नया इंडिया, 6 अगस्त 2014: बीमा-विधेयक पर खूब तमाशा हो रहा है। अब भाजपा-सरकार बीमे के धंधे में विदेशी विनिवेश को 49 प्रतिशत तक बढ़ाना चाहती है लेकिन कांग्रेस और कई दल इसका विरोध कर रहे हैं। यदि वे अपनी बात पर डटे रहे तो यह विधेयक अधर में लटक जाएगा, क्योंकि राज्यसभा में सत्तारुढ़ गठबंधन का बहुमत नहीं है। यह विधेयक तभी पास हो सकता है, जबकि दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुलवाई जाए और आवश्यक समर्थन जुटाया जाए।
इसमें तमाशे का असली तत्व यह है कि यह विधेयक मूल रुप से कांग्रेस सरकार ही लाई थी लेकिन 2008 में लाया गया यह विधेयक इसलिए पारित नहीं हुआ कि भाजपा ने इसका विरोध किया था। इसमें लगभग 100 संशोधन सुझा दिए गए थे। जब वाजपेयी सरकार के वित्तमंत्री यशवंत सिन्हा ने बीमा-क्षेत्र में 49 प्रतिशत विदेशी पूंजी लाने की बात कही थी तो कांग्रेस ने उस समय भी अड़गा लगा दिया था।
इसका हम क्या अर्थ निकालें? इसका एक मोटा-मोटा अर्थ तो यही निकलता है कि बीमे के धंधे में यदि 49 प्रतिशत विदेशी पूंजी आ गई तो विपक्षियों को शक है कि सत्तारुढ़ दल मालामाल हो जाएगा। उसकी चांदी कटेगी। रिश्वत और कमीशन का बाजार गर्म होगा। जबकि विपक्षी दल खाली झुनझुना हिलाता रहेगा। जो भी दल विपक्ष में होता है, वह आखिर इसका विरोध क्यों करता है? इस प्रश्न का जवाब आज के दोनों प्रमुख दलों के पास नहीं है। यह स्थिति हमारी राजनीति के घोर दिवालिएपन का ठोस सबूत है।
बीमे के धंधे में कमाई अपरंपार है और सतत है। भारत में लगभग छह करोड़ लोग बीमा करवाते हैं। विदेशी कंपनियां लोगों को लालच में फंसाकर ठगना खूब अच्छी तरह जानती हैं। वे दोनों हाथों से पैसा उलीचेंगी और अपने देश ले जाएंगी। पता नहीं, इस विधेयक में कोई अंकुश है या नहीं? यह भी ठीक से पता नहीं कि इस छूट से भारत को कितना लाभ होगा? इस मुद्दे पर तो कोई बहस ही नहीं है। कई देशों ने तो विदेशी पूंजी को 100 प्रतिशत छूट दे रखी है, कई ने 50, 70, 80 प्रतिशत तक छूट दे रखी है। भारत तो अभी सिर्फ 49 प्रतिशत की छूट दे रहा है।
इस छूट से अरबों रु. की विदेशी पूंजी भारत में आ जाएगी। भारत को मोटी पूंजी की जरुरत जरुर है लेकिन यह विदेशी पूंजी किनका भला कर रही है? सिर्फ पांच-दस करोड़ लोगों का और उनके अपने देशवासियों का! देश के 100 करोड़ से ज्यादा लोगों की भी किसी को सुध है या नहीं? क्या वे विकास की केवल जूठन चाटने के लिए ही पैदा हुए हैं? हमारे नेताओं की लड़ाई इन गरीब, ग्रामीण, पिछड़े, वंचित लोगों के लिए नहीं है बल्कि अपनी जेबें गर्म करने के लिए है।
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