नया इंडिया, 15 मार्च 2014 : विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद फिर चर्चा के विषय बन गए हैं। इस बार उन पर आरोप है कि उन्होंने विदेश में रहते हुए भारत के सर्वोच्च न्यायालय और चुनाव आयोग की निंदा की है। पहले देखें कि उन्होंने कहा क्या है? वे लंदन के प्रसिद्ध ‘स्कूल आॅफ ओरियंटल एंड एफ्रीकन स्टडीज़’ में बोल रहे थे। उनका विषय था – ‘भारत में लोकतंत्र की चुनौतियां’! उन्होंने वहां कई चुनौतियों का जिक्र अवश्य किया होगा और अच्छी तरह किया होगा, क्योंकि वे पढ़े-लिखे व्यक्ति हैं लेकिन यह पढ़े-लिखे होना ही उनका दुश्मन भी सिद्ध हो जाता है। उन्होंने किसी भी विचारशील व्यक्ति की तरह स्वभावतः विचार-स्वातंत्र्य का परिचय भी दे दिया। उस समय उन्हें शायद यह ध्यान नहीं रहा कि वे मंत्री भी हैं। यदि उनकी जगह कोई विचारक या पत्रकार वही बात कह देता तो शायद इतना हल्ला-गुल्ला नहीं होता।
उन्होंने कह दिया कि सांसदों और विधायकों के मामले में अभी-अभी सर्वोच्च न्यायालय ने जो फैसला दिया है, वह ‘न्यायाधीश का कानून’ है अर्थात वह संसद का बनाया हुआ कानून नहीं है। यह बात एकदम तथ्यात्मक है लेकिन इसका अर्थ निकालने बैठें तो आप परेशानी में पड़ जाएंगें। आप अपने आप से पूछेंगे कि क्या मंत्रीजी यह नहीं कह रहे हैं कि यह अदालत का बनाया हुआ कानून है जबकि अदालत को कानून बनाने का अधिकार ही नहीं है। यह अधिकार तो सिर्फ संसद या विधानसभा को होता है। मतलब यह कि अदालतों को व्यवहार मर्यादा-भंग कर रहा है अर्थात अदालत इस तरह के फैसले करने से बाज आए। सर्वोच्च न्यायालय इसे अवमानना का मुद्दा बनाकर मंत्रीजी को कठघरे में भी खड़ा कर सकता है लेकिन यहां सलमान भाई ने यह नहीं बताया कि अदालत इस तरह का फैसला देने के लिए मजबूर क्यों हुई? क्या इसीलिए नहीं कि संसद और सरकार को जो काम अपने आप करना चाहिए, वह वे नहीं कर रही है? जन-प्रतिनिधियों संबंधी अपराधों के मामले साल भर के अंदर-अंदर निपटाए जाएं, इस निर्णय में कौनसी बुराई है, कौनसा लोकतंत्र का उल्लंघन, कौनसी संविधान की अनदेखी है?
जहां तक चुनाव आयोग की चुटकियां काटने का सवाल है, यह आम चुनाव कांग्रेस के लिए बुल्डोजर की तरह सिर पर आ रहा है। बदहवास कांग्रेसी उम्मीदवार आखिर क्या करेंगे? जो भी सामने पड़ जाए, उसी पर वे आजकल धौल-धप्पा करने लगते हैं। कभी किसी को हिटलर कह देते हैं, और कभी किसी को गांधी का हत्यारा! खुद निरक्षर भट्टाचार्य हैं लेकिन अपने विरोधियों को गीता पढ़ने का उपदेश दे देते हैं। यदि चुनाव आयोग और सर्वोच्च न्यायालय को वे ‘बिना चुने हुए कुछ लोग’ और ‘गैर-जवाबदेह’ आदि कह देते हैं तो यह गाली तो नहीं है। पर, खिसियाहट जरुर है।
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