नवभारत टाइम्स, 8 मार्च 2002 : गुजरात में जो हुए, वे दंगे नहीं थे| दंगों में मार-काट दोतरफ़ा होती है| यहाँ तो एकतरफा हमले हुए| पहले मुसलमानों ने एकतरफा हमला किया और फिर हिन्दुओं ने भी एकतरफा हमला किया| हमले दोनों तरफ से हुए लेकिन एक के बाद एक ! एक साथ दोनों तरफ से कुछ नहीं हुआ| तो फिर जो हुआ, उसे दंगा कैसे कहा जाए ? कहनेवाले कहते हैं कि पहले हमला हुआ और फिर जवाबी हमला हुआ| पहले गोधरा हुआ और फिर अहमदाबाद हुआ| हिसाब बराबर हो गया| मुख्यमंत्र्ी नरेन्द्र मोदी ने भी यही कहा| कि्रया हुई तो प्रतिकि्रया हुई| प्रतिकि्रया ज्यादा हो सकती थी| कम हुई| अपराध की भयंकरता के अनुपात में होती तो सौ गुना हो सकती थी| सारे गुजरात में बल्कि सारे भारत में हो सकती थी| बकौल मुख्यमंत्र्ी गुजरात के लोगों ने काफी संयम दिखाया|
पहला सवाल यह है कि गुजरात में हिसाब बराबर कैसे हुआ ? 57 बेकसूर लोग मारे गए| बदले में 450 बेकसूर लोग मारे गए| यहाँ हिसाब बराबर कैसे हुआ ? 57 में 450 और जुड़ गए| घाटा कई गुना बढ़ गया| यदि डेढ़ हजार कसूरवार गोधरा में पकड़े जाते और उनके बदले पाँच हजार कसूरवार अहमदाबाद आदि में पकड़े जाते और उनमें से कुछ फाँसी पर लटकाए जाते और कुछ को आजीवन कारावास होता तो हिसाब जरूर बराबर हो जाता| अपराध के मुकाबले महा-अपराध हो, बर्बरता के मुकाबले महाबर्बरता हो और कहा जाए कि हिसाब बराबर हुआ तो माना जाना चाहिए कि राज्य नामक संस्था समाप्त हो गई है| राज्य का धर्म क्या है ? अपराध को बढ़ाना या अपराध को घटाना ? गुजरात सरकार ने क्या अपना धर्म निभाया ? गोधरा का जघन्य हत्याकांड सुबह लगभग आठ बजे हुआ| 24 घंटे तक गुजरात सरकार क्या करती रही ? उसने क्या-क्या कदम उठाए ? दोपहर तक सारे भारत को खबर लग चुकी थी| सारे भारत में दुख और रोष की लहर फैल गई थी| हर आदमी डरा हुआ था कि देश के चप्पे-चप्पे में दंगे फूट पड़ेंगे लेकिन गुजरात सरकार सोई रही| मान लिया कि वह अपना राजधर्म नहीं निभा पाई| लेकिन वह राजनीतिक धर्म तो निभाती| गुजरात की सरकार हिन्दुत्व की संतान है| गोधरा के निहत्थे कार सेवक भी नरेन्द्र मोदी की तरह हिन्दुत्व के सिपाही थे| कम से कम हिन्दुत्व के सेवकों पर हुए हमले के कारण ही मुख्यमंत्र्ी को तुरंत गोधरा दौड़ना था| पता करना था कि इतना सुनियोजित हमला करने की हिमाकत किसने की है और उसे तत्काल दंडित कैसे किया जाए ! अगर वे ऐसा करते तो कम से कम अपना राजनीतिक धर्म निभाते और उससे राजधर्म भी सिद्घ हो जाता याने फिर हिन्दुत्ववादी तत्वों को जवाबी हमला करने की शायद जरूरत नहीं पड़ती| लेकिन जो सरकार अपने पार्टी-कार्यकर्ताओं के हत्यारों को पकड़ने में भी मुस्तैदी नहीं दिखा सकती, उस सरकार को क्या कहा जाए ? क्या वह सरकार नपंुसक नहीं कहलाएगी, जो अपनी जिम्मेदारी नागरिकों पर डालकर सो जाए ? गोधरा के हत्यारों को पकड़ने की बजाय अहमदाबाद में नए हत्यारों की फौज खड़ी करने का कलंक किसके माथे पर है ? यदि सरकार निकम्मी होगी तो लोग कानून अपने हाथ में क्यों नहीं ले लेंगे ? लोगों ने यही किया ? लेकिन लोग जब कानून अपने हाथ में लेते हैं तो अक्सर वे अन्याय ही करते हैं| गोधरा के गुण्डों की सज़ा उन्होंने अहमदाबाद के बेकसूरों को दी| क्या यह न्याय है? इस अन्याय के लिए कौन जिम्मेदार है ? यदि लोग इसी तरह अपना फैसला खुद करेंगे तो राज्य की जरूरत क्या है ? सरकार जैसे सफेद हाथी को क्यों पाला जाए ?
