दै. भास्कर, 24 अक्टूबर 2008 : श्रीलंका एक बार फिर भारत के लिए चुनौती बन गया है| कोई विदेशी मामला भारत को कैसे दुविधा में फंसा देता है, इसका उदाहरण यह संकट है| श्रीलंका की सरकार ने अगर लिट्टे के मुख्यालय को घेर लिया है और वह तमिल आतंकवादियों का सफाया करनेवाली है तो इससे भारत का क्या लेना-देना है ? यों तो कुछ भी लेना-देना नहीं होना चाहिए लेकिन असलियत यह है कि लेना-देना है और बहुत ज्यादा है| क्यों है ?
पहला तो इसलिए कि श्रीलंका में जितने तमिल हैं, उनसे कई गुना भारत में हैं| हमारे तमिल यह मानते हैं कि दुनिया के किसी भी देश में यदि तमिल हैं तो वे तमिलनाडु का ही विस्तार हैं| उनकी समस्या इनकी समस्या है| हमारे तमिलनाडु के लगभग सभी दलों ने एक बैठक करके भारत सरकार से माँग की है कि वह तुरंत हस्तक्षेप करे और लाखों तमिलों को बचाए| ऐसा नहीं है कि श्रीलंकाई फौज हजारों-लाखों तमिलों की हत्या कर रही है| लेकिन यह सत्य है कि तमिल क्षेत्रें में चल रहे युद्घ के कारण लाखों तमिल लोग शरणार्थी बन गए हैं| उनके भोजन, निवास और सुरक्षा की चिंता वास्तविक है| श्रीलंका की सरकार इस समस्या के प्रति सतर्क है| वह तमिल शरणार्थियों की सहायता के लिए जहाजों में माल भरकर भेज रही है लेकिन तमिल आतंकवादी इन जहाजों पर सीधे हमले बोल रहे हैं| उनका कहना है कि इन जहाजों में सहायता सामग्री नहीं, हथियार लदे हैं| वे ऐसा इसलिए कह रहे हैं कि शरणार्थी उनकी ढाल बन जाएँ ! शरणार्थियों की सहायता के नाम पर दुनिया के देश श्रीलंकाई सरकार पर दबाव डाले की वह लिट्टे के विरूद्घ अपना फौजी अभियान रोक दे|
तमिलनाडु के राजनीतिक दल भी यही चाहते हैं| श्रीलंका की तमिल जनता और वहाँ के तमिल आतंकवादियों में जो अंतर है, उसे वे भुला देना चाहते हैं| वे चाहते हैं कि तमिल जनता की ओट में तमिल आतंकवादियों की रक्षा हो| तमिल सांसदों ने केंद्र सरकार को धमकाया है कि वह श्रीलंका सरकार पर यदि दबाव नहीं डालेगी तो वे इस्तीफा दे देंगे| जाहिर है कि द्रमुक और पमक के सांसद इस्तीफा दे दें तो केन्द्र की काँग्रेस सरकार गिर जाएगी| ऐसे में केंद्र सरकार को हस्तक्षेप का नाटक करना पड़ रहा है| प्रधानमंत्री डाँ. मनमोहन सिंह और श्रीलंका के राष्ट्रपति महिंद राजपक्ष के बीच सीधी बातचीत भी हो चुकी है| प्रधानमंत्री ने तमिल लोगों की सुरक्षा और सहायता का विशेष आग्रह किया है और विदेश मंत्री प्रणव मुखर्जी ने भी संसद में स्पष्ट कर दिया है कि भारत आतंकवाद के बिल्कुल विरूद्घ है लेकिन तमिल जनता की सेवा के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार है| इस बयान से भारत के तमिलों के मन पर अच्छा असर पड़ा है| उग्रवादी तमिल पार्टियों का भी जोश थोड़ा ठंडा पड़ा है|
