नया इंडिया, 13 अगस्त 2013 : जम्मू कश्मीर के गृह राज्यमंत्री का इस्तीफा काफी नहीं है। सज्जाद किचलू को इस्तीफा देना पड़ा है, यह तथ्य ही इस बात का सबूत है कि राज्य सरकार ने अपने कर्तव्य का निर्वाह नहीं किया। गृह राज्यमंत्री का इस्तीफा उमर अब्दुल्ला की सरकार की अकर्मण्यता का प्रमाण—पत्र बन गया है। गृह राज्यमंत्री किचलू किश्तवाड़ के निवासी तो हैं ही, वे उस दिन मस्जिद में नमाज़ भी पढ़ रहे थे, जिससे निकल कर लोगों ने किश्तवाड़ में दुकानों में आग लगाई। आगजनी और हिंसा हुई। कुछ लोगों की हत्या हुई और सैकड़ों लोग घायल हो गए है लेकिन स्थिति अभी भी बेकाबू है। किश्तवाड़ ही नहीं, सारे जम्मू और घाटी में तनाव और भय फैला हुआ है।
यह दंगा अचानक नहीं हुआ है। किश्तवाड़ में तनाव पिछले कुछ वर्षों से चला आ रहा है। जो हाल कश्मीर में पंडितों का हुआ है, वहीं अब जम्मू में राजपूतों, गुजरों और अन्य अल्पसंख्यकों का हो जाए, ऐसा इरादा उग्रवादियों का है। हर ईद पर मस्जिदों के चारों तरफ जिस पहरेदारी का इंतजाम होता है, वह इस साल वहां नहीं हुआ। यानि राज्य सरकार का गुप्तचर विभाग कितना लचर है और पुलिसिया इंतजाम इतना फिसड्डी है कि वह किसी भी आपात स्थिति की पूर्व—कल्पना नहीं कर सकता है और मुसीबत आन पड़े तो उसे फौज का सहारा लेना पड़ता है। अब यदि ऐसा है तो राज्य सरकार की जरुरत क्या है? इस राज्य को राज्यपाल के हवाले क्यों नहीं किया जाए? किश्तवाड़ के कांग्रेस अध्यक्ष ने उच्च न्यायालय के जज से जांच करवाने की मांग की है। बसपा ने राष्ट्रपति शासन का नारा दिया है और संसद का काम—काज भी ठप्प हुआ है।
मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के हाथ—पांव फूल गए हैं। उन्होंने अरुण जेटली और महबूबा मुफ्ती के किश्तवाड़ जाने पर प्रतिबंध लगाया था। नेताओं का कर्तव्य था कि वे मौके पर पहुंचते और लोगों को शांत करते। आश्चर्य है कि सजाद किचलू ने दंगे का ठीकरा नरेंद्र मोदी के माथे पर फोड़ दिया है। इससे बढ़कर हास्यास्पद बात क्या हो सकती है? दंगे पर राजनीति शुरु हो गई हैं लेकिन जम्मू कश्मीर के सत्तारुढ़ दल—नेशनल कांफ्रेंस और नेशनल कांग्रेस दोनों को ही अब लापरवाही की कीमत चुकाने को तैयार होना पड़ेगा। बेहतर हो कि उमर अब्दुल्ला अब कुछ दिन आराम करें और हुकूमत राज्यपाल एन एन वोरा के हवाले कर दें
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