दैनिक भास्कर, 28 सितंबर 2013: अगर आप में इतना दम है कि पाकिस्तान में मौजूद आतंकी अड्डे आप उड़ा सकें तो उड़ा दें। आप फौजी कार्रवाई कर नहीं सकते यानी गोली नहीं चला सकते तो बोली तो चलाइए। और बोली ऐसी चलाइए कि वह गोली से भी ज्यादा तेज हो। आतंकी वारदात करने वालों के पसीने छूट जाएं।
प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह मियां नवाज शरीफ से न्यूयॉर्क में बातचीत करें या न करें, इस मुद्दे पर काफी बहस चल रही है। जम्मू में अभी-अभी हुए आतंकवादी हमले ने इस बहस को नई धार दी दे है। इस संबंध में मेरी स्पष्ट राय है कि उन्हें बात करनी चाहिए और डटकर करनी चाहिए।
सीमांत की घटनाओं और आतंकवादी हमलों के कारण पाकिस्तान के साथ बातचीत बंद करना कूटनीतिक भूल होगी। क्या ये घटनाएं कुरुक्षेत्र में चले महाभारत के युद्ध से भी ज्यादा भयंकर हैं? उस महासंग्राम के दौरान प्रतिदिन सूर्यास्त के बाद कौरव और पांडव बात करते थे या नहीं? अटलजी ने कारगिल के खलनायक जनरल मुशर्रफ से बात की या नहीं? उन्हें भारत बुलाया या नहीं? पिछले दिनों घटी घटनाएं क्या संसद पर हुए हमले से भी ज्यादा गंभीर हैं?
इसके अलावा हम यह न भूलें कि बात करने के लिए नवाज शरीफ खुद बेताब हैं। भारत-पाक बातचीत के विरुद्ध दिए जा रहे तर्क काफी बोदे मालूम पड़ते हैं। स्नोडन के मामले में ओबामा का पुतिन से वार्ता भंग करना तथा ब्राजील की राष्ट्रपति दिलमा रूसेफ का अमेरिका-यात्रा स्थगित करना अलग प्रकार की घटनाएं है। उनकी तुलना भारत-पाकिस्तान संवाद के साथ नहीं की जा सकती। ये देश एक-दूसरे के पड़ोसी नहीं हैं। जबकि भारत और पाक हैं। पड़ोसियों के बीच अनबोला आखिरकार कितने दिनों तक चल सकता है?
मैं पूछता हूं कि बात न करें तो क्या करें? अगर आप में इतना दम है कि पाकिस्तान के अंदर जो आतंकवादी अड्डे हैं, उन्हें आप उड़ा सकें तो उड़ा दें या हाफिज सईद और दाऊद इब्राहिम पर ड्रोन हमला कर सकें तो कर दीजिए। आप फौजी कार्रवाई कर नहीं सकते यानी गोली नहीं चला सकते तो बोली तो चलाइए। और बोली ऐसी चलाइए कि वह गोली से भी ज्यादा तेज हो। सीमांत झड़पों और आतंकवादी वारदात करने वालों के पसीने छूट जाएं। बातचीत को अभी सिकोडऩे की जरूरत नहीं है, फैलाने की जरूरत है।
सिर्फ चुनी हुई सरकार से बातचीत काफी नहीं है। बातचीत तो पाकिस्तान की फौज और उसकी खुफिया संस्था आईएसआई से भी होनी चाहिए। ये दोनों संगठन उक्त घटनाओं के जनक हैं। वहां चुनी हुई सरकारें हमारी सरकारों की तरह सर्वोच्च और सर्वशक्तिमान नहीं होतीं। यह जरूरी नहीं है कि ये सराकारें भारत-विरोधी कारस्तानियों के लिए फौज को उकसाएं या आईएसआई की पीठ ठोकें।
पाकिस्तानी सरकारें दूध की धुली होती हैं, मैं यह भी नहीं कह रहा हूं, लेकिन मियां नवाज की यह नई सरकार भारत से संबंध सुधारने के लिए कृत-संकल्प है, यह मैं अपने अनुभव से कह रहा हूं। सिर्फ नवाज की मुस्लिम लीग ही नहीं, पाकिस्तान के सभी प्रमुख दलों के शीर्र्ष नेताओं से वार्तालाप करके मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि पाकिस्तान के राजनीतिक लोग दोनों देशों के बीच संबंध-सुधार को पाकिस्तान की बेहतरी के लिए अत्यंत आवश्यक मानने लगे हैं। मियां नवाज शरीफ पिछली बार प्रधानमंत्री पद पर इसी नारे की बदौलत आए थे और वे अब भी इसे अपना मिशन मानते हैं। भारत को संबंध-सुधार का यह अवसर अपने हाथ से फिसलने नहीं देना चाहिए।
