रा. सहारा, 8 अप्रैल 2008 : नेपाल अपनी संविधान सभा 10 अप्रैल को चुनेगा| 10 अप्रैल को चुनाव होंगे या नहीं, यह भी अभी तक सुनिश्चित नहीं है| संविधान सभा के चुनाव पिछले साल दो बार स्थागित हो चुके हैं| चुनावों को स्थगित करने में हर प्रमुख दल और प्रमुख नेता की दिलचस्पी है| यदि चुनाव नहीं होंगे तो यही संसद, यही सरकार, यह व्यवस्था जैसे-तैसे चलती रहेगी| जो लोग सत्ता में बैठे हैं, उनकी पॉंचों उंगलियॉं घी में हैं| पिछले नौ साल से चल रही संसद में नेपाली कॉंग्रेस एकीकृत मार्क्सवादी-लेनिनवादी पार्टी और अब माओवादियों के नेता भी बैठ गए हैं| ये ही तीन प्रमुख दल हैं और इन तीनों को डर है कि चुनाव के कारण उनकी शक्ति घटेगी| पिछले आठ-नौ साल में नेपाली कॉंग्रेस और एमाले ने कोई ऐसा काम नहीं किया, जिससे उनकी लोकपि्रयता बढ़ती| आपस में सिर-फुटव्वल, भ्रष्टाचार और माओवादियों से दबते रहने के कारण इन पार्टियों की छवि खराब ही हुई है| इन पार्टियों में सकि्रय मधेस-क्षेत्र् के प्रमुख नेताओं ने भी इस्तीफे दे दिए हैं और वे अपने दम पर चुनाव लड़ रहे हैं| मधेस में इन बड़ी पार्टियों का जनाधार ध्वस्त हो चुका है|
इन पार्टियों के कमजोर होने का फायदा माओवादियों को मिलना चाहिए था लेकिन माओवादी भी अपनी जीत के प्रति आश्वस्त नहीं हैं| वे लगभग एक दशक से बुलेट की राजनीति करते रहे हैं| उन्हें विश्वास नहीं है कि वे बेलेट की राजनीति में अपना सिक्का जमा पाऍंगे| हालांकि माओवादी नेता प्रचंड दावा कर रहे हैं कि वे नेपाल के पहले राष्ट्रपति निर्वाचित होंगे लेकिन इसके साथ ही वे यह भी कहते हैं कि पता नहीं, चुनाव होंगे या नहीं| भट्टराई ने तो यहां तक कहा है कि यदि माओवादी सत्तारूढ़ नहीं हुए तो वे दुबारा बंदूक थामेंगे| उनके पास बंदूकों की अभी भी कमी नहीं दिखती| उन्होंने संयुक्तराष्ट्र पर्यवेक्षकों के सामने सिर्फ 3428 हथियार जमा करवाए हैं| 30852 माओवादियों ने समर्पण किया और उनके पास हथियार सिर्फ तीन हजार निकले| बाकी कहॉं गए? वे अब चुनाव में काम आ सकते हैं| यदि उन्हें अपनी हार का अंदेशा हो गया तो वे बड़े पैमाने पर हिंसा करेंगे| बोगस मतदान, बूथ केप्चरिंग, जबरन गिनती, उम्मीदवारों की हत्या आदि पैंतरे अपनाए जा सकते हैं| जाहिर है कि अन्तरराष्ट्रीय पर्यवेक्षक ऐसे चुनावों को अवैध घोषित कर देंगे|
माओवादियों ने पिछले दो-ढाई वर्षो में अपनी छवि चमकाने के लिए कोई खास रचनात्मक काम नहीं किए हैं| जो 13 हजार लोग मारे गए हैं, उनकी कटु स्मृतियॉं आज भी उनका पीछा कर रही हैं| पहले माओवादी लोगों को मारते थे, अब माओवादियों को पकड़-पकड़कर लोग मारते हैं| मधेस में तो माओवादियों के विरूद्घ अनेक हिंसक मोर्चे खुल गए हैं| माओवादियों ने अपनी पहचान राजशाही के विरोधी के तौर पर बनाई थी लेकिन पिछले कुछ हफ्तों से नेपाली अखबारों में खबरें छप रही हैं कि माओवादी और राजशाही तत्वों के बीच सांठ-गांठ चल रही है| कांग्रेस और एमाले को हराने के लिए ये परस्पर विरोधी दल हाथ मिला रहे हैं| ये खबरें सर्वथा निराधार हो सकती हैं लेकिन अफवाहों का बाजार गर्म है| ये अफवाहें ही चुनाव में कभी-कभी निर्णायक भूमिका अदा कर देती हैं| राजशाही के प्रति नरमी की छवि माओवादियों को हिंदू राष्ट्रवादियों के बीच कुछ वैधता तो देगी लेकिन वह उन्हें उनके गढ़ में ढहा देगी| जिन पिछड़ी दलित-शोषित जातियों और अत्यंत प्रबुद्घ वर्ग में माओवादियों ने अपना सिक्का जमाया था, वे उससे अलग छिटक जाऍंगे| माओवादी बड़ी दुविधा में हैं| उन्होंने सबसे अधिक कुर्बानियॉं की हैं लेकिन उन्हें भरोसा नहीं है कि ये चुनाव उनकी कीमत चुकाऍंगे| चुनाव में हुई देरी ने उनकी छवि को शिथिल किया है| उनके प्रति लोगों का जोश घटा है|
