R Sahara, 7 Sept 2003: महान गुजराती क्रांतिकारी पंडित श्यामजी कृष्ण वर्मा को लेकर आजकल जबरदस्त बहस छिड़ी हुई है| जिन्हें श्यामजी का पूरा नाम भी ठीक से पता नहीं, वे भी लेख और बयान ठोके चले जा रहे हैं | कोई उन्हें वामपंथी बता रहा है तो कोई दक्षिणपंथी ! क्या आपने दुनिया में कहीं पंडित और वर्मा, ये दो शब्द किसी के लिए एक साथ प्रयुक्त होते देखे हैं ? श्यामजी कृष्ण नामक गुजराती युवक को अब से सवा सौ साल पहले यह दुर्लभ नाम मिला था | उस समय न तो संघ परिवार पैदा हुआ था और न ही हमारे सेकुलरवादी ! कोई पंडित शर्मा तो हो सकता है, वर्मा कैसे हो सकता है और कोई वर्मा पंडित कैसे हो सकता है ? लेकिन ऐसा हुआ, यह महर्षि दयानंद का चमत्कार था | 4 अक्तूबर 1857 को मांडवी में जन्मे श्यामजी कृष्ण वर्मा महर्षि दयानंद के पटु शिष्य थे | वे आर्यसमाज के उत्कट प्रचारक थे | अब्राह्रमण परिवार में जन्म लेने के बावजूद उनके संस्कृत-ज्ञान और शास्त्र्-पारायण पर दयानंद मुग्ध थे| दयानंद ने उन्हें विदेश जाकर वेदों का प्रचार करने और स्वाधीनता संग्राम चलाने की प्रेरणा दी | इस 20 वर्षीय गुजराती विद्वान की प्रतिभा का लोहा स्वयं सर मोनियर विलियम्स और मक्सम्युलर ने माना था | मोनियर विलियम्स 1879 में उन्हें अपने साथ ऑक्सफोर्ड ले गए | अल्प समय में उन्होंने संस्कृत और कानून की उपाधियॉं अर्जित कीं | श्यामजी के पांडित्य की धाक ऐसी जमी कि यूरोप के सभी भारतीय क्रांतिकारी नौजवान उनके ईद-गिर्द मॅंडराने लगे | वे ऑक्सफोर्ड में पढ़ाने भी लगे | उन्हें अंग्रेजों से भी ज्यादा वेतन मिलता था | वे शेयरों में भी डटकर कमाते थे | उनकी मितव्ययिता के किस्से मशहूर थे | भारत लौटकर उन्होंने कई रियासतों में मुख्य दीवान की तरह काम किया | कुछ व्यापार भी शुरू किया | यहॉं भी जमकर कमाया | 1897 में वे दुबारा इंग्लैंड चले गए | वहॉं जाकर उन्होंने ‘इंडियन सोश्योलाजिस्ट’ नामक पत्रिका निकाली और 1905 में ‘द इंडियन होमरूल सोसायटी’ नामक संस्था की स्थापना की | वे जितना कमाते थे, उतना ही देश पर लुटाते थे |
1905 में ही पंडित श्यामजी ने लंदन में ‘इंडिया हाउस’ नामक छात्रवास की स्थापना की | 50 कमरों के इस छात्रवास में भारत के अनेक क्रांतिकारी पले और बढ़े, जिनमें विनायक दामोदर सावरकर, आसफ अली, सिकन्दर हयात खान ;पाकिस्तानवाले आदि बाद में प्रसिद्घ हुए | कुछ क्रांतिकारी वहॉं रहते थे और कुछ नियमित जाया करते थे | अपने पैसों से श्यामजी ने क्रांतिकारियों को जीवन-यापन, यात्र और शस्त्र् आदि की खरीद में सकि्रय सहायता दी | उन्होंने महाराणा प्रताप, शिवाजी, महारानी लक्ष्मीबाई और महर्षि दयानंद के नाम से