लेकिन उग्रवादी तमिल पार्टियों के नेता अब भी मांग कर रहे हैं कि भारत को श्रीलंका में वैसे ही हस्तक्षेप करना चाहिए, जैसा उसने कभी बांग्लादेश और मालदीव में किया था| वे यह भी चाहते हैं कि श्रीलंका के दो टुकड़े हो जाएँ और भारत अलग तमिल राष्ट्र (ईलम) की स्थापना करवाए| इससे अधिक नाजायज माँग क्या हो सकती है ? भारत इस तरह की मांग का समर्थन कैसे कर सकता है ? सबसे पहली बात तो यह है कि श्रीलंका के तमिल ही इस मांग का समर्थन नहीं करते| यदि तमिलों की बहुसंख्या तमिल ईलम बनाना चाहती है तो लिट्टे चुनाव क्यों नहीं लड़ती ? इसी मुद्दे पर जनमत-संग्रह क्यों नहीं करवाती ? अभी मई 2008 में लिट्टे-प्रभावित पूर्वी तमिल प्रांत में जो चुनाव हुए, उसमें लिट्टे के बागी कमांडर करूणा की पार्टी और सत्तारूढ़ सिंहल पार्टी ने मिलकर सरकार कैसे बना ली ? लिट्टे नेता प्रभाकरन किसी भी राजनीतिक समाधान के लिए तैयार नहीं हैं| उन्होंने अमृतलिंगम और नीलम तिरूचेल्वम जैसे लोकपि्रय तमिल नेताओं की हत्या कर दी, प्रधानमंत्र्ी प्रेमदास, ललित अतुलतमुदली तथा अन्य अनेक प्रमुख सिंहल नेताओं को भी मार डाला और राजीव गाँधी पर भी हाथ डाल दिया| भारत और अमेरिका-जैसे लगभग 30 देशों ने उनके संगठन पर प्रतिबंध लगा दिया है| राजीव गाँधी हत्याकांड में प्रभाकरण प्रमुख अपराधी है| ऐसे प्रभाकरन को बचाने के लिए भारत सरकार यदि कुछ भी करेगी तो स्वयं नहीं बच पाएगी| तमिल सांसदों के ब्लेकमेल के आगे झुकने से तो यह बेहतर होगा कि सरकार गिर जाए|
यह मौका है जबकि भारत सरकार श्रीलंका की सरकार का जमकर साथ दे और आतंकवाद की जड़ को ही उखाड़ दे| आत्मघाती आतंकवाद की शुरूआत श्रीलंका के लिट्टे ने ही की थी| लिट्टे के आतंकवादी न लोकतंत्र् में विश्वास करते हैं और न सह-अस्तित्व में ! यदि वे स्वतंत्र् राष्ट्र बन गए तो वे भारत से तमिलनाडु को अलग करने का नारा भी देंगे| वे मलेशिया के लिए भी सिरदर्द खड़ा कर देंगे| वे पूरे दक्षिण एशिया में शैतान की आंत सिद्घ होंगे| 25 साल में पहली बार वे घिरे हैं| राजपक्ष की सरकार उनके मूलोच्छेद के लिए कटिबद्घ है| उनके पक्ष में बोला गया एक शब्द भी भारत के हित में नहीं होगा| तमिल ईलम के समर्थन का मतलब है, भारत के दर्जन भर टुकड़े करना ! भारत-विसर्जन की विष-बेल को भारत क्यों सीचें ? यदि श्रीलंका में तमिल राष्ट्र खड़ा हो तो नेपाल में मधेसी, भूटान में नेपाली, पाकिस्तान में सिंधी, बलूची और पठान तथा अफगानिस्तान में ताजिक राष्ट्रों की मांग क्यों नहीं होगी| क्या हम सारे दक्षिण एशिया के हजार टुकड़े कर देना चाहेंगे ? क्या यह बृहत्तर भारत हजार गृहयुद्घों का समरांगण बनेगा ? कतई नहीं|
इसका मतलब यह नहीं कि श्रीलंका के डेढ़-दो लाख विस्थापित तमिलों की अनदेखी कर दी जाए| संयुक्तराष्ट्र संघ ने उनकी सहायता के लिए 750 टन खाद्य-सामग्री भिजवाई है| भारत भी बड़े पैमाने पर सहायता करे, जैसे कि उसने सुनामी के समय की थी| साथ ही लिट्टे के खत्म होते ही वह श्रीलंका के तमिलों के राजनीतिक अधिकारों के लिए भी पूरा दबाव डाले| स्वतंत्र् तमिल राष्ट्र के विरोध का मतलब तमिल स्वायत्ता का विरोध नहीं है| पूरे दक्षिण एशिया के अल्पसंख्यक प्रांतों के लिए स्वायत्ता और विकेंद्रीकरण का कोई सर्वस्वीकार्य मॉडल श्रीलंका से उभर सके तो इस क्षेत्र् में शांति और व्यवस्था काफी मजबूत हो जाएगी| उसे हिंसा और आतंकवाद से काफी हद तक छुटकारा मिल जाएगा|
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