रा. सहारा, 16 फरवरी 2008 : ऐसा लगता है कि आजकल तुर्की में उलटी गंगा बह रही है| दुनिया के सारे मुस्लिम देशों में औरतें आंदोलन कर रही हैं कि पर्दा हटे लेकिन तुर्की की औरते कहती हैं कि हमें पर्दा करने दो| क्या यह मॉंग अजीब-सी नहीं लगती? तुर्की को पिछड़ा हुआ या गरीब या अशिक्षित देश नहीं है| मुस्लिम राष्ट्रों में वह सबसे अधिक प्रगतिशील, मालदार और सुशिक्षित लोगों का देश है| उसे अपनी सभ्यता और संस्कृति पर भी नाज़ है| फिर भी वहॉं पर्दे की मांग क्यों हो रही है? तुर्की की संसद ने एक कानून पास करके यह छूट दे दी है कि स्कूल-कालेज की छात्रऍं यदि सिर पर स्कार्फ या चुन्नी रखना चाहें तो रखें| अब तक तुर्की में यह कानून लागू था कि सिर पर स्कार्फ बॉंधनेवाली या बुर्का पहननेवाली औरतों को विश्वविद्यालय में प्रवेश नहीं मिलेगा| तुर्की की संसद ने अपने संविधान में संशोधन करके इस कानून को रद्द कर दिया है|
तुर्की का मुख्य विरोधी दल इस संशोधन के खिलाफ जबर्दस्त आंदोलन चला रहा है| रिपब्लिकन पीपल्स पार्टी ने घोषणा की है कि वह इस संशोधन को उच्चतम न्यायालय में घसीटेगी| उसे विश्वास है कि अदालत उसका पक्ष लेगी| अदालत ने पहले भी लैला शाहीन के मामले में पर्दे के विरूद्घ फैसला दिया था| अदालत ने लैला शाहीन को तुर्की के विश्वविद्यालयों में मेडिकल की पढ़ाई इसलिए नहीं करने दी थी कि वह सिर पर स्कार्फ बॉंधती थी| जो लोग पर्दा करने के पक्ष में हैं, उनका तर्क है कि 7 करोड़ लोगों के देश तुर्की में दो-तिहाई महिलाऍं पर्दा करती हैं| अगर आप स्कार्फ बांधनेवाली लड़कियों को उच्च-शिक्षा नहीं लेने देंगे तो ज्यादातर लड़कियों को पढ़ने के लिए विदेश जाना होगा| खुद प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री की बेटियों को विदेश में पढ़ना पड़ रहा है, क्योंकि दोनों स्कार्फ बांधती हैं| पिछले 45-50 साल से तुर्की में यह कानून बना हुआ है कि जो औरतें पर्दा करेंगी, बुर्का पहनेंगी या हेडस्कार्फ बॉंधेगी, उन्हें उच्च शिक्षा तो क्या सरकारी नौकरियों में भी प्रवेश नहीं मिलेगा| वे संसद सदस्य नहीं बन सकतीं| चुनाव नहीं लड़ सकतीं| वकील के तौर पर अदालत में पेश नहीं हो सकतीं| सरकार या निजी स्कूलों में अध्यापिका नहीं बन सकतीं| यहॉं तक की सरकारी भूमि या भवन में भी नहीं जा सकतीं|
ये प्रावधान बड़े क्रांतिकारी लगते हैं| सेक्युलर मालूम पड़ते हैं| मुस्तफा कमाल पाशा ने जो सुधार-आंदोलन चलाया था, उसी की तर्ज पर इस तरह के प्रावधान तुर्की की शासन-व्यवस्था में समय-समय पर जोड़ दिए गए हैं| यों तो तुर्की में 99 प्रतिशत लोग मुसलमान हैं लेकिन तुर्की के लोग अरबों के मुकाबले खुद को ज्यादा श्रेष्ठ मानते हैं| उन्होंने अपने धार्मिक कर्मकांड में से बहुत-से अरबी रीति-रिवाजों को खत्म कर दिया हैं| यहां तक कि सैकड़ों वर्ष से चली आ रही अरबी लिपि को भी तिलाजंलि दे दी है| तुर्की भाषा के लिए उन्होंने रोमन लिपि चला दी है| कमाल पाशा ने खलीफा का पद ही खत्म कर दिया था| तुर्की के सेक्युलरिस्टों का कहना है कि मुसलमान होने का मतलब अरबों का गुलाम होना नहीं हैं| हर देश का इस्लाम अपने ढंग का अलग इस्लाम होगा| वास्तव में तुर्क