इसके अलावा यह समझना कि हिसाब बराबर हुआ, परले दज़ेर् की राजनीतिक मूर्खता है| खुद प्रधानमंत्र्ी को कहना पड़ा कि गुजरात में जो हुआ, वह राष्ट्रीय कंलक है| गोधरा जैसा कांड भारत ही नहीं, सारी दुनिया के लिए अपूर्व वीभत्सता से भरा हुआ था| इसके पहले कि सारी दुनिया में हाहाकार मचता, इस्लामी आतंकवादियों की भर्त्सता होती और हिन्दुत्ववादी शक्तियों के प्रति सहानुभूति की विश्व-लहर उमड़ती, तथाकथित हिन्दुत्ववादियों ने अपने पाँव पर कुल्हाड़ी मार ली| जो हिसाब कभी बराबर नहीं हो सकता था, उसे सचमुच बराबर कर लिया| अपने मुँह पर उन्होंने वही कालिख पोत ली, जो इस्लामवादियों ने गोधरा में अपने मुँह पर पोती थी| यह वीरता की बराबरी नहीं थी, कायरता की बराबरी थी| जैसे उन्होंने निहत्थे हिन्दुओं को मारा, वैसे इन्होंने निहत्थे मुसलमानों को मारा| अब गर्व से क्या कोई कह सकता है कि मैं मुसलमान हूँ या मैं हिन्दू हूँ| ऐसे मुसलमानों और ऐसे हिन्दुओं पर लानत है जो निहत्थों की हत्या करते हैं| ऐसे इस्लाम और ऐसे हिन्दुत्व पर भी लानत है, जो इस तरह के हत्याकांडों को सही बताते हैं या उनके प्रति सहानुभूति रखते हैं|
हमारी इस राय पर यह सवाल उठाया जा सकता है कि क्या हिन्दू चुप्पी खींच जाते तो ठीक रहता ? जवाबी हमले के कारण क्या मुसलमानों को सही सबक नहीं मिल गया ? क्या मुसलमानों को मर्यादा-पालन सिखाना गलत है ? इन प्रश्नों का जवाब ‘हाँ’ या ‘ना’ में ंनहीं हो सकता| प्रश्नों के उत्तर में प्रश्न ही किए जा सकते हैं ? उनमें से जवाब अपने आप निकलेंगे| जैसे हिन्दुओं को चुप रहने के लिए कौन कह रहा है ? अत्याचार बर्दाश्त करने के लिए तो ‘सेक्यूलरवादी’ भी नहीं कहते ! गोधरा का एक मात्र् जवाब क्या अहमदाबाद ही था ? यदि गुजरात सरकार गोधरा के हत्यारों को सूर्यास्त के पहले ही पकड़ लेती और आपात्र न्यायालय तुरन्त न्याय करके हत्यारों को लटका देता तो क्या यह सांप्रदायिक हिंसा का स्थायी और सभ्य जवाब नहीं होता ? ऐसा सभ्य जवाब पिछले 54 वर्ष में कभी नहीं दिया गया| इसीलिए एक सभ्य जवाब के अभाव में हजारों असभ्य जवाब भारतमाता के भाल पर फुन्सियों की तरह उग आते हैं| नरेन्द्र मोदी और राजीव गाँधी में क्या फर्क है ? अभी कि्रया की प्रतिकि्रया हुई है और 1984 मे बरगद उखड़ा था तो जमीन हिली थी| क्या दंगाई हत्यारों को भारत नामक राज्य ने कभी कोई जबर्दस्त सजा दी है ? अगर गुजरात का दोहरा हत्याकांड हमारे नेताओं में भारत राष्ट्र-राज्य का भाव प्रबल कर सके तो 500 बेकसूर लोगों की मौत बिल्कुल निरर्थक साबित नहीं होगी|
