नया इंडिया, 03 फरवरी 2014: सोनिया गांधी ने कुछ सबक नहीं सीखा। 2007 में नरेंद्र मोदी के लिए ‘मौत का सौदागर’ शब्द का प्रयोग उन्होंने कर दिया था। गुजरातियों ने चुनाव में कांग्रेस को अघमरा कर दिया। अब वे पता नहीं कहां से ‘जहर की खेती’ ले आई हैं? कौन सी खेती है, जिसमें जहर पैदा होता है? जहर जैसी चीज की खेती भारत में तो हमने कभी सुनी नहीं। हां, इटली में होती हो तो सोनिया जी जानें लेकिन जहां तक हमारी जानकारी है, इटली में भी जहर की कोई खेती नहीं होती। भला उसकी खेती कैसे हो सकती है?
वास्तव में यह सोनिया गांधी का दोष नहीं है। सोनियाजी कोई किसान की बेटी नहीं हैं। उन्हें क्या पता कि जहर जैसी चीज की खेती हो ही नहीं सकती है। उन्हें तो उनके सेवक नेता जो कुछ लिखकर दे देते हैं, उसे वह पढ़ डालती हैं। यह भी पता नहीं कि वह जो कुछ पढ़ती हैं, उसे वह ठीक से समझती भी हैं या नहीं? लेकिन उन्हें हमें शाबाशी देनी होगी कि वह अपना भाषण अंग्रेजी या इतालवी में नहीं देती हैं। हिंदी में देती हैं। और जहर की खेती वाला भाषण तो उन्होंने कर्नाटक में दिया। हमें शक हुआ कि कर्नाटक में तो जहर नहीं उगता? कहीं वहां तो जहर की खेती नहीं होती। हमने कन्नड़भाषी पूर्व प्रधानमंत्री से फोन करके पूछा कि क्या गुलबर्गा या मैसूर के किसी खेत में जहर उगाया जाता है? चाहे न उगाया जाता हो लेकिन सोनियाजी ने अपने भाषण में तो उगा ही दिया है। जहर उगाने का मंत्र जब वह हिंदी में फूंकती हैं और उस मंत्र के उच्चारण में इतालवी उच्चारण का छौंक लगता है तो वह छवि देखते ही बनती है। लोग जहर-वहर पर ध्यान नहीं देते है। वे तो इतालवी लहजे में बोली गई हिंदी का रस लेते हैं। टीवी देखते वक्त जब बच्चे नकल उतारते हैं तो वह जहर भी गन्ने के रस जैसा लगता है। भारत की राजनीति आजकल विराट् प्रहसन में बदल गई है। इस प्रहसन को प्राणवंत बनाने का काम मां-बेटे की जोड़ी बखूबी कर रही है।
जहां तक जहर का सवाल है, जयपुर के पार्टी अधिवेशन में अपने बेटे को सत्ता सौंपते समय माताजी ने जो दीक्षांत-उपदेश दिया था, उसमें सत्ता को जहर की संज्ञा दी थी। लेकिन अब मालूम पड़ रहा है कि जो दूसरे का जहर है, वह ही जहर है। जो अपना जहर है, वह तो अमृत है। यदि अमृत नहीं होता तो पूरी मां-बेटा पार्टी उसे पीने में दिन-रात एक क्यों कर रही होती? यह पता है कि जिस जहर को पी-पीकर पिछले दस साल में कांग्रेस मुढिया गई है और डूबतखाते में चली जा रही है, फिर भी वही विष-पान करने पर कांग्रेस क्यों तुली हुई है?
यदि ‘जहर की खेती’ से सोनियाजी का मतलब सांप्रदायिक हिंसा से है तो वह पिछले 12 साल से गुजरात में तो कहीं दिखी नहीं। पूरे देश में पचास साल से ज्यादा कांग्रेस का शासन रहा है। उस दौरान सर्वत्र ‘जहर की खेती’ लहलहा रही थी। केरल से लेकर कश्मीर और कच्छ से लेकर असम तक दंगे ही दंगे होते रहते थे और 1984 में तो उनकी हद हो गई थी। कांग्रेस द्वारा बोई गई इस खेती को यदि अब किसी ने जड़ से मट्ठा पिलाया है तो गुजरात ने ही पिलाया है। दस साल पहले यह बड़ा मुद्दा था लेकिन अब यह घोड़ा काठ में बदल गया है। काठ के घोड़े पर सवारी करके आप कहां तक पहुंचेंगी? अब तो सबसे बड़ा जहर भ्रष्टाचार है। यह जहर है, केंसर है। यह सरकार की नस-नस में फैल गया है। इस जहर की काट करे कोई? जो करे, वही नेता है।
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