दैनिक भास्कर, 9 अगस्त 2014: जनता समझती है कि उनके चुने हुए नेता सरकार चलाते हैं, लेकिन असलियत यह है कि नौकरशाह सरकार चलाते हैं । नेता तो थोड़े समय के मेहमान होते हैं। नौकरशाह सरकार के स्थायी मालिक होते हैं! नेता लोग हमारे नौकरशाहों के नौकर होते हैं। यदि नौकरशाही सुधर जाए तो कोई भी सरकार सचमुच जनता की सच्ची सेवक बन सकती है। प्रसन्नता की बात है कि सरकार ने नौकरशाहों के लिए एक नई और संशोधित नियमावली जारी की है।
नौकरशाहों की जो आचरण-नियमावली बरसों से चली आ रही थी, उसमें कर्तव्यनिष्ठा, विनम्रता, ईमानदारी आदि की चालू और अस्पष्ट बातें कही गई थीं, लेकिन इस नियमावली में पूरी 19 हिदायतें दी गई हैं। उन्हें आप नसीहतें भी कह सकते हैं। इनकी ढिलाई की सजा क्या होगी, यह नहीं बताया गया है। यदि जनता के ध्यान में ये नसीहतें रहेंगी तो वह नौकरशाहों के साथ खुद सख्ती से पेश आएगी और पालन के लिए वह वक्त जरूरत सरकार पर दबाव भी डाल सकती है।
सबसे महत्वपूर्ण नसीहत तो यह है कि नौकरशाह राजनीतिक दृष्टि से तटस्थ रहेंगे। अक्सर होता यह है कि कई अफसर अपने मंत्रियों के इतने अधिक घनिष्ट हो जाते हैं कि उनके लिए प्रशासनिक और राजनीतिक कामकाज में फर्क करना मुश्किल हो जाता है। वे नेताओं के राजनीतिक सलाहकार और कारकून भी बन जाते हैं। हमारे औसत अफसर हमारे औसत नेताओं से ज्यादा पढ़े-लिखे, ज्यादा अनुभवी और ज्यादा कर्मठ होते ही हैं। उनसे नई नियमावली अपेक्षा करती है कि वे जो भी निर्णय करें, वह शुद्ध जनहित में हो। उसमें व्यक्तिगत हित या पक्षपात या दोस्ती-दुश्मनी का गणित न हो। ऐसी प्रतिज्ञा तो मंत्री लोग भी शपथ के समय करते हैं, लेकिन होता क्या है? विडंबना है कि शपथ भी है, आचरण-नियमावली भी है और उसके साथ भ्रष्टाचार भी जोरों से है। मंत्री और नौकरशाह अपने संकल्प पर कायम रहें तो भ्रष्टाचार कैसे हो सकता है?
मंत्रियों की यह शपथ और नौकरशाहों की नियमावली तभी कारगर हो सकती है, जबकि इनका पालन कठोरतापूर्वक करवाया जाए और साधारण नागरिकों को जो सजा मिलती हो, उससे दुगुनी सजा हो। इस तरह का कोई भी प्रावधान हमारे नेताओं और नौकरशाहों के लिए कहीं नहीं है।
सबसे पहले समस्त पदारूढ़ नेता और नौकरशाहों की चल-अचल संपत्तियों की सार्वजनिक घोषणा प्रतिवर्ष होनी चाहिए। उनकी पत्नियों या पतियों और बच्चों पर भी यह नियम लागू होना चाहिए। यदि वे भ्रष्टाचार के अपराध में पकड़े जाएं तो उनकी और उनके परिजन की समस्त संपत्ति जब्त की जानी चाहिए। इसके अलावा नौकरशाहों को सेवानिवृत्त होने के बाद कोई भी सरकारी या राजनीतिक पद अगले पांच साल तक नहीं दिया जाना चाहिए। उन्हें किसी निजी कंपनी में भी नौकरी करने का अधिकार नहीं होना चाहिए। यदि ऐसे कठोर नियम लागू किए जाएं तो भ्रष्टाचारी लोग राजनीति और नौकरशाही को दूर से ही नमस्कार करने लगेंगे। भ्रष्टाचारियों की रूह कांपने लगेगी।
लेखक भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष हैं।
लेखक भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष हैं।
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