R Sahara, 10 Aug 2003 : प्रसार भारती को आजकल पैसे की चिंता बहुत सता रही है ! उसके वित्त-सदस्य ने बोर्ड के गले यह बात उतार दी है कि यदि अ-हिन्दी क्षेत्रों में हिन्दी कार्यक्रम दिखाए जाऍंगे तो दूरदर्शन को विज्ञापन नहीं मिलेंगे और इसी कारण अब भी नहीं मिल रहे हैं ! इसीलिए बोर्ड की पिछली बैठक में यह निर्णय हो गया कि अ-हिन्दी क्षेत्रों में राष्ट्र्रीय चैनल पर हिन्दी कार्यक्रम न दिखाए जाऍं ! केवल क्षेत्रीय भाषाओं और अंग्रेजी के कार्यक्रम दिखाए जाऍं ! यह निर्णय उस समय हुआ जब सदस्य डॉ, विद्यानिवास मिश्र बैठक से कहीं चले गए ! अन्य सदस्य श्रीमती चित्रा मुद्रगल ने इसका विरोध किया ! बोर्ड की ताजा बैठक में दोनों सदस्यों ने दुबारा विरोध किया तो उन्हें बताया गया कि अब ऐसी व्यवस्था हो गई है कि अहिन्दीभाषी क्षेत्रों में जो भी हिन्दी कार्यक्रम देखना चाहेंगे वे केबल-सेवा के जरिए देख सकेंगे ! अर्थात्र जिसे राष्टीय चैनल कहा जाता है, उस पर अब राष्टभाषा प्रतिबंधित हो जाएगी ! इसका फलितार्थ क्या है? यह है कि पहला अहिन्दी क्षेत्रों में रहनेवाले करोडों हिन्दीभाषी स्वभाषा में कुछ भी नहीं देख सकेंगे ! दूसरा, जिन्हें हिन्दी में देखना हो वे केबल-किराए की मासिक सजा भुगतें ! तीसरा, अहिन्दी बच्चों का हिन्दी सीखने का जो सरस माध्यम है, वह बंद कर दिया जाए ! चौथा, महाभारत, रामायण, बुनियाद जैसे सफल और लोकपि्रय हिन्दी कार्यक्रमों के जरिए राष्ट्र्रीय एकता को सुदृढ बनाने की बजाय अब दूरदर्शन अंग्रेजी कार्यक्रमों पर साधारण जनता का समय नष्ट करेगा ! प्रादेशिक भाषाओं को अधिकाधिक बढावा देना सर्वथा उचित है लेकिन हिन्दी को काटकर क्या अंग्रेजी से भारत को जोडा जा सकता है? धन्य है, प्रसार भारती !
‘ ‘ ‘
सहज विनम्रता बनाए रखना कितना कठिन है, खास तौर से तब जबकि आप देश के सबसे शक्तिशाली पद पर विराजमान हों ! पिछले हफ्ते प्रधानमंत्री निवास में दो पत्रकारों का सम्मान हुआ ! श्री नारायण राव तरटे और श्री रामशंकर अग्निहोत्री ! तरटे जी 86 वर्ष के हैं और अग्निहोत्री जी 79 के ! दोनों को बापूराव लेलेश् सम्मान मिला ! लेलेजी हिन्दुस्थान समाचारश् में श्री बालेश्वर अग्रवाल के साथ कई दशक तक पत्रकारिता में सकि्रय रहे उनकी स्मृति में यह प्रथम सम्मान समारोह हुआ ! सरसंघचालक सुदर्शनजी, आडवाणीजी और अटलजी के भाषण हो लिए ! अब बारी आई तरटेजी की ! तरटेजी इतने कमजोर और दुबले-पतले हो गए हैं कि भाषण देने के लिए खडे नहीं हो सकते थे ! सो, आयोजकों ने एक ताररहित माइक उनके हाथ में पकडा दिया ताकि वे बैठे-बैठे ही बोल सकें लेकिन वह डेढ-दो सौ ग्राम का माइक भी उन पर भारी पड रहा था ! उनका हाथ कॉंपने लगा ! तुरंत प्रधानमंत्री वाजपेयी ने वह माइक तरटेजी के हाथ में से ले लिया और उसे तब तक तरटेजी के मुंह के आगे लगाए रखा, जब तक वे बोलते रहे ! किसी देश का प्रधानमंत्री क्या किसी का माइक थामे रहता है? न तरटेजी ने कोई आपत्ति की और न ही प्रधानमंत्रीजी ने कोई बडप्पन जताया ! सहज विनम्रता का यह रूप मैंने पहली बार देखा ! ये तरटेजी वही हैं, जिन्होंने 1939 में ग्वालियर में नौजवान अटलबिहारी को संघ में दीक्षित किया था और गीत व कविता लिखने के लिए प्रेरित किया था ! इसी प्रकार कुछ माह पहले श्री माणिकचंद्र वाजपेयी का भी सम्मान हुआ ! मामाजीश् के नाम से विख्यात वाजपेयीजी ने कई दशक पहले इन्दौर और ग्वालियर से दैनिक स्वदेशश् निकाला था ! मामाजी को शाल ओढाने के बाद प्रधानमंत्री ने कहा कि अब आपकी अनुमति हो तो मैं आपके चरण-स्पर्श करूं और पूरे झुककर उन्होंने मामाजी के पॉंव छू लिए ! अगर फोटो-पत्रकारिता के व्यावसायिक कोण से देखें तो ये दोनों चित्र काफी छपने लायक हो सकते थे लेकिन इन दृष्यों पर किसी पत्रकार की नजर क्यों नहीं गई ? शायद इसीलिए कि यह संघ-परिवार का अन्दरूनी मामला था !
