नया इंडिया, 11 सितंबर 2014 : क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि भारत और पाकिस्तान की तरह ब्रिटेन और स्कॉटलैंड भी टूट सकते हैं? जी हां, टूट सकते हैं। 18 सितंबर को यही तय होने वाला है। ब्रिटेन और स्कॉटलैंड के लोग हमारी तरह कुल्हड़ में गुड़ फोड़ने वाले नहीं हैं। दोनों तरफ के नेता मिलकर अपनी मनमर्जी का फैसला करने वाले नहीं हैं, जैसा कि नेहरु और जिन्ना ने किया था। वे लोग लोकतांत्रिक तरीका अपना रहे हैं। ब्रिटिश संसद ने तय किया है कि स्कॉटलैंड के लोगों से ही पूछा जाए कि आप क्या चाहते हैं? आप लोग अलग राष्ट्र बनाना चाहते हैं या जैसे 300 साल से ‘युनाइटेड किंगडम’ के हिस्से हैं, वैसे ही बने रहना चाहते हैं? यदि भारत की जनता को भी जनमत-संग्रह का यह अधिकार दिया जाता तो क्या भारत का बंटवारा हो सकता था?
बटवारा तो ब्रिटेन के कई हिस्सों का बरसों से मांगा जा रहा है लेकिन वह टलता रहा है। ब्रिटेन के वेल्श, स्कॉट और आयरिश लोग यह महसूस करते रहे हैं कि उनकी भाषा, संस्कृति और पहचान को अंग्रेज लोग दबाए रखते हैं। अंग्रेजी भाषा के दबदबे ने उनके लिए शिक्षा, चिकित्सा, न्याय, राजनीति, काम-धंधे याने सभी क्षेत्रों में उन्हें पिछड़वा रखा है। ब्रिटेन अपनी आन-बान-शान के चक्कर में अरबों-खरबों पौंड परमाणु शस्त्रों पर बहाता रहता है और इन गैर-अंग्रेजी क्षेत्रों के विकास की उपेक्षा करता है। ब्रिटेन से स्कॉटलैंड को अलग करने की मांग करनेवाली स्कॉटिश नेशनल पार्टी सन 2011 में सत्तारुढ़ हो गई थी। उसी की मांग पर अब जनमत संग्रह हो रहा है। इस पार्टी का कहना है कि 50 लाख की आबादी वाले स्कॉटलैंड के पास तेल और गैस का इतना बड़ा भंडार है कि वह यूरोप का सबसे मालदार देश बन जाएगा। अभी भी उसकी प्रति व्यक्ति आय ब्रिटिश नागरिक से 20 प्रतिशत ज्यादा है। इस बार मतदान-पूर्व सर्वेक्षणों का कहना है कि स्कॉटलैंड की जनता आधी-आधी दोनों तरफ बट गई है। पलड़ा किधर भी झुक सकता है।
इसीलिए ब्रिटिश पार्लियामेंट की तीनों प्रमुख पार्टियों के नेता प्रधानमंत्री डेविड केमरन, प्रतिपक्ष के नेता ईद मिलिबंड और लिबरल पार्टी के नेता निक क्लेग भागे-भागे एडिनबरा गए हैं ताकि वे स्कॉट लोगों को साथ रहने के लिए मना सकें। स्कॉट झंडे को भी यूनियन जैक के साथ प्रधानमंत्री निवास पर फहरा दिया गया है। ब्रिटिश महारानी से भी प्रार्थना की जा रही है कि वे स्कॉट लोगों के नाम खुली अपील जारी करें। पता नहीं, ऊंट किस करवट बैठेगा? यदि स्कॉटलैंड टूटा तो यूरोप के कई अन्य राष्ट्र भी हिलने लगेंगे। बेल्जियम, इटली, स्पेन, डेनमार्क आदि कई राष्ट्रों में अलगाववादी आंदोलन चल रहे हैं। यह इक्कीसवीं सदी का बड़ा मजाक होगा कि यूरोपीय संघ दुनिया के देशों को मिल-जुलकर काम करने का सबक दे रहा है और उसके अपने सदस्य अंदर से टूट रहे हैं। वे क्यों नहीं एक रह पा रहे हैं?
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