दैनिक भास्कर, 15 मई 2008 : पाकिस्तान में जो नहीं होना चाहिए था, वह हो रहा है| दुनिया के किसी देश में क्या कोई गठबंधन-सरकार सिर्फ दो-माह में गिरी है? पाकिस्तान में पीपीपी और मुस्लिम लीग का गठबंधन लगभग टूट गया है| नवाज़ शरीफ के 9 मंत्रियों ने इस्तीफा दे दिया है| सरकार अभी क़ायम है लेकिन वह लंगड़ी हो गई है| इस समय जनरल परवेज़ मुर्शरफ से ज्यादा खुश आदमी पाकिस्तान में कौन होगा? उनको हटाने का मुद्दा अपने आप नेपथ्य में चला गया है| अब मुद्दा नम्बर-एक यह है कि वर्तमान सरकार चलेगी या नहीं और चलेगी तो कैसे चलेगी या दुबारा चुनाव होंगे?
सरकार छोड़ते समय मियाँ नवाज़ ने यह जरूर कहा है कि वे सरकार गिराने के पक्ष में नहीं हैं| वे बाहर रहकर समर्थन करेंगे| और समर्थन का आधार होगा, हर मुद्दे की जाँच-पड़ताल! अगर कोई मुद्दा ठीक नहीं जंचा तो वे सरकार के विरूद्घ मतदान करेंगे याने आसिफ़ जरदारी की पीपीपी सरकार को मुस्लिम लीग (नवाज़) का समर्थन वैसा ही होगा, जैसा चंद्रशेखर-सरकार को राजीव गाँधी की काँग्रेस का था| यदि दोनों दलों में कोई समझौता नहीं होता है तो यह कहने की जरूरत नहीं कि पाकिस्तान की यह नई सरकार कुछ ही हफ्तों की मेहमान होगी| यह कैसे हो सकता है कि यह मियाँ नवाज़ की पार्टी हाथ पर हाथ धरकर बैठ जाए और मुशर्रफ और ज़रदारी पाकिस्तान की छाती पर मूँग दलते रहें|
फिलहाल आशा की एक छोटी-सी किरण बची हुई है| ज़रदारी और नवाज़ में अभी आखरी बातचीत होनी है| ज़रदारी लंदन से लौटते ही नवाज़ से मिलेंगे| दोनों के बीच विवाद यह नहीं है कि बर्खास्त जजों को बहाल करना है या नहीं| दोनों उनकी बहाली चाहते हैं| दोनों ने मार्च में भुजबन-घोषणा में उनकी बहाली की तारीख भी तय कर दी थी| वह तारीख तो निकल गई और उसके बाद दुबई में घोषित 12 मई की तारीख को भी कुछ नहीं हुआ| अब शायद कोई तीसरी तारीख तय हो जाए| यदि यह तारीख तय हो गई तो उसमें मुख्य मुद्दा यह तय होना है कि बर्खास्त जजों को क्या ज्यों का त्यों बहाल करना है? नवाज कहते हैं कि यथापूर्व स्थिति लाओ| ज़रदारी पूछते हैं कि संघीय और प्रांतीय न्यायालयों में नव-नियुक्त जजों का क्या होगा? वे कहाँ जाएँगे? जो मुख्य न्यायाधीश के पदों पर बैठे हुए हैं, उन्हें कहाँ बिठाएँगें? इसके अलावा जजों के निरंकुश बर्ताव और कार्यावधि की सीमा बाँधनी भी जरूरी है| नवाज़ कहते हैं कि यह सब बाद में सोचेंगे| पहले इफ्तिखार चौधरी समेत 60 जजों को बहाल करो| मामला यहीं अटका हुआ है|
क्यों अटका हुआ है? यदि सारे जज ज्यों के त्यों बहाल हो गए तो मुशर्रफ की छुटटी सुनिश्चित है| ये जज मुशर्रफ के जानी दुश्मन हैं| जैसे मुशर्रफ ने नवाज़ को हटाया था, वैसे ही उन्होंने इन जजों को हटा दिया था| बहाल होते ही ये जज मुशर्रफ द्वारा थोपे गए आपातकाल और उनके अपने राष्ट्रपति के चुनाव को अवैध घोषित करेंगे| दूसरे शब्दों में ये जज जवाज़ की तोप के गोले सिद्घ होंगे| चुनाव में दूसरे नम्बर पर रहने के बावजूद नवाज़ सत्ता के सर्वोच्च सूत्र्धार बन जाएँगे| यही फाँस है, जो जारदारी को सबसे ज्यादा चुभ रही है| इसके अलावा अमेरिका, मुशर्रफ और बेनजीर में जो अलिखित समझौता हुआ था, उसके मुताबिक मुशर्रफ को बर्दाश्त करते रहने पर सहमति बन गई थी| ज़रदारी उस सहमति को भंग नहीं करना चाहते और नवाज़ मुशर्रफ को एक दिन के लिए भी राष्ट्रपति को कुर्सी पर बैठा हुआ नहीं देखना चाहते| इसी दुविधा में आज की पाकिस्तानी राजनीति फँस गई है|
