नया इंडिया, 31 अगस्त 2013 : अन्ना हजारे की सादगी पर कौन न मर जाए, या खुदा! अन्ना तो राहुल गांधी को भी मात कर रहे हैं। अमेरिका के डेलावियर में प्रवासी भारतीयों से बात करते हुए उन्होंने कह दिया कि वे नरेंद्र मोदी का समर्थन करेंगे बशर्ते कि वे भाजपा छोड़ दें। अन्ना के इस कथन पर उनके पूर्व-भक्त तो बिलबिला ही उठेंगे, बेचारे सेक्युलरवादियों की छाती पर भी सांप लोट जाएगा। अन्ना से कोई पूछे कि मोदी भाजपा क्यों छोड़ दें? तो उनका जवाब दुनिया के सभी राजनीतिशास्त्रियों को अवाक कर देगा। उनके अनुसार किसी भी लोकतंत्र में पार्टियां होनी ही नहीं चाहिए। जनरल वी के सिंह की बेटी की शादी में अन्ना अचानक मेरे पास आकर बैठ गए और पूछने लगे कि क्या हमारे संविधान में पार्टियों का प्रावधान है? मैंने कहा नहीं है। तो बोले कि हम सब पार्टियों को खत्म क्यों नहीं कर देते? मैंने कहा कि दुनिया के बहुत कम संविधानों में पार्टी-व्यवस्था का जिक्र है लेकिन सभी व्यवस्थाओं में पार्टियां हैं। ब्रिटेन में तो पार्टी क्या, प्रधानमंत्री और मंत्रिमंडल का भी जिक्र नहीं है। वहां तो लिखित संविधान है ही नहीं। तो क्या सबको खत्म कर दें?
अन्ना को आश्चर्य हुआ और चुप हो गए। उन्होंने कहा कि इस मुद्दे को मैं अखबारों में उठाना चाहता था। मैंने कहा कि अरविंद केजरीवाल की पार्टी के विरोध के लिए यह पैंतरा ठीक नहीं है। हां, दलविहीन लोकतंत्र की एक सैद्धांतिक बहस आप चला सकते हैं लेकिन मुझे पता था कि अन्ना हजारे जैसे एक सीधे-सच्चे साधारण कार्यकर्ता के लिए ऐसी बहस बहुत गरिष्ठ हो जाएगी।
लेकिन अन्ना का कोई क्या करे? वे तो राहुल से भी ज्यादा भले और भोले हैं। उन्होंने अमेरिका के मोदी समर्थकों के चंगुल से बच निकलने के लिए पार्टियों को खत्म करने की बात कह डाली। उनसे कोई पूछे कि क्या वे अभी भी सपनों में डूबे हुए हैं? उनके समर्थन और विरोध की अब कीमत क्या रह गई है? मोदी को अब किसी अन्ना खां या फन्ना खां की जरुरत नहीं है। वे किसी पार्टीविहीन नेता का समर्थन करेंगे याने वे व्यक्तिवादी फासीवाद का झंडा उठाएंगे। शायद अन्ना को पता नहीं कि मुसोलिनी और हिटलर की भी अपनी पार्टियां थीं। क्या अन्ना का समर्थन इतना महत्वपूर्ण है कि उसके लिए मोदी भाजपा छोड़ दें? याने अकेले अन्ना भाजपा से भी ज्यादा वोट पा सकते हैं? ऐसी बात कोई भला और भोला आदमी भी नहीं सोच सकता। यह तो किसी भोंदू के दिमाग का फितूर ही कहा जा सकता है।
हां, यदि अन्ना के हृदय में देश को बदलने का संकल्प होता और बदलाव की समझ होती तो वे वर्तमान सभी दलों को रद्द करते और उनके विकल्प के तौर पर एक नई व्यवस्था कायम करने का सपना दिखाते लेकिन रालेगण सिद्धि गांव के एक सीधे-सादे कार्यकर्ता से ऐसी आशा करना उन पर घोर अत्याचार करना है।
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