नया इंडिया, 05 फरवरी 2014: सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश कभी-कभी कमाल कर देते हैं। उनकी मामूली-सी टिप्पणी देश की मनोदशा बदलने के लिए काफी होती है। हाल ही में बड़े लोगों की कार पर लालबत्ती का मामला दुबारा अदालत के सामने आया। सरकारी वकील ने अपना पक्ष प्रस्तुत करते हुए महामाननीय (हाई डिग्निटरीज़) लोगों का जिक्र किया तो न्यायमूर्ति आर.एम. लोढ़ा ने पूछा, कौन है, इस देश में महामाननीय? या महामहिम? या महामान्य? अतिमहत्वपूर्ण व्यक्ति? लोकतंत्र में इन उपाधियों वाला वह व्यक्ति कैसे हो सकता है, जो किसी सरकारी पद पर है?
हकीकत में सरकारी पदों पर जो भी लोग हैं, वे जनता के सेवक हैं। जनता के सेवकों को जब हम महामहिम या महामान्य आदि कहते हैं तो उनके अहंकार को पुष्ट करते हैं और अहंकार के बढ़ जाने के कारण वे सेवा करने के बजाय शासन करने लगते हैं। वे सेवक की बजाय शासक बन जाते हैं। वे समझते हैं कि उनकी इच्छा ही कानून है। हर नगारिक को उनके आगे झुकना ही चाहिए। वे अपने आप को आम नागरिकों से अलग और ऊपर समझने लगते हैं। लोकतंत्र में सब समान हैं। राजा और रंक को समान अधिकार हैं। लेकिन हमारे राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मंत्रिगण, सांसद, विधायक और यहां तक कि नौकरशाह लोग अपने आप को कानून से ऊपर समझने लगते हैं। भ्रष्टाचार की शुरुआत यहीं से होती है।
अपने भ्रष्टाचार को ये लोग कानूनी जामा पहना देते हैं। देश में करोड़ों लोगों के सिर पर छत नहीं है। वे खेतों, खलिहानों, गोदामों, फुटपाथों पर सोते हैं और राष्ट्रपति के पद पर बैठे किसी भी व्यक्ति को आज तक कोई शर्म नहीं आई, 340 कमरों के विशाल भवन में रहते हुए! गवर्नर जनरल लार्ड माउंटबेंटन की तरह वे भी वहीं पसर गए। बस उसका नाम राष्ट्रपति भवन रख दिया। क्या आपने सोचा कि आप जिस राष्ट्र के पति बने हुए हैं, उसके 100 करोड़ लोग भूखे मरते हैं? उनके पास मनुष्यों के खाने लायक भोजन नहीं है, पहनने लायक वस्त्र नहीं हैं और रहने लायक घर नहीं हैं। आपके रास्ते पर प्रधानमंत्री आदि सभी महामहिम लोग चल पड़े हैं। इसमें दोष आपका नहीं है। दोष है, हम सबकी गुलाम मानसिकता का। अंग्रेज चले गए लेकिन वे हमारे सेवकों को हमारे मालिक बनवा गए। यह गुलामी भी हमें गुलामी नहीं लगती। यह हमारी नस-नस में बस गई है। वरना, क्या वजह है कि दिल्ली के ‘बागी’ मुख्यमंत्री ने भी अपने लिए शुरु में 10 कमरों के मकान की हामी भर दी थी? हमारे नेतागण जनता के सच्चे सेवक बनें, इस दृष्टि से यह शुरुआत बहुत अच्छी है कि वे अपने आपको माननीय या महामहिम या महामान्य आदि कहलवाना बंद करें। प्रणब दा ने अपने तईं पहले से यह हिदायत दे रखी है कि उनके लिए ‘महामहिम’ आदि शब्दों का प्रयोग न करें लेकिन यदि वे राष्ट्रपति भवन भी खाली कर दें तो वे सचमुच बड़े आदमी के तौर पर जाने जाएंगे।
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