रा. सहारा, 30 मई 2008 : नेपाल में राजशाही का अंत जिस सहजता से हो रहा है, शायद इसके पहले दुनिया में कहीं नहीं हुआ| संविधान सभा एक प्रस्ताव पारित करे और एक क्षण में ही भगवान विष्णु का अवतार, श्री श्रीपॉंच, सेनाधिपति, महाराजाधिराज और न जाने किन-किन उपाधियों से मंडित नेपाल-नरेश, साधारण नेपाली नागरिक बन जाए यह किसी जादू से कम नहीं है| अपनी ऑंखों और कानों पर विश्वास नहीं होता कि इतना बड़ा सत्तातंरण बिना किसी खून-खराबे के संपन्न हो रहा है| नेपाल-नरेश ज्ञानेंद्र को 15 दिन की मोहलत दी गई है, नारायणाहिटी महल खाली कराने के लिए| नेपाल को गणराज्य घोषित कर दिया गया है लेकिन ज्ञानेंद् या उनके परिवार में से किसी ने चूं तक नहीं की है| राजा जनक या अफगान बादशाह जाहिर शाह की तरह ज्ञानेंद् अनासक्त व्यक्ति नहीं हैं| उन्होंने नरेश पद को जमकर भोगा है, निरंकुश बल-प्रयोग किया ह और अपनी सत्ता को शाश्वत बनाए रखने के लिए सारे दांव-पेंच आजमाए हैं| यह अजूबा है कि नेपाली जनता ने अपने नरेश को माफ कर दिया| उनसे कोई बदला नहीं लिया| ज्यादा आश्चर्य तो यह है कि माओवादियों ने भी नरेश के विरूद्घ कोई हिंसक रवैया नहीं अपनाया| उन्होंने शाब्दिक हिंसा तक नहीं की| नरेश को नेपाल छोड़कर भागना भी नहीं पड़ा| इस अर्थ में ज्ञानेंद्र कम्पूचिया के सिंहानुक, अफगानिस्तान के जाहिर शाह, ईरान के रज़ा शाह, अबीसीनिया के हेल सिलासी आदि से भी अधिक भाग्यशाली हैं| वे फ्रांस के बूदबों और रूस के जार के मुकाबले जितने अधिक सुरक्षित हैं, वह क्या दर्शाता है? क्या यह नहीं कि नेपाल की राजनीतिक सभ्यता दुनिया के अन्य राष्ट्रों के मुकाबले उच्चतर है? इसका श्रेय नेपाल के हिंदू राष्ट्र होने को भी दिया जा सकता है लेकिन इस व्यवस्था में से सांप्रदायिकता की गंध आती हो तो यह तो माना ही जा सकता है कि सहिष्णुता की महान हिंदू परंपरा का जैसा परिपाक आज नेपाल में हो रहा है, वैसा दुनिया की किसी अन्य सभ्यता में देखने को नहीं आया| यही प्रजातंत्र् का प्राण है, लोकतंत्र् की आत्मा है, अहिंसा का अमल है| दुनिया की क्रांतियां अक्सर लाल होती हैं लेकिन नेपाल की यह क्रांति गुलाबी है| इस क्रांति में गुलाब का रंग और सुगंध दोनों है|
नए नेपाल की राजनीतिक चेतना में सहिष्णुता की भूमिका कितनी प्रबल हो गई है, इसका प्रमाण यह समझौता भी है कि अब वहॉं राष्ट्रपति का नया पद स्थापित किया जा रहा है| अर्थात अब राज-काज में माओवादियों को यदि नेपाली कॉंग्रेस और एमाले अग्रणी भूमिका दे रहे हैं तो माओवादी राष्ट्रपति पद के निर्माण पर राजी होकर अन्य दलों को उचित सम्मान दे रहे हैं| जाहिर है कि राष्ट्रपति पद नेपाली कॉग्रेस याने गिरिजा प्रसाद कोईराला को मिलेगा| प्रधानमंत्री के पद पर पुष्पकमल दहल (प्रचंड) और राष्ट्रपति के पद पर कोइरालाजी का रहना ही इसका सूचक है कि नेपाल का लोकतंत्र् प्रवाह पतित नहीं होगा| पटरी पर चलता रहेगा| सत्ता की साझेदारी उसे संतुलन और गरिमा प्रदान करेगी| माओवादी यह भी मान लेंगे कि प्रधानमंत्री को साधारण बहुमत से लगाया या हटाया जा सकेगा| कोई आश्चर्य नहीं कि माओवादी अपने 30 हजार सैनिक को नेपाली फौज में घुसने के इरादे पर भी पुनर्विचार करें| गैर-माओवादियों की यह मांग अंतिरंजित दिखाई पड़ती है कि माओवादी अपने युवा-संगठन को विसर्जित