नया इंडिया, 08 जनवरी 2014 : मुजफ्फरनगर में जाटो और मुसलमानों के बीच जो दंगे हुए, वे तो बेहद दुखद और दुर्भाग्यजनक थे ही, अब जो नए तथ्य सामने आ रहे हैं, वे भारत के घावों पर तेजाब छिड़कने-जैसा है। अब पता चला है कि हरयाणा के दो इमामों को गिरफ्तार किया गया है। मेवात में रहनेवाले ये इमाम लश्करे-तोयबा के सदस्य हैं और ये शरणार्थी शिविरों में जाकर उन्हें भड़का रहे थे और उनसे दिल्ली में आतंकवाद फैलाने की तैयारी करवा रहे थे। इन इमामों का संबंध लश्कर के आतंकवादी जावेदी बलूची के साथ बताया गया है।
दो अन्य इमामों की तलाश जारी है, जो मुसलमान शरणार्थियों को पाकिस्तानी आतंकवादी गुटों का रंगरुट बनाने पर तुले हुए हैं। ये इमाम पुलिस के डर के मारे भूमिगत हो गए हैं लेकिन इनकी काली करतूतों पर से कुछ शरणार्थियों ने नकाब उठा दिया है। इन देशभक्त मुसलमानों ने सिर्फ उन इमामों द्वारा दिए गए लालच को ठुकराया ही नहीं, उनकी राष्ट्रविरोधी गतिविधियों की खबर पुलिस को भी दे दी है। उन्होंने पटियाला हाउस में अदालत में दंड संहिता की धारा 164 के अन्तर्गत गवाही दी है और कहा है कि ये इमाम उन्हें पाकिस्तानी आतंकवादी संगठनों में घसीटने की कोशिश कर रहे थे।
सबसे पहले तो मैं इन देशभक्त मुसलमानों की तहे-दिल से सराहना करना चाहता हूं। उन्होंने अपने व्यक्तिगत दुख-दर्द को देश की खातिर दरकिनार कर दिया। उन्होंने अपनी निजी तकलीफों को अपनी देशभक्ति पर हावी नहीं होने दिया। जहां तक उन इमामों का सवाल है, उनके जाल में न फंसकर मुजफ्फरनगर के मुसलमानों ने सांप्रदायिकता के मुंह पर करारा तमाचा लगाया है। पाकिस्तान के इस्लामी तत्वों की हरचंद कोशिश यह होती है कि एकदम निजी, स्थानीय और द्विपक्षीय मामलों को भी वे हिंदू-मुस्लिम सवाल बना देते हैं ताकि दंगे भड़कें और वैमनस्य फैले ताकि भारत कमजोर हो। इस नापाक कोशिश को मुजफ्फरनगर के मुसलमानों ने रद्द कर दिया। वास्तव में मुजफ्फरनगर में जो कुछ हुआ, वह दो परिवारों के बीच का मामला था। उस मामले का मजहब से कुछ लेना-देना नहीं था। वह मंदिर-मस्जिद या नमाज-पूजा या भारत-पाक का मुद्दा नहीं था। वह व्यक्तिगत मुद्दा या पारिवारिक मुद्दा, दो बड़े समूहों का मुद्दा बन गया, यह एक अलग बात है।
मुजफ्फरनगर के बारे में ये जो तथ्य सामने आए हैं, उनसे राहुल गांधी सही साबित हुए लगते हैं लेकिन राहुल ने इंदौर में जिस अदा से यह बात कही थी, वह अदा देश के सारे मुसलमानों को बहुत ही अपमानजनक लगी थी। राहुल के फट पड़ने पर ऐसा लगा कि मुजफ्फरनगर में जो दंगे हुए, वे पाकिस्तान के इशारे पर हुए। दूसरे शब्दों में मुलसमान पाकिस्तान के एजेंट हैं। यह तो कोई मामूली बुद्धि का आदमी भी समझ सकता है कि किसी लड़की को छेड़ने का स्थानीय मामला पाकिस्तान कैसे भड़का सकता है? हां, पाकिस्तान के उग्रवादी इस्लामी तत्व उसका फायदा जरुर उठा सकते हैं। यदि राहुल में राजनीतिक परिपक्वता होती तो वे इस मामले को पर्याप्त गंभीरता के साथ उठाते। इसके कारण उनकी अपनी छवि भी बनती और मुसलमान भी नाराज नहीं होते। राहुल ने जिस चलताऊ ढंग से सारे मामले को जिक्र किया, उससे तो ऐसा भी लगा कि कहीं उन्होंने कोई कपोल-कल्पित गप्प तो नहीं लगा दी। किसी बात का सही होना ही काफी नहीं है, उसे सही ढंग से उठाना भी जरुरी है।
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