R Sahara, Dec 2003: स्वामी धर्मबंधु के आग्रह पर एक दिन के लिए प्रांसला नामक गॉंव में गया| प्रांसला गुजरात के राजकोट जिले में है| गॉंधीजी का जिला| प्रांसला पोरबंदर से 80 कि.मी. है और राजकोट उससे आगे 100 कि.मी. की दूरी पर है| 16 घंटे में से 14 घंटे जहाज और कार में बिताए| एक ही दिन में इतनी ताबड़तोड़ यात्रा इसलिए की कि ब्रह्मचारी धर्मबंधु गुजरात के गॉंवों में विलक्षण काम कर रहे हैं| उनकी आयु सिर्फ 30साल है| वे तमिलभाषी हैं लेकिन हिन्दी धाराप्रवाह बोलते हैं| पिछले तीन साल से वे काठियावाड़ के इन गॉंवों में डटे हुए हैं| इसलिए डटे हुए हैं कि यह दयानंद और गॉंधी की पुण्यभूमि है| केवल तीन वर्ष में उनका प्रभाव इतना फैल गया है कि पिछले साल उनकी संस्था ने 26 करोड़ रु. उगाहे और खर्च किए, लोक-कल्याण के कार्यों में ! महाराष्ट्र के प्रसिद्घ पूर्व अफसर जी.आर. खैरनार और उनकी पत्नी अब धर्मबंधुजी के पास ही रहते हैं| संस्था का नाम है “श्री वैदिक मिशन ट्रस्ट” ! खैरनारजी इसके अध्यक्ष हैं| धर्मबंधुजी ने कहीं अचानक सत्यार्थप्रकाश पढ़ा और दयानंद के भक्त बन गए| आजकल लगभग 10 हजार छात्रों का शिविर लगाए हुए हैं| इसी तरह के एक शिविर को डॉ. अब्दुल कलाम ने राष्ट्रपति बनने के कुछ हफ्ते पहले संबोधित किया था| गॉंव-गॉंव से आए हजारों छात्र एक हफ्ते तक शिविर में ही रहते हैं| योगासन, प्राणायाम, यज्ञ और स्वाध्याय करते हैं| देश के चुने हुए विद्वानों के व्याख्यान सुनते हैं और खुला विचार-विमर्श करते हैं|
पोरबंदरऔरमुंबईमें
मुंबई से जहाज जो उड़ा तो दमन में रुका| दमन से उड़े तो पोरबंदर पहुंचे| दोपहर एक बजा था| प्रांसला में कार्यक्रम तीन बजे था| जो सज्जन लेने आए थे, मैंने उनसे कहा कि मैं गॉंधीजी का घर देखे बिना प्रांसला नहीं जाऊॅंगा| सीधे वहीं चलें| 15-20 मिनिट में पहॅुंच गए| 22 कमरों का मकान| तीन मंजिला| छोटे-छोटे कमरे लेकिन डेढ़ सौ वर्ष पहले बने इस मकान को देखकर अंदाज होता है कि यह किसी गरीब-गुरबे का घर नहीं हो सकता था| यह पोरबंदर और राजकोट के प्रधानमंत्रियों का घर था| एक मंजिल से दूसरी मंजिल पर जाने के लिए लगभग खड़ी-सीधी सीढि़यॉं लगी हुई हैं| उन पर चढ़ते वक्त लटके हुए रस्से को पकड़ना पड़ता है| मोटा आदमी उन पर नहीं चढ़ सकता| दूसरी मंजिल पर पहॅुंचते ही सीढ़ी के पास मोटे-मोटे अक्षरों में फर्श पर जड़ा हुआ था – ‘भला पधार्यो’| इस गुजराती वाक्य को समझने में जरा भी देर नहीं लगी| गॉंधीजी का जन्म घर में घुसते ही जो पहला कमरा है, उसमें हुआ था| घर एकदम खाली है| कहीं कुछ खास ब्यौरा नहीं है| कोई कुछ बतानेवाला नहीं था| कुछ अजीब-सा लगा| क्या गुजरात सरकार या भारत सरकार कुछ ध्यान देगी ?