नरेश ज्ञानेंद्र के समर्थक हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठे हैं| उन्हें पता है कि संविधान सभा समवेत होते ही सबसे पहले वह नरेश पर ही फरसा चलाएगी| वह राजतंत्र् को खत्म करेगी| इस अभियान की अगुवाई क्योंकि माओवादी ही कर रहे हैं, इसलिए उन्हें बदनाम करना जरूरी है| नरेशवादियों का कहना है कि अनेक जनमत सर्वेक्षण राजशाही के पक्ष में गए है| यदि माओवादियों को कम सीटें मिलीं और वे तीसरे स्थान पर पहुंच गए तो शेष दो बड़े दल भी राजशाही के प्रति अपना रवैया बदल लेंगे| इसीलिए माओवादियों और नरेश-समर्थकों की मिलीभगत की झूठी खबरें अखबारों में छपवाई जा रही हैं| नरेशवादियों ने भी हिंसा का रास्ता अपनाने की धमकी दी है| उनका कहना है कि वर्तमान संसद लूली-लंगड़ी है, अवैध है| उसने गणतंत्र् स्थापित करने का जो प्रस्ताव पारित किया है, उसका कोई खास महत्व नहीं हैं लेकिन अगर अभी चुनी हुई संविधान सभा राजशाही को खत्म करने का निर्णय करेगी तो नेपाल में खून की नदियॉं बहेंगी| हिंदू राष्ट्रवादी तत्व माओवादियों की तरह हथियार उठाऍंगे| वास्तव में यह तत्व नेपाल की फौज पर भी ऑंखें जमाए हुए हैं| नेपाली फौज अब भी नरेश-भक्ति की शपथ लेती है| उन्हें भरोसा है कि यदि माओवादी ज्यादा ‘ब्लेकमेल’ करेंगे तो नेपाली फौज बगावत कर देगी| ऐसा होना मुश्किल लगता है, क्योंकि यह फौज माओवादियों से काफी पहले ही पिट चुकी है और उसका मनोबल गिरा हुआ है| आम जनता के मन में फौज के प्रति कोई आस्था नहीं है| नेपाल में फौज की वह महत्ता नहीं है, जो पाकिस्तान में है| चुनाव और फौज, दोनों ही नरेश ज्ञानेंद्र की डूबती नैया को पार नहीं लगा सकते| इसीलिए वे चाहेंगे कि चुनाव टल जाऍं|
संविधान सभा के चुनाव से सबसे ज्यादा लाभ मधेसी नेताओं को है| पहली बार वे अपनी जनता के दुख-दर्द को पूरे जोर-शोर से संसद में गुंजा सकेंगे| नेपाल के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि काठमांडो के नेताओं के शिकंजे से मधेस बाहर निकला है| श्रीलंका के तमिलों की तरह मधेसी अब तराई में अलग राष्ट्र की भी मांग कर रहे हैं| उन्हें डर है कि मधेस में मतदान केन्द्रों पर बड़ी पार्टियॉं कब्जा करेंगी और कोशिश करेंगी कि वहां किसी बहाने चुनाव टल जाऍं| दूसरे शब्दों में लगभग हर पार्टी चुनाव के बारे में सशंकित है| इसके बावजूद ऐसा लगता है कि 10 अप्रैल को चुनाव जरूर होंगे और सीधे चुनाव में 240 तथा सानुपातिक प्रतिनिधित्व में 335 सांसद चुने जाऍंगे| प्रधानमंत्री 26 सांसदों को नामजद करेंगे| किसी भी पार्टी को 601 सदस्यों की संसद में स्पष्ट बहुमत मिलना कठिन है| यदि पार्टियॉं गठबंधन बनाएंगी तो विचारधाराऍं भी गठबंधन में बंधेगी| उनमें कुछ जुड़ेगा और कुछ उड़ेगा| नया नेपाल साफ़ काला या साफ़ सफेद नहीं होगा| मटमैला होगा|
(लेखक विदेश नीति विशेषज्ञ हैं )
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