नया इंडिया, 13 मार्च 2014 : संघ के सर संघचालक मोहन भागवत ने बेंगलुरु की प्रतिनिधि सभा के दौरान कह दिया कि ‘हमारा काम नमो-नमो करना नहीं है।’ उनके इस कथन को कांग्रेस ले उड़ी। डूबते जहाज को मानो सहारा मिल गया। मोदी का विरोध अगर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ही करने लगे तो फिर क्या है? कांग्रेस की चांदी ही चांदी है। देश की सारी मोदी-विरेाधी ताकतों के मन में मोदक (लड्डू) फूटने लगे। कुछ भाजपाई नेताओं को भी उनके कट्टर अनुयायियों ने उकसा दिया। उन्हें कह दिया कि आपके दिन लौटने वाले हैं। आप भी प्रधानमंत्री की कतार में दुबारा खड़े हो जाइए।
तुरंत प्रसन्न होने वाले इन महानुभावों को न तो संघ के इतिहास और परंपरा की जानकारी है और न ही इन्होंने भागवत के कथन को पूरा पढ़ा है। उन्होंने यह भी कहा था कि ‘हम राजनीति में नहीं हैं।…हमें अपने लक्ष्य के लिए काम करना है। वह किसी व्यक्ति-विशेष नहीं, राष्ट्र के प्रति समर्पित है। जो भी व्यक्ति चुना जाता है, यदि वह राष्ट्र के लिए काम करता है तो संघ उसका साथ देगा। वर्तमान सरकार और सत्तारुढ़ दल ने भारत में बेलगाम भ्रष्टाचार किया है। इसीलिए मोहन भागवत ने कहा है कि हमारे लिए ‘इस समय सवाल यह नहीं है कि कौन आना चाहिए बल्कि यह है कि कौन जाना चाहिए?’ उन्होंने गीता का एक श्लोक भी उद्धृत किया, जिसका अर्थ है कि परमात्मा सभी इंद्रियों का स्त्रोत है लेकिन वह सबसे विरक्त रहता है। बिल्कुल इसी प्रकार संघ भी रहे। वह पानी में कमल की तरह रहे। वह दैनंदिन राजनीति में न उलझे।
इसका अर्थ यही हुआ कि प्रधानमंत्री कौन बने या न बने, यह भाजपा तय करे। संघ जनता पर अपनी राय क्यों थोपे? जनता खुद तय करे कि वह किसे चुने। इसे लोकतांत्रिक रवैया नहीं कहा जाए तो क्या कहा जाए? इसमें मोदी का विरेाध कहां दिखाई देता है? हॉ, एक अद्भुत मर्यादा जरुर दिखाई पड़ती है। संघ यदि किसी व्यक्ति-विशेष का अंधभक्त या अंध-शत्रु होता तो वह पाकिस्तान के साथ हुए युद्धों के दौरान लालबहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी का खुला समर्थन क्यों करता? संघ की दृष्टि दीर्घकालिक होती है, तात्कालिक नहीं। इसीलिए संघ अपना विकल्प सदा खुला रखता है। तात्कालिक दृष्टि वाले लोग हवा में बहने लगते हैं और दीर्घकालिक दृष्टि वाले लोग हवा को अपने अनुकूल बहाने का प्रयत्न करते हैं। आम जनता प्रायः हवा में बहती है। कभी वह नेहरु, कभी इंदिरा और कभी वीपी सिंह की लहर में बही थी। आज वह नरेंद्र मोदी की लहर में बह रही है तो बहे। वह नमो-नमो करे, यह उचित भी है और उसे शोभा भी देता है लेकिन संघ अपनी मर्यादा बनाए रखे यह भी जरुरी है।
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