एक ही दिन में दमन, पोरबंदर, प्रांसला, उपलेटा, राजकोट आदि देखे| घरों और बाजारों में गुजराती के नामपट्ट देखकर अच्छा लगा| इन शहरों और गॉंवों को देखकर लगता है कि हम भारत में हैं, अंग्रेज के किसी उपनिवेश में नहीं| प्रांसला में मुश्किल से डेढ़ घंटा रुके याने केवल भाषण जितना समय| भोजन के लिए समय ही नहीं मिला| राजकोट में कुछ नमकीन लेने एक दुकान पर रुके तो दुकानदार ने नमकीन के साथ-साथ काजू, पिस्ता, बादाम, किश्मिश और अंजीर भी एक-एक मुट्ठी बॉंध दिए| बहुत आग्रह करने पर भी पैसे नहीं लिए, क्योंकि मैं स्वामी धर्मबंधु के शिविर में आया था| क्या दिल्ली में कोई ऐसी श्रद्घा का परिचय देगा ?
रात को मुम्बई ही रुके| मुम्बई के अपने मित्र चेतन्य काश्यप के घर| चेतन बाबू मूलत: रतलाम के हैं| वहीं से चेतना नामक दैनिक और केबल चलाते हैं| स्वीटनर के देश के सबसे बड़े उत्पादक हैं| बदनावर और वापी में उनके कारखाने हैं| हैं उद्योगपति लेकिन विद्या-व्यसनी हैं| राजनीति की गहरी समझ है| खूब पढ़ते हैं और मौलिक ढंग से सोचते हैं| सत्साहसी हैं| बड़े बेटे सिद्घार्थ के विवाह में कुल 17 लोग बारात में इंदौर ले गए और हर साल 20हजार लोगों का प्रीति-भोज करनेवाले चेतन बाबू ने मुंबई में कुल 300 लोगों को निमंत्र्िात किया| जैनियों के बड़े नेता हैं| लेखक और कवि भी हैं| सिद्घार्थ संगीतज्ञ हैं| रात दो बजे तक उनके साथ वार्ता सत्र चलता रहा| सुबह की उड़ान से दिल्ली पहॅुंच गए|
बदरीविशालपित्ती
बदरीविशालजी नहीं रहे| देश के साहित्यप्रेमियों और समाजवादियों के लिए यह गहरा आघात है| जो सेवा भामाशाह ने महाराणा प्रताप की की, वही बदरीविशालजी ने डॉ. राममनोहर लोहिया की की| रईसी ठाट-बाट के बावजूद बदरीविशालजी समाजवादी थे| लोहियाजी और जयप्रकाशजी उनके घर ही ठहरते थे| इन दोनों नेताओं के नाम से दो कमरे भी उनके महल में थे| मुझे भी उनमें ठहरने और बदरीविशालजी का आतिथ्य पाने का सौभाग्य मिला है| दस-बारह साल पहले उन्होंने भारतीय विदेश नीति पर मेरा विशेष व्याख्यान भी करवाया था| अभी तीन-चार हफ्ते पहले जब मैं हैदराबाद में था तो उनसे फोन पर जमकर बात हुई लेकिन तय हुआ कि अगले दिन भोजन दिल्ली में साथ हीहोगा| वे और मैं दोनों ही दूसरे दिन अलग-अलग जहाजसे दिल्ली पहॅुंचनेवाले थे लेकिन लगता है कि वे दिल्ली आए ही नहीं| स्वास्थ्य ठीक नहीं था | और अब यह दुखद खबर ! बदरीविशालजी ने मासिक पत्र्िाका ‘कल्पना’ शुरू की| आज़ादी के बाद के कौन-कौन-से नामी-गिरामी साहित्यकारों ने उसमें नहीं लिखा| राममनोहर लोहिया के समग्र वाड्र.मय को बदरीविशालजी ने अपने खर्चे से प्रकाशित किया| लोहियाजी की स्मृति में बने समता न्यास का दायित्व भी वे निभाते रहे| एक बार वे विधायक भी बने| वे बहुत ही भव्य और आकर्षक व्यक्तित्व के धनी थे| उनकी गरिमा बड़ी रौबदार थी लेकिन वे उदार और स्नेहिल व्यक्ति थे| उन्हें हार्दिक श्रद्घॉंजलि !
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