नया इंडिया, 20 जनवरी 2014 : भारत और पाकिस्तान के मोर्चे से बहुत दिनों बाद एक खुश खबर आई हैं। दोनों देशों के व्यापार मंत्रियों ने बरसो से चल रहे समझौते को संपन्न कर लिया है। इस समझौते के अंतर्गत दोनों राष्ट्र एक-दूसरे के व्यापार के लिए अपने-अपने दरवाजे खोल देंगे। अभी तक यह समझौता अपने नाम की वजह से अधर में लटकता हुआ था। राष्ट्रपति आसिफ जरदारी बहुत चाहते थे कि भारत और पाकिस्तान के बीच होने वाले व्यापार के सारे प्रतिबंध उठा लिए जाए लेकिन वे इस समझौते पर दस्तखत करने से इसलिए घबराते रहे कि इसका नाम था- ‘सर्वाधिक अनुग्रहीत राष्ट्र’ (मोस्ट फेवर्ड नेशन), जिसका उर्दू में अनुवाद होता है- ‘सबसे पसंदीदा मुल्क’। यह शब्द ही बाधा बन गया था। पाकिस्तान में अब भी ऐसे बहुत से लोग हैं, जो सपने में भी भारत को सबसे पसंदीदा राष्ट्र नहीं कह सकते। इसी प्रकार भारत में भी बहुत से लोगों को यह बात नहीं जंचेगी कि पाकिस्तान को सबसे अधिक पसंदीदा राष्ट्र कहा जाए। ऐसे में क्या किया जाए?
दोनों वित्त मंत्रियों ने अब एक बीच का रास्ता निकाल लिया है, जिस पर किसी भी पक्ष को आपति नहीं हो सकती। उन्होंने राष्ट्र शब्द ही उड़ा दिया। यह शब्द विश्व-व्यापार संगठन ने दिया था। अब राष्ट्र पर जोर देने की बजाए इन दोनों राष्ट्रों ने असली बात पर जोर दिया है। असली बात क्या है? असली बात व्यापार है। प्रारंभिक व्यापार के लिए जो राष्ट्र एक-दूसरे को बहुत अधिक रियायतें देते हैं, वे ही एक समझौता करते हैं। अब भारत और पाकिस्तान ने इस समझौते का नया नाम रख लिया है। यह नाम हिंदी या उर्दू में नहीं है। दोनों देश अंग्रेजों के गुलाम रहे हैं। दोनों ने इस नए समझौते का नाम अंग्रेजी में रखा है- ‘नॉन डिसक्रिमिनेटरी मार्केट एक्सेस’ याने ‘भेदभावहित व्यापार’। अब दोनों देश एक-दूसरे के साथ ज्यादा रोक-टोक और भेदभाव नहीं करेंगे।
दोनों राष्ट्रों ने ऐसी सैकड़ों वस्तुओं की सूची तैयार कर रखी है, जिनका व्यापार धड़ल्ले से होगा। इसके कारण अब तस्करी कम होगी और दुबई के जरिए होने वाला पेंचीदा व्यापार घटेगा।दोनों देशों के बीच व्यापार बढ़ेगा तो दोनो को इतना अधिक फायदा होगा कि उसका सीधा असर इसके राजनीतिक संबंधों पर भी बढ़ेगा। व्यापार खुलेगा तो आवागमन भी बढ़ेगा। दोनों तरफ से वीजा में ढील दी जाएगी। बसें, रेले और जहाज जरा ज्यादा चलेंगे।यदि हजारों लोगों का रोजाना आना-जाना शुरू हो जाए तो दोनों देशों के नेताओं और फौजों को भी एक दूसरे के साथ जरा नरमी से पेश आना पड़ेगा। आतंकवादियों के प्रति पाकिस्तान में जो थोड़ी बहुत सहानुभूति है, वह भी घटेगी।
यदि भारत-पाक संबंध सुधरेंगे, जनता से जनता के संबंध बढ़ेंगे तो मान लीजिए कि संपूर्ण दक्षिण और मध्य एशिया का नक्शा ही बदल जाएगा।दक्षेस (सार्क) को बने 28 साल हो गए लेकिन व अभी तक इसलिए रेंग रहा है, उसने अभी तक इसलिए चलना नहीं सीखा है कि दक्षेस के दो सबसे बड़े सदस्यों में सदभाव नहीं बन सका है। अब यह ‘सबसे पसंदीय राष्ट्र’ का नाम बदला हुआ समझौता शायद जादू की छड़ी सिद्ध हो।
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