R Sahara, 6 April 2003 : माताजी के अंतिम संस्कार के समय बहन डॉ. सुभद्रा ने मुखाग्नि की तो इंदौर शहर में थोड़ी खलबली मची| महू से आए पुराने मित्र सरदार त्रिलोकसिंह भाटिया ने इससे भी जोरदार बात बताई| महू के एक वकील हैं, मजीद दरबारी| वे कभी ठेले पर गंडेरियॉं बेचा करते थे| मजीद को सुरेंद्र द्विवेदी नामक समाजवादी नेता ने सहारा दिया, पढ़ाया-लिखाया और वकील बनवा दिया| गुरू हिन्दू और शिष्य मुसलमान ! सुरेंद्र द्विवेदी ने अपने बेटों से कहा कि उनके निधन पर अंत्येष्टि का सारा क्रिया-कर्म मजीद दरबारी करेंगे| हाल ही में जब द्विवेदीजी का निधन हुआ तो उनकी कपाल-क्रिया मजीद दरबारी ने की| मजीद ने सिर घुटाया, श्मशान में स्नान किया, धोती पहनी और अपने गुरु को मुखाग्नि दी| बहुत-से लोगों को यह सब अजीब-सा लगा लेकिन गुरु-शिष्य संबंधों में मज़हब को पीछे ढकेल दिया| द्विवेदीजी के पुत्रों ने कोई आपत्ति नहीं की| मजीद दरबारी ने महू में जो भवन बनाया, उसका नाम रखा – ‘गुरु सुरेंद्र द्विवेदी भवन’!
प्रो. जे.ए.एल. नोहा लगभग 45 साल पहले हम लोगों को राजनीतिशास्त्र पढ़ाया करते थे| उन्होंने अपना पीएच.डी. का शोध-कार्य भारतीय संविधान पर किया है| उन्होंने एक महत्वपूर्ण सुझाव दिया| उनका कहना था कि क्षेत्रीय और प्रांतीय दलों को लोकसभा चुनाव लड़ने से वंचित किया जाए| केवल अखिल भारतीय दल ही लोकसभा में बैठें| ऐसा इसलिए कि क्षेत्रीय और प्रांतीय दलों के हितों की रक्षा और प्रतिनिधित्व के लिए विधानसभाऍं और राज्यसभा ही काफी हैं| लोकसभा में आकर वे या तो केंद्रीय सरकारों को अस्थिर करते हैं या उन्हें ब्लैकमेल करते हैं| प्रो. नोहा की यह बात सच है लेकिन इतने क्रांतिकारी सुझाव को विधेयक बनाकर संसद में कौनसी पार्टी पेश कर सकती है? कोई पार्टी पेश करे या नकरे, यह वक्त की जरूरत है| जैसे बि्रटेन जैसे छोटे और अमेरिका जैसे विशाल देश में भी दो या तीन दलोंवाली राजनीतिक व्यवस्था चल रही है तो भारत में क्यों नहीं चल सकती? भारत की विविधता को सम्हालने के लिए प्रांतीय और क्षेत्रीय दल अपने-अपने इलाकों में सक्रिय रह सकते हैं| यदि प्रो. नोहा का सुझाव लागू हो जाए तो भारत में दो या तीन-दलीय व्यवस्था स्वत: ही लागू हो जाएगी| उससे राष्ट्रीय एकता भी मजबूत होगी और क्षेत्रीय तथा राष्ट्रीय पार्टियों में समन्वय और सम्वाद भी बढ़ेगा| इस उजले पहलू के कुछ नकारात्मक पक्ष भी हैं| जैसे यदि क्षेत्रीय और प्रांतीय पार्टियॉं राष्ट्रीय राजनीति में सीधे हिस्सा नहीं लेंगी तो क्या वे अपनी खोल में सिकुड़ कर नहीं बैठ जाऍंगी? किसी भी राष्ट्रीय संकट के समय क्या उनका रवैया उदासीनताभरा नहीं हो जाएगा? इसके अलावा राज्यों के बारे में जब लोकसभा कोई कानून बनाएगी तो उनकी सत्तारूढ़ पार्टियों की आवाज़ दिल्ली तक कैसे पहॅुंचेगी? क्या यह जरूरी है कि सत्तारूढ़ प्रांतीय दल और सत्तारूढ़ केंद्रीय दल के विचार हर मुद्दे पर एक समान ही हों? कहीं ऐसा तो नहीं कि लोकसभा में आने से वंचित होने पर प्रांतीय और क्षेत्रीय दल बिल्कुल समाप्त ही हो जाऍंं| शायद इसी डर के मारे वे उक्त कानून का डटकर विरोध करेंगे|