तो क्या अब कोई रास्ता नहीं बचा है? एक रास्ता तो है लेकिन यह पता नहीं कि मियाँ नवाज उस पर चलना पसंद करेंगे या नहीं| वे पीपीपी को अपना प्रस्ताव लाने दें और मतदान में हिस्सा न लें| मुस्लिम लीग (क़ा) और एम क्यू एम के समर्थन से वह प्रस्ताव पारित हो जाएगा और सारे जज वापस आ जाएँगे| मियाँ नवाज़ कह सकेंगे कि जजों की बहाली के लिए हम जितना कर सकते थे, हमने किया| अगर जनता हमें स्पष्ट बहुमत देती तो हम उन्हें अपनी शर्तों पर लाने| यह कहकर उनके मंत्री दुबारा सरकार में आ सकते हैं लेकिन यह पैंतरा उन्हें ले डूबेगा| उन्हें मुशर्रफ और ज़रदारी का पिछलग्गू बनना पडे़गा| जो व्यक्ति तीन-चौथाई बहुमत से पाकिस्तान का प्रधानमंत्री रह चुका हो, वह अपनी कब्र क्यों खोदेगा?
तो फिर मियाँ नवाज़ पीपीपी की सरकार को गिरा क्यों नहीं देते? पाकिस्तान तो अपनी अंधाधुध कार्रवाइयों के लिए काफी कुख्यात है| कई बार सेनापतियों ने प्रधानमंत्र्ियों को उलट दिया है, मुख्य न्यायाधीशों और राष्ट्रपतियों ने मुख्य न्यायाधीशों के तंबू उखाड़ दिए हैं| फिर भी आजकल नवाज़ और जरदारी अप्रतिम संयम का प्रदर्शन कर रहे हैं| इसका एक कारण तो पंजाब प्रांत की मिली-जुली सरकार है| यदि नवाज़ केंद्र में पीपीपी सरकार गिराएँगे तो जरदारी पंजाब में मुस्लिम लीग (न) सरकार गिरा देंगे| इसके अलावा दोनों नेताओं ने लगभग आठ साल तक फौज के हाथों भयंकर बेइज्जती सही है और सजा़ पाई है| दोनों उससे मुक्ति पाना चाहते हैं| तीसरा, दोनों पर पाकिस्तानी जनता का बड़ा दबाव है कि वे मिलकर काम करें| चौथा, नवाज़ जानते हैं कि यदि वे जरदारी का साथ छोड़ देंगे तो अलग-थलग पड़ जाएँगे| पीपीपी को मुशर्रफ-समर्थक मुस्लिम लीग (का) और एम.क्यू.एम. का समर्थन मिल जाएगा| पख्तून और कुछ बलूच पार्टियाँ भी उनके साथ हो जाएँगी| इसलिए गठबंधन या सरकार को एकदम तोड़ देना ठीक नहीं| उधर जरदारी की समस्या यह है कि उन्हें जिन्दा रहने के लिए जिन तत्वों से हाथ मिलाना पड़ेगा, वे उन्हें उनके समर्थकों में बदनाम कर देंगे| अगर इन कारणों से प्रेरित होकर किसी तरह यह गठबंधन चल गया तो पाकिस्तान में थोड़ा-बहुत स्थायित्व आ सकता है और राष्ट्रीय मेल-मिलाप का माहौल बन सकता है|
अन्यथा इस सरकार का गिरना तो तय है ही| इसका सबसे ज्यादा फायदा नवाज़ शरीफ मुशर्रफ-विरोधी और अमेरिका-विरोधी लहर पर सवार होंगे| पूरा पंजाब उनके पीछे होगा| अब न तो जिंदा बेनज़ीर से उनकी टक्कर है और न ही शहीद बेनज़ीर से| ज़रदारी फिलहाल बहुत ही उच्च स्तर की राजनीति कर रहे हैं लेकिन वे अपनी पार्टी और आम जनता, दोनों में विवादास्पद हैं| यदि नवाज़ शरीफ़ ने दुबारा चुनाव की नौबत खड़ी कर दी तो उन्हें स्पष्ट बहुमत मिलना तय होगा| ऐसे में मुशर्रफ मंजिले-सदर और फौजी मुख्यालय में कुछ समय के लिए और टिके रह सकेंगे|
(लेखक अन्तरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ हैं|)
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