करें| हॉ, उस पर लगाम लगाना जरूरी है| वरना क्या यह शोभा देगा कि माओवादी सरकार अपने युवजनों को ही मारेगी और गिरफ्तार करेगी? चुनाव के बाद से अब तक माओवादी नेताओं ने जिस संयम, परिपक्वता और व्यावहारिकता का परिचय दिया है, उससे आशा बंधती है कि वे अपनी तदर्थ सरकार में भी सभी दलों को लेने की कोशिश करेंगे और संविधान भी ऐसा बनाऍंगे, जो लगभग सर्वसम्मत और सर्वहितकारी हो| शासन-संचालन और संविधान-निर्माण में उनकी भूमिका अग्रणी अवश्य होगी लेकिन निर्णायक और निरंकुश नहीं हो सकती|
यदि माओवादी मेरे इस विश्लेषण से सहमत हो तो उन्हें संविधान-निर्माण को दो साल तक नहीं खीचना चाहिए, क्योंकि पिछले चुनाव ने न तो नई सरकार और न ही नई संसद के लिए कोई जनादेश दिया है| यह जनादेश तो नेपाल के राजनीतिक दलों को अभी प्राप्त करना है| इसीलिए उन्हें अगले छह माह में ही संविधान बना डालना चाहिए| उनका संविधान अब तब बने सभी संविधानों से बेहतर होना चाहिए| वे कैसा संविधान चाहते हैं, भारत-जैसा, अमेरिका-जैसा, फ्रांस-जैसा, बि्रटेन-जैसा या कोई और, यह उन्हें ही तय करना है लेकिन वे अपनी चुनाव प्रणाली ऐसी अवश्य बनाऍं, जिसमें डाले गए वोटों और चुने हुए प्रतिनिधियों की संख्या का अनुपात सही हो और कोई भी प्रतिनिधि तब ही चुना जाए जबकि उसे 51 प्रतिशत से ज्यादा वोट मिलें| जब तक शक्तियों का विकेंद्रीकरण नहीं होना, नेपाल के दमित-शोषित लोगों को गरीबी और अशिक्षा से मुक्ति नहीं मिलेगी| भ्रष्टाचार-निरोध का विशेष प्रबंध करना होगा|
तदर्थ सरकार जितने भी माह चले, यह समय सभी दलों के लिए बहुत चुनौतीभरा होगा| किस दल और किस नेता का आचरण कैसा है, यह आम जनता खुर्दबीन लगाकर देखेगी| माओवादियों को सत्ता का सुख पहली बार मिला है| यदि उन्होंने असाधारण संयम नहीं रखा तो उन्हें भ्रष्ट होते देर नहीं लगेगी| नौकरशाह और व्यवसायी लोग उनके चारों तरफ फिसलपटि्रटयां खड़ी कर देंगे| इसके अलावा आपसी फूट की संभावनाऍं भी बढ़ जाएंगी| नेपाल के राजनीतिक दलों और खासतौर से माओवादियों को यह भी ध्यान रखना होगा कि इस नाजुक समय में वे भारत-विरोध का अपना पारंपरिक खेल न खेलने लगें| चीन और भारत को एक ही तराजू पर तौलने की कोशिश न करें| भारत के साथ नेपाल का नाभि-नाल संबंध है| नेपाल की जनता भारत से अधिकारपूर्वक सहायता मांग सकती है और नेपाल के लिए भारत जो कुछ कर सकता है दुनिया का कोई और राष्ट्र नहीं कर सकता| पिछले दिनों पटना में हमारे विदेश मंत्रलय द्वारा आयोजित भारत-नेपाल संवाद में उक्त तथ्य बहुत अच्छी तरह से स्पष्ट किया गया था| वहॉं आए नेपाली नेताओं और खास तौर से शीर्ष माओवादी नेताओं ने खुले आम और व्यक्तिगत तौर पर भी भारत की वर्तमान नेपाली नीति के प्रति गहरा संतोष व्यक्त किया था| यदि नेपाल में स्वस्थ लोकतंत्र् विकसित होता है और उसके सर्वविध विकास की संभावनाऍं खुलती हैं तो यह भारत की पगड़ी पर एक नया मोरपंख होगा| भारत के लिए यह भी आनंद का विषय है कि बर्मा, ईरान, अफगानिस्तान और अब नेपाल से राजतंत्र् विदा हो गया है| भूटान का राजतंत्र् तेजी से बि्रटिश लोकतंत्र् में बदलता जा रहा है| पाकिस्तान भी पिघल रहा है| संपूर्ण दक्षिण एशिया में लोकतंत्र् का बोलबाला एक अर्थ में भारत की विजय ही है|
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