इंदौर में ‘वेबदुनिया’ के जनक विनय छजलानी धड़ल्ले से अपना काम किए जा रहे हैं| इस बार दो अन्य कम्प्यूटर-पंडितों से भी भेंट हुई| एक हैं, आनंद चौहान और दूसरे हैं, पंकज गुप्ता| आनंद चौहान वयोवृद्घ पूर्व सांसद भारतसिंहजी चौहान के बेटे हैं| उन्होंने लेखनी और सम्पर्क नामक दो सॉफ्टवेयर बनाए हैं| इन सॉफ्टवेयरों की खूबी यह है कि ये बहुभाषी हैं और इनका इस्तेमाल इतना आसान है कि बच्चे भी इन्हें चला सकते हैं| हिंदी में स्पेल चेक, अकारादि क्रम, लिप्यतंरण, स्थानांतरण, खोज आदि कई नए-नए आयाम जोड़े गए हैं इसी तरह पंकज गुप्ता ने भारतीय शैली में लिखे जा रहे बही-दस्तरों का सॉफ्टवेयर तैयार किया है| हिंदी के इस सॉफ्टवेयर का लाभ उन लाखों व्यापारियों और किसानों को मिल सकता है, जो कम्प्यूटर तो खरीद सकते हैं लेकिन अंग्रेजी नहीं जानते और अपना हिसाब भी पुरानी पद्घति से ही रखना चाहते हैं| यदि उनका यह हिंदी-प्रयोग सफल हुआ तो पंकज गुप्ता शीघ्र ही अन्य भाषाओं में भी इस सॉफ्टवेयर को चला देंगे|
इस बार इंदौर में लगभग 90-90 साल के कई गुरुजन और परिजन से भेंट हुई| उनमें से ज्यादातर बिना किसी सहारे के चलते हैं| कुछ बिना चश्मे के पढ़ते हैं| कुछ के मूल दॉंत भी सही-सलामत हैं| कुछ एक साहब का कहना था कि उनकी चाल धीमी जरूर हो गई है लेकिन 94 साल की आयु में अब भी वे लगातार पॉंच किलोमीटर चल सकते हैं| वे रेल की तृतीय श्रेणी में पूरी रात सफर करके नीमच से इंदौर आए थे| इसी तरह मेरे बाइबिल के शिक्षक प्रो. मोजेस 90 पार कर चुके हैं और प्राचार्य डेविड तो 95 में चल रहे हैं| इन सब उम्र के धनियों का कहना है कि कम खाना और नियमित व्यायाम उन्हें स्वस्थ रखे हुए है| जिस एक अन्य रहस्य का जि़क्र वे शायद ही करते हैं, वह है, जीवन के प्रति दार्शनिक दृष्टिकोण का होना| कितनी ही सम्पदा हो और कितनी ही विपदा हो, वे गर्वोन्मत्त नहीं होते, वे धैर्य नहीं खाते, विचलित नहीं होते| यह बात 99 वर्षीय प्रो. सी.पी. ब्रह्मो अक्सर बताया करते थे| वे हमारे दर्शन के प्रोफेसर थे| उनके निधन के कुछ माह पहले वे पैदल चलकर किसी नौजवान के अंतिम संस्कार में उपस्थित हुए थे| मुजफ्फर नगर के प्रसिद्घ सन्यासी कल्याणदेवजी से मैंने एक बार उनके दीर्घायुष्य का रहस्य पूछा तो वे बोले, “खास कुछ नहीं, भूखे मरना और पैदल चलना|” कहते हैं कि उनकी आयु इस समय 117 वर्ष है|
आजकल हाजी अयामुद्दीन दिल्ली आए हुए हैं| गत वर्ष उन्हें अमेरिका में रह रहे अफगानों ने लोया जिरगा (महासंसद) के लिए अपना प्रतिनिधि चुना था| वे कई वर्षों से न्यूयॉर्क में रह रहे हैं| कुछ वर्ष भारत में भी रहे हैं| आजकल वे एक गैर-सरकारी संस्था के माध्यम से अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में हाथ बंटाना चाहते हैं| उन्हें राज-परिवार तथा अफगान-सरकार का भरपूर समर्थन प्राप्त है| उनकी इच्छा है कि अमेरिका से आनेवाले करोड़ों अमेरिकी डॉलरों का उपयोग भारतीय इंजीनियरों, तकनीशियनों और सलाहकारों के माध्यम से हो|
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