इस अवसर को इसलिए भी नहीं फिसलने देना चाहिए कि पाकिस्तान के इतिहास में इस समय फौज का जलवा जितना घटा है, उतना पहले कभी नहीं घटा। 1971 में बांग्लादेश बनने की वजह से घटा था लेकिन उसका श्रेय भारत को मिला था। इस बार फौज अपनी वजह से ही निचले पायदान पर खिसक गई है। ओसामा बिन लादेन, बलूच नेता अकबर बुग्ती की हत्या, लाल मस्जिद कांड और अमेरिकी ड्रोन हमलों के कारण फौज का रुतबा फीका पड़ रहा है। इसके अलावा आर्थिक संकट ने पाकिस्तान को मजबूर किया है कि वह बिजली और पानी के लिए भारत के दरवाजे खटखटाए।
पाकिस्तान को पता है कि अगले साल अफगानिस्तान से अमेरिकी वापसी के बाद उसकी मुसीबतें बढऩे वाली हैं। यदि भारत से उसके संबंध सुधर जाएंगे तो मध्य एशिया दोनों राष्ट्रों के लिए एक साथ खुल जाएगा। मध्य एशिया के तेल, गैस और अन्य खनिज सारे दक्षिण एशिया को मालामाल कर देंगे। भारत सबसे ज्यादा फायदे में रहेगा।
ऐसी हालत में जब जम्मू जैसी जगह पर इतनी भयंकर वारदात हो जाए तो भारत में क्रोध की लहर का दौड़ जाना स्वाभाविक है लेकिन इस मौके का फायदा उठाकर आतंकवाद के उन्मूलन पर भारत-पाक संयुक्त कार्रवाई का घोषणा-पत्र जारी किया जा सकता है। आतंकवाद दोनों का समान शत्रु है। भारत से ज्यादा पाकिस्तान शिकार है, आतंकवाद का! जम्मू से ज्यादा भयंकर हमला पेशावर में हुआ था, इसी हफ्ते!
नवाज शरीफ कुछ हिम्मत करें और भारत-विरोधी आतंकवादी संगठनों और व्यक्तियों को दंडित करें या भारत के हवाले करें। यह बात मनमोहन सिंह को जरा डटकर करनी चाहिए और अगर उनमें दम हो तो मियां नवाज को यह भी कह सकते हैं कि मियां साहब अगर आप कुछ नहीं कर पाएंगे तो हमें आपकी सीमा में घुसकर हमारे खिलाफ वारदातों में लगे आतंकवादियों का सफाया करना होगा। आप इसकी सहमति दीजिए। इसे अंतरराष्ट्रीय कानून की भाषा में ठेठ तक पीछा करना (हॉट परस्यूट) कहा जाता है।
भारत को ‘सर्वाधिक पसंदीदा राष्ट्र’ (मोस्ट फेवर्ड नेशन) का दर्जा देने के लिए जरदारी सरकार तैयार थी लेकिन पाकिस्तान के किसान संगठनों और उद्योगपतियों की आपत्ति ने उन्हें रोक दिया। नवाज की भी यही परेशानी है। भारत सरकार के पास ऐसे लोगों का अकाल है, जो पाकिस्तान जाकर उन लोगों से सीधे बातचीत करें। उन लोगों से मेरे पाकिस्तान-प्रवास के दौरान बात हुई थी। उन लोगों की कठिनाइयां दूर करना मुश्किल नहीं है। पाकिस्तान के साथ एक समस्या यह भी है कि जिस राष्ट्र को वह 66 साल से अपना दुश्मन मानता रहा उसे वह रातों-रात ‘सर्वाधिक पसंदीदा राष्ट्रÓ का दर्जा एकदम कैसे दे दे? अगर मामला सिर्फ शब्दों का है तो उसे हल करना भी ज्यादा कठिन नहीं है।
हमारे प्रधानमंत्री को अफगानिस्तान के बारे में दूरदृष्टि से काम लेना होगा। यह अद्भुत संयोग है कि वे इस समय न्यूयॉर्क में हैं और वहां वे ओबामा, नवाज शरीफ और डॉ. हसन रूहानी, तीनों नेताओं के साथ एक साथ बात कर सकते हैं। अफगानिस्तान को केंद्र में रखकर अमेरिकी-ईरान संबंध सुधरवाना और भारत-पाक संबंध सहज करना बेहद जरूरी है। तालिबान से सीधा संपर्क बनाना भी कूटनीतिक दृष्टि से भारत के लिए जरूरी है। यदि इस भेंट के दौरान दोनों प्रधानमंत्री अफगानिस्तान के लिए एक साझा रणनीति पर बातचीत करें तो आगे जाकर काफी सफलता मिल सकती है।
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