लोग अपने आपको आधा एशियाई और आधा यूरोपीयाई मानते हैं| वे तुर्की को यूरोपीय संघ का सदस्य बनाने के लिए भी आतुर हैं| उनका कहना है कि औरतों का पर्दा गैर-बराबरी का सबूत है| यदि पर्दा करना अच्छी बात है तो उसे मर्द क्यों नहीं करते? पर्दे को लादना तो शुरूआती कदम है| एक बार पर्दे की छूट मिली कि दूसरी सभी इस्लामी (अरबी) बुराइयॉं तुर्की समाज को भ्रष्ट कर देंगी| उसे वे मध्ययुगीन बर्बर-काल में घसीट ले जाऍंगी| इसीलिए तुर्की की फौज ने संसद, नेताओं और जनता को धमकी दी है कि अगर वे सेक्युलरिज्म से खिलवाड़ करेंगे तो फौज चुप नहीं बैठेगी| तुर्की फौज ने पहले भी इस्लामी सरकारों को अपदस्थ किया है| तुर्की फौज कमाल पाशा की परंपरा का सबसे सशक्त स्तंभ है| अब भी यही डर है कि संसद के संशोधन के खिलाफ या तो अदालत या फौज का सहारा लिया जाएगा|
क्या यह आश्चर्य नहीं कि तुर्की की फौज, दुनिया के दूसरे देशों की फौज के मुकाबले उलटा काम कर रही है? वह कट्टरवाद के विरूद्घ लड़ रही है| आश्चर्य यह भी है कि यूरोप के मानव अधिकार न्यायालय ने भी फौज का ही समर्थन किया है| क्या इस यूरोपीय समर्थन के पीछे इस्लाम-विरोध नहीं है? सभी यूरोपीय राष्ट्र ईसाई हैं| वे सेक्युलरिज्म की आड़ में पर्दे का विरोध कर रहे हैं| जैसे फ्रॉंस के स्कूलों मे सिख छात्रें को पगड़ी नहीं पहनने देना सेक्युलरिज़म है, वैसे ही तुर्की महिलाओं को स्कार्फ नहीं पहनने देना भी सेक्युलरिज़म है| ऊपर से देखने में लगता है कि यूरोपीय अदालत का फैसला बहुत तर्कसंगत है|
वास्तव में यूरोपीय अदालत भी गलत है और तुर्की फौज भी दुराग्रह पर डटी हुई है| यूरोपीय लोगों से कोई पूछे कि अगर पगड़ी और हेडस्कार्फ पर प्रतिबंध है तो टाई पर प्रतिबंध क्यों नहीं है? अगर पगड़ी सिख धर्म और हेडस्कार्फ इस्लाम का प्रतीक है तो टाई ईसाइयत की प्रतीक है| किसी भी सेक्यूलर राष्ट्र ने आज तक टाई पर प्रतिबंध क्यों नहीं लगाया? मुस्लिम राष्ट्रों में टाई को छूट है तो ईसाई राष्ट्रों में बुर्के को छूट क्यों नहीं है? जिसको जो पहनना हो, सो पहने, यही मानवाधिकार है, यही स्वतंत्र्ता है, यही समानता है और यही लोकतंत्र् है| सेक्युलरिज़म के नाम पर तुर्की और यूरोपीय राष्ट्रों में क्या मानवाधिकार और लोकतंत्र् का उल्लंघन नहीं हो रहा है? तुर्की की ज्यादातर महिलाऍं हेडस्कार्फ को ठीक समझती हैं, इसीलिए हाल ही के चुनाव में ‘जस्टिस और डेवलपमेंट पार्टी’ दुबारा चुनाव जीतकर सत्तारूढ़ हुई है| तुर्की की फौज और अदालत को जनमत के विरूद्घ जाने का नैतिक अधिकार किसने दे दिया है? हजारों स्कार्फधारी लड़कियों को हर साल उच्च शिक्षा से वंचित रखने में कौनसी प्रगतिशीलता हैं? कोई भी तर्कशील व्यक्ति पर्दे का समर्थन नहीं कर सकता लेकिन पर्दे के विरोध के नाम पर सारे तर्क को स्थगित नहीं किया जा सकता| यदि तुर्की या फ्रांस की सरकार अर्द्घनग्नता या नग्नता पर प्रतिबंध लगाए तो वह तो समझ में आता है लेकिन पर्दे पर प्रतिबंध लगाना वैसा ही है जैसा कि हर औरत के लिए पर्दे को अनिवार्य बना देना| यह जुड़वां मूढ़ता है| इस्लामी और ईसाई देशों की यह दोमुंही मूढ़ता हास्यास्पद हैं| क्या ये राष्ट्र भारत से भी कुछ सीखेंगे?
