Dainik Bhaskar, 4 Dec 2003 : भारत और पाकिस्तान के बीच कैसे-कैसे अजूबे होते रहते हैं| दोनों पड़ौसियों के संबंध कब खाई में उतर जाऍंगे और कब पहाड़ पर चढ़ जाऍंगे, कुछ पता ही नहीं चलता| अभी कुछ माह पहले दोनों देश एक-दूसरे को सबक सिखाने का दावा कर रहे थे और अब अचानक उन्होंने अपनी सीमाओं पर शस्त्र-विराम लागू कर दिया है और हवाई मार्ग खोलने की घोषणा कर दी है| कोई आश्चर्य नहीं कि शीघ्र ही थल और जल मार्ग भी खुल जाऍं याने लाहौर-अमृतसर तथा श्रीनगर-मुजफ्फराबाद बसें और मुम्बई-कराची जहाज भी चल जाऍं| इस घटना-चक्र पर दुनिया की महाशक्तियॉं गद्रगद्र हैं| वे बधाइयॉं और शुभकामनाऍं भेज रही हैं| जनरल परवेज़ मुशर्रफ अपनी पहल से इतने उत्साहित हैं कि वे भारतीय प्रधानमंत्री को पाकिस्तान के सर्वोच्च सम्मान से विभूषित करना चाहते हैं|
आखिर इसका कारण क्या है ? क्या पाकिस्तान का हृदय-परिवर्तन हो गया है ? क्या उसके शासक यह समझ गए हैं कि भारत के साथ टक्कर लेना फिजूल है ? क्या उन्हें ये आभास हो गया है कि यदि वे भारत के साथ सभ्य पड़ौसी की तरह नहीं रहेंगे तो सारी दुनिया में बदनाम हो जाऍंगे ? क्या उन्हें यह डर सता रहा है कि भारत-पाक संबंध नहीं सुधरेंगे तो अमेरिकी गाज उन्हीं के सिर पर गिरेगी ? क्या पाकिस्तान की फौज का पल्ला पतला हो गया है ? क्या इसी कारण यु़द्घ की बजाय शांति की पहल हो रही है ? नहीं, इस तरह की कोई बात नहीं हुई है| फिर पाकिस्तान ने शस्त्र-विराम की पहल क्यों की और हवाई मार्गों को खोलने पर सहमत होते हुए अपनी शेखचिल्ली जैसी शर्तों को क्यों नहीं दोहराया ? इसका उत्तर सिर्फ एक है| वह यह कि वह जनवरी में होनेवाले अपने दक्षेस सम्मेलन को सफल हुआ देखना चाहता है| यदि भारत याने एक सदस्य भी उसमें भाग न ले तो सम्मेलन ही नहीं हो सकता, यह उसका संवैधानिक प्रावधान है| यदि भारत भाग लेने को तैयार हो जाए लेकिन प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी न जाऍं तो वह अपने आप फीका पड़ जाएगा या न हुए बराबर हो जाएगा| ऐसी स्थिति में भारत जो भी रियायत मॉंगेगा और यदि वह पाकिस्तान के राष्ट्र्रहित के विरुद्घ नहीं हुई, तो उसे पाकिस्तान दे देगा| इस समय पाकिस्तान का रवैया वही है, जो बेटी के ब्याह में बाप का होता है| ब्याह में विघ्न-बाधा न हो इसलिए बेटी का बाप हर रिश्तेदार के चरणों मेें अपनी पगड़ी रखने को तत्पर हो जाता है| पाकिस्तान फिलहाल यही कर रहा है|
यों भी पाकिस्तान का क्या बिगड़ रहा है ? शस्त्र-विराम वह घोषित नहीं करता तो भी वह घोषित किए बराबर ही होता ! इस प्राणलेव ठंड में सीमाऍं अपने आप जम जाती हैं| सीमा-पार गतिविधियॉं लगभग थम जाती हैं| यदि यह शस्त्र-विराम तब तक के लिए होता जब तक कि कश्मीर-समस्या नहीं सुलझ जाती, तब तो कोई बड़ी बात होती| यह तो साल भर के लिए भी नहीं है| यह अवधिविहीन है| याने पैंतरा है| जब चाहें पलट लें| इसी प्रकार हवाई मार्ग खोलने में पाकिस्तान का क्या घिस रहा है ? कुछ नहीं| भारत पर से उसकी दर्जन