिया और अदालत को विवश कर दिया कि वह काले धन की वापसी के लिए सरकार के कान खींचे।
इस विशेष जांच दल में ऐसे पूर्व न्यायाधीश और अफसर रखे गए हैं, जो विदेशों में छिपे भारतीय काले धन को खोज निकालने में कोई कसर उठा न रखेंगे लेकिन पिछले तीन साल में क्या सारा काला धन खुर्द-बुर्द नहीं हो गया होगा? क्या काले धन वालों को मनमोहन सरकार ने अपने निकम्मेपन से जो मौका दिया है, उसे उन्होंने गवां दिया हेागा? तो भी एक अनुमान के अनुसार हमारा कई लाख-करोड़ का काला धन विदेशी बैंकों में जमा है। यदि वह जब्त कर लिया जाए तो मोदी सरकार के पास इतना पैसा इकट्ठा हो जाएगा कि अगले दस साल तक देशों के लोगों को किसी भी प्रकार का टैक्स नहीं देना पड़ेगा।
इस जांच दल से अदालत की अपेक्षा यह भी है कि वह काले धन की उत्पत्ति पर रोक लगाने के उपाय भी बताए। यदि इस जांच-दल को कोई समय-सीमा भी दी जाती तो अच्छा रहता। पार्टियों के नेता काले धन के मोहताज़ रहे हैं। नई सरकार के रास्ते में भी तरह-तरह के रोड़े अटकाए जाएंगे लेकिन नरेंद्र मोदी से देश आशा करेगा कि वे संपूर्ण अर्थ-व्यवस्था को ऐसा स्वरुप देंगे कि काले धन को पैदा करने की रुचि ही समाप्त हो जाए।
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