तुर्की में पर्दे के पीछे क्या है
रा. सहारा, 16 फरवरी 2008 : ऐसा लगता है कि आजकल तुर्की में उलटी गंगा बह रही है| दुनिया के सारे मुस्लिम देशों में औरतें आंदोलन कर रही हैं कि पर्दा हटे लेकिन तुर्की की औरते कहती हैं कि हमें पर्दा करने दो| क्या यह मॉंग अजीब-सी नहीं लगती? तुर्की को पिछड़ा हुआ या गरीब या अशिक्षित देश नहीं है| मुस्लिम राष्ट्रों में वह सबसे अधिक प्रगतिशील, मालदार और सुशिक्षित लोगों का देश है| उसे अपनी सभ्यता और संस्कृति पर भी नाज़ है| फिर भी वहॉं पर्दे की मांग क्यों हो रही है? तुर्की की संसद ने एक कानून पास करके यह छूट दे दी है कि स्कूल-कालेज की छात्रऍं यदि सिर पर स्कार्फ या चुन्नी रखना चाहें तो रखें| अब तक तुर्की में यह कानून लागू था कि सिर पर स्कार्फ बॉंधनेवाली या बुर्का पहननेवाली औरतों को विश्वविद्यालय में प्रवेश नहीं मिलेगा| तुर्की की संसद ने अपने संविधान में संशोधन करके इस कानून को रद्द कर दिया है|
तुर्की का मुख्य विरोधी दल इस संशोधन के खिलाफ जबर्दस्त आंदोलन चला रहा है| रिपब्लिकन पीपल्स पार्टी ने घोषणा की है कि वह इस संशोधन को उच्चतम न्यायालय में घसीटेगी| उसे विश्वास है कि अदालत उसका पक्ष लेगी| अदालत ने पहले भी लैला शाहीन के मामले में पर्दे के विरूद्घ फैसला दिया था| अदालत ने लैला शाहीन को तुर्की के विश्वविद्यालयों में मेडिकल की पढ़ाई इसलिए नहीं करने दी थी कि वह सिर पर स्कार्फ बॉंधती थी| जो लोग पर्दा करने के पक्ष में हैं, उनका तर्क है कि 7 करोड़ लोगों के देश तुर्की में दो-तिहाई महिलाऍं पर्दा करती हैं| अगर आप स्कार्फ बांधनेवाली लड़कियों को उच्च-शिक्षा नहीं लेने देंगे तो ज्यादातर लड़कियों को पढ़ने के लिए विदेश जाना होगा| खुद प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री की बेटियों को विदेश में पढ़ना पड़ रहा है, क्योंकि दोनों स्कार्फ बांधती हैं| पिछले 45-50 साल से तुर्की में यह कानून बना हुआ है कि जो औरतें पर्दा करेंगी, बुर्का पहनेंगी या हेडस्कार्फ बॉंधेगी, उन्हें उच्च शिक्षा तो क्या सरकारी नौकरियों में भी प्रवेश नहीं मिलेगा| वे संसद सदस्य नहीं बन सकतीं| चुनाव नहीं लड़ सकतीं| वकील के तौर पर अदालत में पेश नहीं हो सकतीं| सरकार या निजी स्कूलों में अध्यापिका नहीं बन सकतीं| यहॉं तक की सरकारी भूमि या भवन में भी नहीं जा सकतीं|
ये प्रावधान बड़े क्रांतिकारी लगते हैं| सेक्युलर मालूम पड़ते हैं| मुस्तफा कमाल पाशा ने जो सुधार-आंदोलन चलाया था, उसी की तर्ज पर इस तरह के प्रावधान तुर्की की शासन-व्यवस्था में समय-समय पर जोड़ दिए गए हैं| यों तो तुर्की में 99 प्रतिशत लोग मुसलमान हैं लेकिन तुर्की के लोग अरबों के मुकाबले खुद को ज्यादा श्रेष्ठ मानते हैं| उन्होंने अपने धार्मिक कर्मकांड में से बहुत-से अरबी रीति-रिवाजों को खत्म कर दिया हैं| यहां तक कि सैकड़ों वर्ष से चली आ रही अरबी लिपि को भी तिलाजंलि दे दी है| तुर्की भाषा के लिए उन्होंने रोमन लिपि चला दी है| कमाल पाशा ने खलीफा का पद ही खत्म कर दिया था| तुर्की के सेक्युलरिस्टों का कहना है कि मुसलमान होने का मतलब अरबों का गुलाम होना नहीं हैं| हर देश का इस्लाम अपने ढंग का अलग इस्लाम होगा| वास्तव में तुर्क लोग अपने आपको