जहाँ तक मुसलमानों को सबक सिखाने का सवाल है, इसमें शक नहीं कि जवाबी हत्याकांड के कारण देश के सभी मुसलमानों को गहरा सदमा लगा है| वे डर गए हैं| लेकिन क्या यह सच नहीं कि गोधरा के हत्यारों के प्रति उनके दिल में जो हिकारत पैदा हुई थी, वह नदारद हो गई है ? क्या यह मन:स्थिति देश के लिए हितकर है ? क्या हम यह मानकर चल रहे हैं कि भारत के औसत मुसलमान की सहानुभूति गोधरा के हत्यारों के प्रति थी ? कतई नहीं| न तब थी और न अब है लेकिन अब सैकड़ों लोगों को सिर्फ उनके मुसलमान होने के कारण मरता हुआ देखकर वे गोधरा के प्रति तटस्थ हो जाएँ तो क्या यह स्वाभाविक नहीं है ? गोधरा के गुण्डों को अपना सबसे बड़ा दुश्मन माननेवाले भारतीय मुसलमान अगर अब उनके प्रति उदासीन हो जाएँ तो इसके लिए कौन जिम्मेदार है ?
यदि भारत को भारत की तरह रहना है और लेबनान तथा फलस्तीन की तरह नहीं तो क्या उसे ऐसा राष्ट्र-राज्य नहीं बनना होगा, जिसमें किसी जघन्य अपराध को सारा राष्ट्र एक ही नज़र से देखने का आदी बने ? गोधरा का जवाब अहमदाबाद के रूप में देकर क्या हम मुसलमानों को सचमुच कोई सबक सिखा पाएँगे ? गोधरा में जिन मुसलमानों ने नर-संहार किया, क्या वे समस्त या अधिकांश भारतीय मुसलमानों के प्रतिनिधि थे ? क्या कार-सेवकों का खून बहाकर उन्होंने भारतीय मुसलमानों की किसी दबी-छिपी भावना को वाणी दी है ? क्या भारतीय मुसलमान सचमुच ऐसा जघन्य कृत्य कर सकते हैं ? क्या वे इतना बड़ा खतरा मोल ले सकते हैं ? क्या वे पानी में रहकर मगर से बैर कर सकते हैं ? भारत-विभाजन के समय जो हुआ सो हुआ और दंगों के दौरान दोनों तरफ से जो होता है, सो होता है लेकिन गोधरा में जो हुआ, आज़ादी के बाद कभी नहीं हुआ| इसका अर्थ क्या है ? क्या इसका अर्थ यह नहीं कि गोधरा में कोई अदृश्य बाहरी ताकत काम कर रही थी ? उस अदृश्य शक्ति को कुचलने की बजाय गुजरात सरकार बगलें झाँकती रही| गोधरा के हत्यारों ने क्या सबक सीखा ? उनका क्या बिगड़ा ? उनके-जैसे भावी हत्यारों के दिल में कौनसी दहशत बैठी ? जिन्हें सबक सिखाया जाना था, उनमें से बहुत कम पकड़े गए हैं| वे अब पुलिस के पहरे में सुरक्षित हैं और जिन्हें सबक सिखाना अनावश्यक था, उन्हें मौत के घाट उतार दिया गया है| यही हमारा राजधर्म है|
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