नया इंडिया, 30 अगस्त 2014 : भाजपा और हरियाणा जनहित कांग्रेस का गठबंधन टूटना अच्छा नहीं है। अब भाजपा के नेता और हजका के कुलदीप बिश्नोई एक दूसरे पर अहंकारग्रस्त होने के आरोप लगा रहे हैं और ऐसा लगता है कि दोनों ही सही हैं। इसमें शक नहीं कि दोनों दलों में यह समझौता हुआ था कि वे दोनों 45-45 सीटों पर लड़ेंगे। हरयाणा विधानसभा की 90 सीटों पर ही दोनों पार्टियां मिलकर अपने उम्मीदवार खड़े करनेवाली थीं। दोनों को भरोसा था कि वे जीतेंगी। ऐसी हालत में मुख्यमंत्री कुलदीप बनेंगे, यह भी तय हुआ था। लेकिन पिछले लोकसभा चुनावों ने सारी गोटियां पलट दीं। कुलदीप को लोकसभा की दो सीटें मिली थीं, वे दोनों हार गए और भाजपा सात सीटों पर जीत गई। सारा गणित ही उलट गया। कुलदीप अपनी बात पर अड़े हुए हैं। हालात बिल्कुल बदल गए हैं लेकिन वह बदलने को बिल्कुल भी तैयार नहीं हैं। कुलदीप अब कैसे तैयार हो कि वह 45 की बजाय 25 सीटों पर ही लड़ें और मुख्यमंत्री की बात भी आई-गई हो गई। कुलदीप यदि थोड़े लचीलेपन का परिचय देते तो फायदे में रहते, क्योंकि भाजपा का आज भी हरयाणा में कोई जनप्रिय लोकनेता नहीं है। अंततोगत्वा, कुलदीप का नेतृत्व सब स्वीकार कर लेते।
अब हजकां को जो नुकसान होगा, सो तो होगा ही, भाजपा को भी एकदम साफ विजय मिलना आसान नहीं होगा। जो कांग्रेसी नेता उसमें आ गए हैं, उनकी साख लगभग शून्य है और ये विधानसभा चुनाव हैं, इनमें अब मोदी की लहर भी उतनी असरदार नहीं रहेगी। इसके अलावा बसपा और अन्य छोटे-मोटे दल मिलकर हजका को बड़ी ताकत बना सकते हैं। हो सकता है कि हरयाणा में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिले। ऐसी स्थिति में भाजपा और हजका को अपने द्वार एक-दूसरे के लिए खोलने पड़ सकते हैं। इसलिए अच्छा हो कि चुनावी-अभियान के दौरान वे एक-दूसरे की इतनी निंदा न करें कि बाद में उन्हें हाथ मिलाने में भी दिक्कत हो।
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