नया इंडिया, 11 अप्रैल 2014: नरेंद्र मोदी ने अपना नामांकन-पत्र भरते समय अपनी पत्नी यशोदा बेन का उल्लेख किया। इस उल्लेख पर हंगामा मचा हुआ है। मानो लोकसभा के चुनाव का यही केंद्रीय मुद्दा है। मुझे अखबारों और टीवी चैनलों और उनसे भी ज्यादा उन नेताओं की बुद्धि पर तरस आता है, जो इन व्यक्तिगत मामलों को राष्ट्रीय मुद्दों में तब्दील करने की कोशिश करते हैं। ये भी कोई मुद्दा है कि मोदी ने शादी क्यों की और क्यों छोड़ दी और राहुल ने शादी क्यों नहीं की?
दोनों के इन व्यक्तिगत रुझानों के आधार पर उनके विरोधी नेतागण तरह-तरह की पतंगबाजी करने लगते हैं। दोनों चिर कुमारों को लोग स्त्री-विरोधी घोषित कर देते हैं या यह कह देते हैं कि इन दोनों को देखते ही स्त्री-मात्र को अरुचि होने लगती है। इन दोनों को स्त्रियां वोट क्यों दें? जो अपनी पत्नी के साथ न्याय नहीं कर सका, वह देश की महिलाओं के साथ न्याय कैसे करेगा? जो अधेड़ होकर भी शादी नहीं कर सका, वह देश की आधी आबादी का दर्द क्या जानेगा? ये तर्क नहीं, कुतर्क हैं। यदि ये ही तर्क सत्य हैं तो हमें पूछना होगा कि जो लोग कई-कई स्त्रियों से विवाह करते हैं या संबंध रखते हैं, क्या गारंटी है कि वे सत्तारुढ़ होने पर संपूर्ण स्त्री-समाज के साथ न्याय करेंगे?
अपनी पत्नियों के साथ क्रूरतापूर्ण बर्ताव करने वाले लोग भी वे ही होते हैं जो जीवन भर उनका साथ निभाने का दम भरते हैं। ऐसे पतियों के मुकाबले क्या नरेंद्र मोदी जैसे पति प्रशंसा के पात्र नहीं हैं, जो खुशी-खुशी अलगाव का फैसला कर लेते हैं? खुद यशोदा बेन ने स्वीकार किया है कि 17 साल की उम्र में उनकी शादी हुई, सिर्फ तीन माह चली और अब 45 साल से दोनों एक-दूसरे से बेखबर हैं। ऐसी शादी होना और न होना एक बराबर है। उसका अस्तित्व बस कागज पर है। उस कागज को जलाकर आप धुंआ उड़ाने की कोशिश करेंगे तो क्या लोग आपकी डूबती नाव को टेका लगा देंगे? न जशोदाबेन मोदी के साथ जाना चाहती हैं और न मोदी जशोदाबेन के साथ लेकिन हमारे कुछ नेता और टीवी जोकर्स बेगानी शादी में अब्दुल्ल दीवाना हो रहे हैं। मोदी ने शादी का उल्लेख इसीलिए किया कि नामांकन-पत्र में यह करना जरुरी था। वरना, वास्तव में अब जिसका कोई वास्तविक अस्तित्व ही नहीं है, उसका उल्लेख क्या करना? हां, यदि मोदी किसी से नई शादी करने के लिए अब तक यशोदाबेन का नाम छिपा रहे होते तो वह धूर्तता होती लेकिन अब उनके चिर-विस्मृत विवाह को मुद्दा बनाना क्या स्वयं धूर्तता नहीं है?
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