नया इंडिया, 24 मई 2014: अरविंद केजरीवाल तो भारतीय राजनीति की एक दुर्घटना बन गए हैं। उनके हर काम का लक्ष्य बस एक ही रह गया है। ‘छपास’ और ‘दिखास’ याने अखबारों में छपता रहूं और टीवी के पर्दों पर दिखता रहूं। छपास और दिखास की इस बीमारी ने आम आदमी पार्टी को बर्बाद कर दिया। इस हवस के कारण मुख्यमंत्री की कुर्सी झपटने के बावजूद अरविंद और उनके साथी अनशन पर बैठ गए और अब नीतिन गडकरी के मामले में फंसे तो जमानत देने की बजाय जेल चले गए। जेल चले गए तो क्या हुआ? प्रचार तो हुआ। फोटो तो छपे। टीवी चैनलों पर चर्चा तो खूब रही।
योगेंद्र यादव और उनके अन्य पचास साथियों ने कानून के मुताबिक जमानत भरी और छूट गए। क्या ये लोग पागल हैं? सनकी हैं? डरपोक हैं? कायर हैं? नहीं, ये लोग आम आदमी की तरह बर्ताव करते हैं लेकिन अरविंद? वह आदमी, आम आदमी कहां रह गया है? वह तो अपने आपको देश का बड़ा नेता समझने लग गया है। 400 से ज्यादा उम्मीदवारों की जमानत जब्त करवाकर भी वह शर्मिंदा नहीं है। पंजाब से जो चार उम्मीदवार जीते हैं, क्या वे अरविंद केजरीवाल की वजह से जीत हैं? वे अपने दम पर जीते हैं। ये तो उनकी कृपा है कि उन्होंने आप पार्टी का बिल्ला टांग लिया था। वे भी अपना माथा ठोक रहे होंगे कि कहां फंस गए? अरविंद को क्या परवाह है कि इतने सारे उम्मीदवारों की जमानत ज़ब्त हो गई? वह तो वाराणसी में डूबे हुए थे। दूसरे मरें तो मरें। हमें तो छपास और दिखास की वासना है। वह वाराणसी में पूरी हो रही थी। आप भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़े हुए थे तो सोनिया के सामने क्यों नहीं अड़े? मोदी के सामने क्यों? क्योंकि प्रचार मिलेगा। बेचारे राजमोहन गांधी, प्रो. आनंदकुमार, योगेंद्र यादव जैसे भले लोग फिजूल में मारे गए। कुमार विश्वास और शाजिया इल्मी जैसे प्रतिभाशाली लोगों पर क्या गुजरी होगी? मेधा पाटकर का कितना पुण्य-नाश हुआ? इतनी बड़ी पटकनी खाकर भी अरविंद ने कुछ नहीं सीखा। पहले अन्ना-आंदोलन को पटरी से नीचे उतारा और अब खुद भी उतर गए।
मुख्यमंत्री पद खोने से ज्यादा उसका पाना बड़ी भूल थी। जिस पार्टी को खत्म करने पर तुले थे, उसी के कंधे पर खड़े हो गए। कांग्रेस से बड़ा भ्रष्टाचारी कौन होगा? इससे बड़ा भ्रष्ट आचरण क्या हो सकता है? अन्ना-आंदोलन और ‘आप पार्टी’ एक नई हवा के झोंके की तरह आए थे लेकिन वे जैसे आए थे, वैसे ही जा भी रहे हैं। यह भारतीय राजनीति की भारी विडंबना है।
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