आधा एशियाई और आधा यूरोपीयाई मानते हैं| वे तुर्की को यूरोपीय संघ का सदस्य बनाने के लिए भी आतुर हैं| उनका कहना है कि औरतों का पर्दा गैर-बराबरी का सबूत है| यदि पर्दा करना अच्छी बात है तो उसे मर्द क्यों नहीं करते? पर्दे को लादना तो शुरूआती कदम है| एक बार पर्दे की छूट मिली कि दूसरी सभी इस्लामी (अरबी) बुराइयॉं तुर्की समाज को भ्रष्ट कर देंगी| उसे वे मध्ययुगीन बर्बर-काल में घसीट ले जाऍंगी| इसीलिए तुर्की की फौज ने संसद, नेताओं और जनता को धमकी दी है कि अगर वे सेक्युलरिज्म से खिलवाड़ करेंगे तो फौज चुप नहीं बैठेगी| तुर्की फौज ने पहले भी इस्लामी सरकारों को अपदस्थ किया है| तुर्की फौज कमाल पाशा की परंपरा का सबसे सशक्त स्तंभ है| अब भी यही डर है कि संसद के संशोधन के खिलाफ या तो अदालत या फौज का सहारा लिया जाएगा|
क्या यह आश्चर्य नहीं कि तुर्की की फौज, दुनिया के दूसरे देशों की फौज के मुकाबले उलटा काम कर रही है? वह कट्टरवाद के विरूद्घ लड़ रही है| आश्चर्य यह भी है कि यूरोप के मानव अधिकार न्यायालय ने भी फौज का ही समर्थन किया है| क्या इस यूरोपीय समर्थन के पीछे इस्लाम-विरोध नहीं है? सभी यूरोपीय राष्ट्र ईसाई हैं| वे सेक्युलरिज्म की आड़ में पर्दे का विरोध कर रहे हैं| जैसे फ्रॉंस के स्कूलों मे सिख छात्रें को पगड़ी नहीं पहनने देना सेक्युलरिज़म है, वैसे ही तुर्की महिलाओं को स्कार्फ नहीं पहनने देना भी सेक्युलरिज़म है| ऊपर से देखने में लगता है कि यूरोपीय अदालत का फैसला बहुत तर्कसंगत है|
वास्तव में यूरोपीय अदालत भी गलत है और तुर्की फौज भी दुराग्रह पर डटी हुई है| यूरोपीय लोगों से कोई पूछे कि अगर पगड़ी और हेडस्कार्फ पर प्रतिबंध है तो टाई पर प्रतिबंध क्यों नहीं है? अगर पगड़ी सिख धर्म और हेडस्कार्फ इस्लाम का प्रतीक है तो टाई ईसाइयत की प्रतीक है| किसी भी सेक्यूलर राष्ट्र ने आज तक टाई पर प्रतिबंध क्यों नहीं लगाया? मुस्लिम राष्ट्रों में टाई को छूट है तो ईसाई राष्ट्रों में बुर्के को छूट क्यों नहीं है? जिसको जो पहनना हो, सो पहने, यही मानवाधिकार है, यही स्वतंत्र्ता है, यही समानता है और यही लोकतंत्र् है| सेक्युलरिज़म के नाम पर तुर्की और यूरोपीय राष्ट्रों में क्या मानवाधिकार और लोकतंत्र् का उल्लंघन नहीं हो रहा है? तुर्की की ज्यादातर महिलाऍं हेडस्कार्फ को ठीक समझती हैं, इसीलिए हाल ही के चुनाव में ‘जस्टिस और डेवलपमेंट पार्टी’ दुबारा चुनाव जीतकर सत्तारूढ़ हुई है| तुर्की की फौज और अदालत को जनमत के विरूद्घ जाने का नैतिक अधिकार किसने दे दिया है? हजारों स्कार्फधारी लड़कियों को हर साल उच्च शिक्षा से वंचित रखने में कौनसी प्रगतिशीलता हैं? कोई भी तर्कशील व्यक्ति पर्दे का समर्थन नहीं कर सकता लेकिन पर्दे के विरोध के नाम पर सारे तर्क को स्थगित नहीं किया जा सकता| यदि तुर्की या फ्रांस की सरकार अर्द्घनग्नता या नग्नता पर प्रतिबंध लगाए तो वह तो समझ में आता है लेकिन पर्दे पर प्रतिबंध लगाना वैसा ही है जैसा कि हर औरत के लिए पर्दे को अनिवार्य बना देना| यह जुड़वां मूढ़ता है| इस्लामी और ईसाई देशों की यह दोमुंही मूढ़ता हास्यास्पद हैं| क्या ये राष्ट्र भारत से भी कुछ सीखेंगे?
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