नया इंडिया, 05 अप्रैल 2014: भारत में अमेरिकी राजदूत नैंसी पॉवेल जैसी विदाई शायद ही किसी राजदूत की हुई हो। उनकी अवधि पूरी होती, उससे पहले ही उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। वे ऐसे समय में भारत में नियुक्त हुई थीं, जो अमेरिका के लिए अच्छा समय था। मनमोहन सिंह सरकार से ज्यादा अमेरिकापस्त सरकार तो भारत में कभी हुई नहीं। लेकिन नैंसी का दुर्भाग्य कि उनके कार्यकाल में दोनों देशों के संबंध रसातल में पहुंच गए। अभी परमाणु सौदे को लेकर दोनों पक्षों में खींचातानी चल ही रही थी कि इस बीच देवयानी खोबरगाड़े के मामले ने तूल पकड़ लिया। माना यह जाता है कि नई दिल्ली के अमेरिकी दूतावास ने अपनी ओबामा सरकार को यह सलाह दी थी कि वह देवयानी को जितना भी अपमानित करना चाहें करे, क्योंकि चुनावी माहौल में यह सरकार किसी गलत काम को सही ठहराने की कोशिश नहीं करेंगी।
यह दांव उलटा पड़ गया। देवयानी को फंसाने के खिलाफ हमारा विदेश मंत्रालय खड्गहस्त तो हो ही गया, आम जनता भी अमेरिकी सरकार पर क्रुद्ध हो गई। नौकरानी के वीजा के सवाल पर देवयानी को गिरफ्तार करना ऐसा था, जैसे मच्छर मारने के लिए ए.के. 47 चला देना। वीजा की अनियमितता बरसों से चली आ रही है। उसे दोनों पक्ष जानते हुए भी ढ़कने दे रहे थे लेकिन देवयानी की नौकरानी का पति क्योंकि दिल्ली में किसी अमेरिकी कूटनीतिज्ञ का निजी सेवक था, इसलिए तिल का ताड़ बनाया गया औऱ राजदूत नैंसी पॉवेल सिर्फ देखती रही। वे यह भूल गईं कि अमेरिकी दूतावास के स्कूल की अध्यापिकाओं ने भारतीय वीजा लेते वक्त नियमों का गंभीर उल्लंघन किया है। इसी प्रकार पहली बार लोगों को पता चला कि हवाई अड्डे पर भी अमेरिकी दूतावास की दादागिरी चलती है। हमारी सरकार के दब्बू चरित्र के बावजूद नौकरशाहों ने खूब बदला निकाला। एक अमेरिकी कूटनीतिक यात्रा भी स्थगित की गई।
अब नैंसी पॉवेल जा रही हैं औऱ उनकी जगह भारतीय मूल के एक गुजराती अमेरिकी राजीव शाह को राजदूत बनाकर भेजा जा रहा है। यह खुशामद का सुरूचिपूर्ण तरीका है। इसका अर्थ है कि ओबामा प्रशासन नरेंद्र मोदी की अगवानी कर रहा है। जिस मोदी को आप कल तक वीजा नहीं दे रहे थे, आज उसके लिए आप पलक पांवड़े बिछा रहे हैं। क्यों? क्योंकि आप सिर्फ ताकत की भाषा समझते हैं।
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