भर उड़ानें जाती हैं जबकि उस पर से भारत की लगभग सवा सौ उड़ानें जाती हैं| भारत का नुक्सान ज्यादा है लेकिन उससे पाकिस्तान का क्या फायदा है ? कुछ नहीं लेकिन भारत के ऊपर से रुकी हुई दर्जन भर उड़ानों को सैकड़ों मील घुमाकर ले जाने में पाकिस्तान को जो नुक्सान हो रहा है, वह तो हो ही रहा है| इसीलिए हवाई समझौते में से उसने यह शर्त हटा ली कि भारत एकतरफा हवाई मार्गबंदी का फैसला कभी नहीं करेगा| इसी तरह सियाचिन में भी शस्त्र-विराम का भारतीय सुझाव मानकर पाकिस्तान ने कोई बड़ा अहसान नहीं किया है| सर्दियों के मौसम में सियाचिन-जैसी जगह में गोले बरसाकर पाकिस्तान को क्या मिलना था| यदि कश्मीर, सिंध-राजस्थान, पंजाब और महाराष्ट्र-सिंध जलमार्ग और थल-मार्ग खुलेंगे तो पाकिस्तान को भी उतना ही लाभ होगा, जितना भारत को|
इसीलिए शांति का प्रस्ताव इधर से जाए या उधर से आए, भारत भी बहानेबाजी क्यों करे ? उसे स्वीकार करने में ही भारत का हित है| भारत का सबसे बड़ा फायदा तो इसी बात में है कि कश्मीर का मुद्दा जहॉं खड़ा था, वहीं खड़ा है और संबंध-सुधार की सरिता आगे बह रही है| पाकिस्तानी कश्मीर की रट लगाए हुए हैं और भारत सीमा-पार आतंकवाद की ! दोनों जानते हैं कि ये दोनों मुद्दे हाथी के दॉंत हैं| खाने के और तथा दिखाने के और ! न भारत कश्मीर पर नरम पड़नेवाला है और न पाकिस्तान सीमा-पार आतंकवाद पर लगाम लगानेवाला है| आतंकवाद के साथ उसका चोली-दामन का साथ है| अफगान राष्ट्रपति हामिद करजई ने स्पष्ट आरोप लगाया है कि तालिबान नेता मुल्ला उमर को पाकिस्तान में देखा गया है| आतंकवाद को पालने-पोसनेवाली अफीम की खेती पाकिस्तान के फौजी अफसरों और नेताओं की भी जेबें गर्म करती रहती है| यदि आतंकवाद खत्म हो जाए तो पाकिस्तान का मुल्ला-तंत्र बेकार नहीं हो जाएगा ? और फिर कश्मीर के मुद्दे में कौनसी जान रह जाएगी ? कश्मीर के निष्पक्ष चुनाव, मुफ्ती सरकार की स्थापना और हुर्रियत के साथ खुला संवाद पाकिस्तान के होश उड़ाने के लिए काफी है| आतंकवाद ही अब उसका अंतिम सहारा रह गया है| आतंकवाद से लड़ने के नाम पर ही उसे अमेरिकी भीख मिलती है| इसीलिए शांति की बात उसके लिए सिर्फ वक़्ती पैंतरा है| दक्षेस के बहाने भारत का उल्लू सीधा हो रहा है, जब तक होता रहे, अच्छा है | यह पूछा जा सकता है कि सीमा-पार आतंकवाद के तकि़या-कलाम का क्या हुआ ? उसके बंद हुए बिना प्रधानमंत्री पाकिस्तान क्यों जा रहे हैं ? इसका जवाब यह है कि 10 माह तक सीमांत पर फौजें अड़ाकर हमने लगभग 20 खरब रु. खो दिए और हमारा दॉंव फेल हो गया तो अब प्रधानमंत्री के जाने से कौनसा बड़ा नुक्सान होनेवाला है ? पाकिस्तान जाकर वे कुछ न कुछ मिसरी ही घोलेंगे| मिर्ची झोंकना उनकी आदत नहीं है| यदि कुछ ज्यादा न हुआ तो इतना तो होगा ही कि संसद पर हुए हमले के बाद हमने गुस्से में जो गमले तोड़ दिए थे, वे जुड़ जाऍंगे| दोस्ती के फूल उनमें खिलेंगे या नहीं, यह कहना अभी ठीक नहीं|
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