नया इंडिया, 16 जनवरी 2014: पूर्व गृह सचिव आर.के. सिंह ने गृह मंत्री सुशील शिंदे पर जो आरोप लगाए हैं, वे उन्हें लगाने चाहिए थे या नहीं, इस विषय पर मतभेद हो सकते हैं लेकिन वे आरोप इतने गंभीर हैं कि उनकी जांच जरूर होनी चाहिए। यदि शिंदे ने दाउद इब्राहिम से संबंधित एक व्यापारी की जांच रूकवा दी और पुलिस अफसरों की नियुक्तियां वे पर्चियां भेजकर करवाते रहे तो इस मामले की अनदेखी कैसे की जा सकती है? यह जरूरी नहीं कि शिंदे का दाउद इब्राहिम से सीधा संबंध हो या उस व्यापारी को बचाने में उनकी अपनी रुचि हो। पुलिस अफसरों की नियुक्ति में भी उनका अपना कोई स्वार्थ हो, यह जरूरी नहीं है लेकिन ऐसा नहीं होने पर भी वे जो करते रहे, अगर वह तथ्य हो तो यह ज्यादा खतरनाक बात है। इसका अर्थ यह हुआ कि भारत का गृहमंत्री स्वविवेक का प्रयोग करने वाला सबसे शक्तिशाली मंत्री नहीं है बल्कि अपने पार्टी-नेताओं या किन्हीं धन्ना-सेठों के हाथ की कठपुतली है। क्या ऐसे गृहमंत्री और ऐसी सरकार भारत को सुरक्षित रख सकते हैं या भ्रष्टाचार से मुक्त रख सकते हैं?
हम शिंदेजी से यह उम्मीद तो नहीं करते कि वे सिंह के आरोपों की सफाई पेश करें और उन सब लोगों के नाम बता दें, जिनके इशारों पर उन्होंने ये अवांछित कार्य किए लेकिन हमें आश्चर्य इस बात पर है कि कांग्रेस के कई नेतागण अब सिंह पर तरह-तरह के आरोप लगाने लगे हैं। वे कह रहे हैं कि गृह-सचिव सिंह सेवा-निवृत्ति के बाद अपने लिए किसी मोटे सरकारी पद की तलाश में थे। वे घुमा-फिराकर सरकारी नेताओं से अपनी सिफारिशें करवा रहे थे। ऐसे आरोप तो लगभग सभी सेवा-निवृत्त होने वाले अफसरों पर लगाए जा सकते हैं, क्योंकि इस देश की यह कांग्रेसी संस्कृति बन गई है कि अफसरों को नौकरी के बाद नौकरी का लालच देकर उनसे गलत काम करवाना और फिर उन्हें नौकरी देकर उनके मुंह पर ताला जड़ देना। अब आर.के. सिंह बोल पड़े और उन्होंने सांपों का पिटारा खोल दिया तो इसमें बड़ा दोष किसका है? कांग्रेसियों का ही है। उन्हें वे कोई गन्ना पकड़ा देते तो वे तीन-चार साल तक उसे चूसने में व्यस्त रहते।
आर.के. सिंह घर नहीं बैठे। वे भाजपा में चले गए। अब वे जो कुछ बोल रहे हैं, उसे ‘भाजपाई सर्कस’ कहकर दरकिनार किया जा रहा है। कोयला मंत्रालय के सचिव पारख तो भाजपा में नहीं गए थे। उन्होंने सीधे प्रधानमंत्री पर पिचकारी क्यों चला दी? नौकरशाहों में हिम्मत होनी चाहिए कि पद पर रहते ही वे सही बात पर डटें और बाद में भी जो उचित हो, वही कहें। आर.के. सिंह के बारे में खुद शिंदेजी ने कहा है कि उनसे उनकी अनबन रहती थी याने सिंह एक ईमानदार और निर्भीक अफसर थे। अब उन पर व्यक्तिगत आक्रमण करने की बजाय कांग्रेसियों को चाहिए कि वे उन प्रश्नों का उत्तर दें, जो सिंह ने उठाए हैं। सिंह ने जो आरोप लगाए हैं यह ठीक है कि वे अभी तक गुप्त रहे हैं लेकिन उन्हें गोपनीय नहीं कहा जा सकता। वे गुप्त रहे, क्योंकि उनकी चर्चा नहीं हुई लेकिन उन्हें अब भी गुप्त क्यों रखा जाए? क्या उनके प्रकट होने से भारत की सुरक्षा को कोई खतरा है? या भारत में कोई दंगा भड़क सकता है? यदि नहीं तो आर.के. सिंह की बातों को ‘सरकारी गोपनीयता कानून’ का उल्लंघन क्यों कहा जाए? ऐसे बयानों का तो स्वागत होना चाहिए ताकि सरकारी कामकाज स्वच्छ और पारदर्शी बने।
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