नया इंडिया, 10 नवंबर 2013 : कांग्रेस के नेता जनता के मूड को समझ रहे हैं या नहीं? महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण और कांग्रेस के प्रधानमंत्री के उम्मीदवार राहुल गांधी की सभाओं में जिस तरह हंगामा हुआ, वह किस बात का सूचक है? इन नेताओं की सभाओं में सुरक्षा का कड़ा इंतजाम होता है और इनमें उनके अनुयायियों की संख्या सैकड़ों-हजारों में होती है। हंगामा करने वालों का पता होता है कि वे गिरफ्तार हो सकते हैं और मारे-पीटे भी जा सकते हैं। इसके बावजूद वे चिल्ला पड़ते हैं। यह भी जाहिर है कि वे सारे विरोधी दलों के गुर्गे नहीं होते। वे राजनीति भी नहीं करते और वे प्रचार प्रेमी भी नहीं होते तो फिर वे नेताओं की सभाओं में अचानक फट पड़ने का खतरा क्यों मोल लेते हैं? वे अपने दबे हुए गुस्से पर काबू नहीं कर पाते। जो घनीभूत निराशा उन्हें अंदर ही अंदर खाए जाती है, उसे वे कैसे प्रगट करें। यवतमाल जिले में मुख्यमंत्री चव्हाण ने सिंचाई परिषद की बैठक रखी हुई थी। यवतमाल जिला सारे देश में जाना जाने लगा है। काहे के लिए? किसानों की आत्महत्या के लिए। कर्ज में डूबे किसान वहां लगातार आत्महत्या कर रहे हैं। उन्होंने चव्हाण के भाषण के बीच में ही हंगामा खड़ा कर दिया। जब वे अधबीच में ही सभा छोड़कर भागने लगे तो एक किसान ने उन पर सोयाबीन की पोटली दे मारी। वे बच गए। यों भी चव्हाण मूदुभाषी और विनम्र व्यक्ति हैं लेकिन उनके जैसे व्यक्ति के साथ हुआ दुर्व्यवहार क्या दर्शाता है? क्या यह नहीं कि देश के लगभग हर क्षेत्र के लोगों में गहरी हताशा घर कर गई है।
जयराम रमेश जैसे नौसिखिए नेता चाहे यह कहकर मजा ले लें कि कांग्रेस हार गई तो भी राहुलजी मंच पर दिखाई देंगे लेकिन मोदी हार गया तो उसका सूर्यास्त हो जाएगा। पहली बात तो यह कि उन्होंने स्वयं हार की संभावना व्यक्त कर दी और दूसरी यह कि जो सूर्य उदय होने के पहले ही अस्त हो जाए, उसका होना ना होना एक बराबर ही है। इसके बजाए कि कांग्रेस के इस सूर्य को उगाने की कोशिश की जाती, उसे भावी प्रधानमंत्री के प्रभा और प्रतिमा-मंडल से ओत-प्रोत किया जाता, देश के सामने वह कोई वैकल्पिक नक्शा पेश करता, वह करोड़ों नौजवानों के दिलों में कई नए सपने पैदा करता, कांग्रेस ने उसे अपनी महत्वाकांक्षा की भट्टी में झोंक दिया है। यह गीला ईंधन झोंका भी गया लेकिन भट्टी सुलग ही नहीं रही। इस सर्द माहौल पर खिसियाहट बढ़ती ही जा रही है। टीवी चैनलों और अखबारों के मत्थे घड़ा फोड़ा जा रहा है। उनसे कहा जा रहा है कि आप राहुल की जगह मोदी को क्यों उछाल रहे हैँ? क्या नेताओं को पता नहीं है कि चैनलों और अखबारों को बिकना भी होता है? वे अपना नुकसान क्यों करेंगे? जनता जिसे ज्यादा चाहेगी उसे प्रचारित करने के लिए वे मजबूर हैं। अफसोस है कि नेताओं को जनता के मूड़ का पता नहीं चल रहा है।
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