नया इंडिया, 10 अप्रैल 2014: अंग्रेजी के सबसे बड़े अखबार की आज सबसे बड़ी खबर यह है कि कांग्रेस के चुनावी चंदे में इस बार टोटा पड़ गया है। कुछ कांग्रेसी चुनाव-प्रबंधकों का कहना है कि इस बार चुनावी चंदे का 90 प्रतिशत भाजपा को जा रहा है। कांग्रेस की सरकार कायम है लेकिन रींछ की पूंछ में बालों का टोटा हो गया है। कांग्रेस को सिर्फ 10 प्रतिशत पैसा मिल रहा है। 2011-12 में कांग्रेस ने अपनी आमदनी का जो हिसाब आयकर विभाग को दिया था, उसके अनुसार उसे 2338 करोड़ रु. मिले थे और भाजपा के हिसाब के मुताबिक उसे 1303 करोड़ रु. मिले थे। यदि अब चुनावी मौसम में हिसाब लगाएं तो दोनों दलों को कम से कम दस-दस गुना पैसा तो मिलना ही चाहिए। एक-एक चुनाव-क्षेत्र में पांच से दस करोड़ तक खर्च होने की संभावना है। दर्जनों ऐसे भी चुनाव-क्षेत्र हैं, जिनमें औसत से कई गुना खर्च होता है।
कांग्रेसी उम्मीदवारों का कहना है कि इस बार उन्हें पार्टी की तरफ से करोड़ों क्या, सिर्फ कुछ लाख में ही निपटाया जा रहा है। अब तो उम्मीदवारों की भी तीन श्रेणियां बन गई हैं। क ख ग! पैसा भी श्रेणी के हिसाब से बंटता है। यह कड़की का धर्म है। इसे सब उम्मीदवार बर्दाश्त कर रहे हैं। 10-15 प्रतिशत उम्मीदवारों के अलावा सभी संदेहग्रस्त हैं। उन्हें कुछ अंदाज नहीं कि वे जीतेंगे या हारेंगे। वे सोचते हैं कि भागते भूत की लंगोटी ही काफी है। अगर 50-60 लाख रु. भी बचा लिए तो कम से कम पांच साल आराम से कट जाएंगे। अब राजनीतिक कमाई तो बंद हो जाएगी। वैसे ज्यादातर उम्मीदवारों ने पिछले 10 साल में इतना तगड़ा हाथ साफ कर लिया है कि इस चुनाव में यदि कांग्रेस बिल्कुल भी साफ़ हो जाए तो भी उन्हें कोई खास गम नहीं होगा। लाखों करोड़ के जो घोटाले हुए हैं, याने अरबों-खरबों रु. के, वे पैसे अकेले प्रधानमंत्री या पार्टी अध्यक्ष ने ही थोड़ दबाए होंगे। इस राष्ट्रीय लूट में सबका हिस्सा होता है। चुनाव के दिनों में ही थोड़ा-थोड़ा प्रसाद सबको बांटा जाता है। जिन्होंने काफी तगड़ा हाथ साफ कर लिया है, वे कांग्रेसी अब चुनाव लड़ना नहीं चाहते लेकिन क्या करें, मजबूरी है।
खबर में बताया गया है कि भाजपा की जेबें लबालब हैं। ठसाठस हैं। याने देश के उद्योगपतियों ने अपनी तिजोरिया के पट भाजपा के लिए खोल दिए हैं। क्यों खोल दिए हैं? ये वे लोग हैं, जिनके बारे में कहा जाता है – ‘चमड़ी जाए लेकिन दमड़ी न जाए’। वे अपनी चमड़ी और दमड़ी (पैसा) दोनों देने पर उतारु क्यों हो गए हैं? क्योंकि उन्होंने सूंघ लिया है कि कौन आ रहा है? भाजपा आ रही है और मोदी आ रहा है। देखना यही है कि सत्तारुढ़ होने के बाद भाजपा और मोदी क्या करते हैं। वे भी कांग्रेस की तरह खाए-पीए-धाए वर्ग की चाकरी करते हैं या देश के 100 करोड़ से भी ज्यादा लोगों के दुख-निवारण में जुटते हैं?
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