‘ ‘ ‘
इस हफ्रते पत्रकारिता से संबंधित दो पुस्तकों का विमोचन सूचना-प्रसारण राज्यमंत्री रविशंकर प्रसाद ने किया ! अरुणकुमार भगत और चन्दनकुमार नामक इन युवा-पत्रकारों की पुस्तकों के विमोचन-समारोह में बहस का मुद्दा यह बन गया कि भारत में पत्रकारों को अभिव्यक्ति की कितनी स्वतंत्रता होनी चाहिए ! जाहिर है कि पत्रकारों के समारोह में बिल्ली के गले में घंटी कौन बॉंधेगा ? फिर भी लगभग सभी वक्ताओं ने पत्रकारिता की मर्यादा पर जोर दिया ! अपनी राय यह थी कि पत्रकारों की स्वतंत्रता अबाध होनी चाहिए लेकिन मर्यादा-भंग की सजा भी अबाध होनी चाहिए ! चरित्र-हनन की सजा शरीर-हनन से कम नहीं होनी चाहिए ! चरित्र बडा है कि शरीर? इसी प्रकार पीत-पत्रकारिता से भी अधिक खतरनाक है, नीत-पत्रकारिता ! पीत-पत्रकारिता को कानून की गिरफ्रत में लेना आसान है लेकिन नीत-पत्रकारिता को को कभी-कभी पहचानना ही कठिन हो जाता है ! यह नीत-पत्रकारिता क्या बला है? नीत का मतलब है, ले जाई गई या ठेली गई या पहुंचाई गई ! सुनीता, परिणीता आदि शब्द इसी जाति के हैं ! पाकिस्तान के तानाशाह जनरल अयूब ने नीत-लोकतंत्र चलाया था गाइडेड-डेमोक्रेसी ! जब पत्रकारिता किसी दल या नेता या विचारधारा या नगद नारायण से नत्थी हो जाती है और स्वतंत्र होने का स्वांग रचती है तो वह नीत-पत्रकारिता बन जाती है ! वह ठेली हुई या गाइडेड पत्रकारिता होती है ! उसमें सत्य, निष्पक्षता, निर्भयता की बजाय किसी पार्टी या नेता या विचारधारा का ध्यान रखा जाता है ! सामान्य पाठक, राष्ट्रहित और पत्रकार का आत्म-सम्मान आदि गौण हो जाते हैं ! पत्रकारिता के नाम पर ठेला चलता है ! ठेले पर पता नहीं, किस-किसका माल लदा होता है !
‘ ‘ ‘
संसद ने कुछ शोधकृतियॉं स्थापित की हैं ! उनके बारे में बहुत कम लोगों को जानकारी है, हालॉंकी संसदीय सचिवालय देश-विदेश के विश्वविद्यालयों और शोध-संस्थानों को खबर भेजता रहता है ! ढाई लाख, दो लाख और एक लाख की राशियोंवाली ये वृत्तियॉं ऐसे विद्वान और पत्रकार ले सकते हैं, जो संसद संबंधी विषयों पर उत्तम शोधपरक छोटे या बडे ग्रंथ लिखने को राजी हों ! कितनी विडम्बना है कि पिछले तीन वर्षों में एक भी ग्रंथ तैयार न हो सकता जबकि भारत में सैकडों विश्वविद्यालय और शोध-संस्थान कार्य कर रहे हैं ! हर बैठक में पॉंच-दस शोध-प्रस्ताव अवश्य आते हैं लेकिन उनकी रूप-रेखा तक संतोषजनक नहीं होती ! भारत का संसदीय जीवन इतना सम्पन्न है तो उसका विश्लेषण-विवेचन इतना विपन्न क्यों?
Leave a Reply