नया इंडिया, 12 अक्टूबर 2013 : राहुल गांधी ने खुद कहा है कि उनके दो गुरु हैं। एक तो उनकी मां और दूसरे, डा. मनमोहन सिंह! मां तो हर किसी की पैदाइशी गुरु होती है लेकिन मनमोहन सिंह जी को गुरु बताने का कारण क्या हो सकता है? राहुल ने अध्यादेश पर तेजाब छिड़कर प्रधानमंत्री की इज्जत को मटियामेट कर दिया था। यद्यपि हमारे प्रधानमंत्री अनंत धैर्य के स्वामी हैं लेकिन उस निंदा से वे भी विचलित हो गए थे। राहुल के शब्द इतने तीखे थे कि उनसे गेंडे की खाल भी चिर जाती लेकिन दिल्ली लौटने पर हमारे प्रधानमंत्री ने ऐसा रुख दिखाया कि जैसे उनकी नाक पर मक्खी भी न बैठी हो। उन्होंने रुख चाहे जो दिखाया हो लेकिन वे आखिर प्रधानमंत्री हैं।
उनको मर्मांतक पीड़ा अवश्य हुई होगी। राहुल के प्रत्यक्ष क्षमा-याचना करने से भी वह घाव अभी भरा नहीं होगा। क्या इसीलिए राहुल को अब कहना पड़ रहा है कि मनमोहन सिंह जी मेरे गुरु हैं? क्या यह क्षमा मांगने का सार्वजनिक पैंतरा है? राहुल उस व्यक्ति को अपना गुरु कह रहा है, जो खुद कह चुका है कि मैं राहुल के मातहत काम करने को तैयार हूं। यदि राहुल मनमोहन सिंह जी को अपना गुरु कहता है तो यह मानना पड़ेगा कि उसने अपने गुरु से कुछ नहीं सीखा। क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि मनमोहन सिंह वैसी धृष्टता कर सकते हैं, जैसी कि राहुल गांधी ने की थी? मनमोहन सिंह-जैसी विनम्रता राहुल में होती तो वह क्या किसी उद्दंड छोकरे की तरह अचानक प्रेस-कांफ्रेस में कूदकर इतने अपमानजनक शब्दों का प्रयोग कर सकता था? मनमोहन सिंह जी की हम कितनी ही आलोचना करें लेकिन क्या कोई कह सकता है कि उन्होंने पहले वित्तमंत्री और अब प्रधानमंत्री के तौर पर कभी कोई असभ्य भाषा का प्रयोग किया? मनमोहन सिंह को राहुल अपना गुरु कहे तो उसे कौन रोक सकता है लेकिन यह कहावत यहां चरितार्थ हो रही है कि गुरु गुड़ और चेला शक्कर! वैसे सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह में ऐसा क्या है, जो उन्हें आज कोई अपना गुरु माने? यदि सोनिया कांग्रेस अध्यक्ष न हों और मनमोहन प्रधानमंत्री न हों तो उनकी क़ीमत क्या है? उनके-जैसे हजारों-लाखों लोग भारत में हैं। वे शिष्ट और सज्जन हैं। स्वच्छ और संतुलित हैं, इसमें शक नहीं। लेकिन ऐसे लोगों की क्या भारत में कोई कमी है?
राहुल आज दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी का ‘नेता’ है और पार्टी के लोग उसे प्रधानमंत्री बनाने के लिए मजबूर हैं। क्या उसे ऐसे लोगों को गुरु धारण नहीं करना चाहिए, जिनके व्यक्तित्व की प्रेरणा से वह अच्छा नेता या अच्छा प्रधानमंत्री बन सके? उसे अच्छे गुरु तभी मिलेंगे जबकि वह अच्छा शिष्य बनने का संकल्प ले। गुरु बनने से ज्यादा कठिन है, शिष्य बनना! कांग्रेस में गुरुओं की कमी नहीं है। उस पार्टी में एक से एक योग्य और अनुभवी लोग हैं लेकिन सब डर के मारे राहुल को अपना गुरु मानते हैं। राहुल का गुरु कौन हो सकता है? राहुल तो गुरुओं का गुरु है। इसीलिए वह महागुरु की तरह घोषणा करता है कि ‘सत्ता जहर है’, ‘कांग्रेस को वंशवाद से मुक्त करो’, ‘कांग्रेस से खुशामदबाजी खत्म करो’। इस अर्थ में राहुल उलटबासियों का पंडित है। कोई महागुरु ही उलटबासी बोल सकता है।
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