नया इंडिया, 18 अगस्त 2013 : देश का अरबों टन कोयला मिट्टी से भी सस्ता बेच देनेवाली इस सरकार को यदि अब संसद कठघरे में खड़ा नहीं करेगी तो कब करेगी? सर्वोच्च न्यायालय ने मनमोहन-सरकार की इस डकैती पर उंगली रखी तो स्वाधीन भारत के इस सबसे बड़े घोटाले की जांच शुरु हुई। लेकिन ताज़ा खबर यह है कि कोयला-घोटाले की सारी फाइलें कोयला मंत्रालय के दफ्तरों से ही गायब हो गई हैं! जिन 157 कंपनियों ने कोयले की खदानों के लिए अर्जी दी थीं, और जिनकी अर्जियां नामंजूर हो गई थीं, वे सब गायब कर दी गई हैं। अब यह पता चलाना मुश्किल हो जाएगा कि इन अर्जियों को रद्द किसलिए किया गया था? क्या इसलिए कि अर्जी देनेवालों ने नेताओं और अफसरों को पर्याप्त रिश्वत नहीं दी थी या कोई और उचित कारण था? इसी प्रकार जिन 45 खदानों के लायसेंस दिए गए थे, उनकी फाइलें भी गायब हैं और वे फाइलें भी गायब हैं, जिनमें प्रधानमंत्री-कार्यालय की सिफारिश के आधार पर मंजूर की गई अर्जियां भी थीं।
इन सब अर्जियों पर विचार करने के लिए जिस स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक 1 मई 2005 को हुई थी, उसकी भी सारी कार्यवाही गायब है याने कोयला घोटाले की जांच अब खाली झुनझुना बनकर रह जाएगी। सर्वोच्च न्यायालय अब क्या करेगा? अपना माथा ठोकेगा और सरकार की निंदा करके चुप बैठ जाएगा। यदि फाइलें गुम हो जाना अपराध है और इस अपराध के लिए किसी को सजा दी जा सकती है तो सर्वोच्च न्यायालय जरुर कुछ कार्रवाई कर सकता है लेकिन इस कार्रवाई के होते-होते तो यह सरकार ही विदा हो जाएगी।
तो क्या किया जाए? मेरी राय है कि अब भारत की संसद लगाम थामे। वह संप्रभु है। उससे बड़ा कोई नहीं है। वह इतिहास बनाए। साहस दिखाए। वह उन सब लोगों के खिलाफ सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित करे, जो इस कोयला-घोटाले के लिए जिम्मेदार हैं। तत्कालीन कोयला मंत्री याने प्रधानमंत्री स्वयं जिम्मेदारी लें और सारे घोटाले की जांच होने तक अपना पद छोड़ें। आशा है कि प्रधानमंत्री खुद साफ-सुथरे बच निकलेंगे लेकिन जिन लोगों ने उन्हें अपने कवच की तरह इस्तेमाल किया है, वे फंस जाएंगे। ऊपर से नीचे तक जितने भी कोयला-अफसर हैं, उन्हें भी मुअत्तिल किया जाए और जरुरी हो तो गिरफ्तार किया जाए और जब तक कोयला-घोटाले की सारी फाइलें वापस नहीं आ जाएं, उन सबकी चल-अचल संपत्तियों पर भी प्रतिबंध लगा दिया जाए।
यही कार्रवाई तत्कालीन कोयला राज्य-मंत्रियों और उन कंपनियों के मालिकों के विरुद्ध होनी चाहिए, जिन्होंने धोखाधड़ी से कोयला-खदानें अपने नाम करवा ली हैं। इस समय यदि संसद कार्रवाई कर सके तो कांग्रेस की डूबती नैया को भी थोड़ी राहत मिल सकती है और सर्वोच्च न्यायालय को भी संबल मिल सकता है। इस मामले में स्वयं प्रधानमंत्री ही पहल कर दें तो क्या कहने? सिर्फ इसी पहल के दम पर वे तिबारा प्रधानमंत्री बनने का सपना भी देख सकते हैं। यह साहसिक और अपूर्व कार्य कांग्रेस की सहमति के बिना कैसे हो सकता है?
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