छात्र्वृत्तियॉं स्थापित कीं | शर्त यही थी कि इन छात्र्वृत्तियों को लेनेवाले छात्र् लंदन से लौटकर अंग्रेज सरकार की चाकरी नहीं करेंगे | ये छात्र्वृत्तियॉं अनेक प्रांतों के नवयुवकों को मिलीं, उनमें मुसलमान भी थे | श्यामजी की यात्रवृत्तियों का लाभ भाई परमानंद, लाला हरदयाल, बिपिनचंद्र पाल, मदनलाल ढींगरा, खुदीराम बोस आदि ने उठाया और उन्होंने अंग्रेज शेर को उसकी मॉंद में घुसकर चुनौती दी | बाल गंगाधर तिलक जैसे लोग श्यामजी को पत्र् भेजकर छात्रें के नाम प्रस्तावित करते थे |
श्यामजी का ‘इंडिया हाउस’ भारतीय क्रांतिकारियों और नेताओं का गढ़ था | मोहनदास कर्मचंद गॉंधी भी 1906 में वहॉं रहे और 1909 में दुबारा गए | सावरकर से गॉंधी की टक्कर पहली बार यहीं हुई | गॉंधी से श्यामजी 12 साल बड़े थे| दोनों गुजराती थे लेकिन दोनों के स्वभाव में बड़ा अंतर था | श्यामजी ने अपनी पत्रिका में गॉंधीजी के स्वभाव में बड़ा अंतर था| श्यामजी ने अपनी पत्रिका में गांधीजी के उस कदम की कड़ी आलोचना की, जो बि्रटेन की राजभक्ति से ओत-प्रोत था | 1899 में गॉंधीजी ने ट्र्रांसवाल सरकार पर किए गए बि्रटिश हमले का समर्थन किया था और उन्होंने युद्घ-मैदान में जाकर रेड क्रॉस की मदद भी की थी | उस समय गॉंधीजी के अपने तर्क थे | गॉंधीजी का जो अंग्रेज-विरोधी तेवर 1916 के बाद बना, वह पण्डित श्यामजी का 25 साल पहले से ही था | श्यामजी तिलक के प्रशंसक थे और गोखले व नौरोजी के आलोचक | श्याजी का निधन 1930 में जिनीवा में हुआ|
गुजरात की इस महान विभूति की अस्थियॉं गुजरात का मुख्यमंत्र्ी ले आए और उन्हें पुजवाए, इसमें अनुचित क्या है ? ये और बात है कि वह मुख्यमंत्र्ी नरेन्द्र मोदी है | नरेन्द्र मोदी से हम खफ़ा हैं, इसका मतलब यह नहीं कि हम पंडित श्यामजी के महान योगदान की अनदेखी कर दें | यह भारत का दुर्भाग्य होगा कि संघ परिवार और सेकुलर परिवार के सॉंड आपस में भिड़ें और श्यामजी कृष्ण वर्मा जैसी बागड़ टूट जाए | श्यामजी जैसे असली पंडित का संघी और सेकुलरी पोंगा-पंडितों से क्या लेना देना है ? वास्तव में भारत के उत्कृष्ट शोध-संस्थानों और विश्वविद्यालयों को श्यामजी के योगदान पर विधिवत पीएच.डी. के अनुसंधान करवाने चाहिए | दिल्ली विश्वविद्यालय का नाम बदलकर श्यामजी कृष्ण वर्मा विश्वविद्यालय रखा जाना चाहिए | पंडित श्यामजी की स्मृति में भव्य राष्ट्र्रीय स्मारक सारे देश में खड़े किए जाने चाहिए |
विश्व हिंदी सचिवालय : लकड़ी का घोड़ा
मोरिशस के संस्कृति मंत्री मोती रामदास तथा कुछ अन्य हिन्दीसेवी एक सप्ताह के लिए भारत आए हुए हैं | इस प्रतिनिधि मंडल का मुख्य लक्ष्य है – विश्व हिन्दी सचिवालय के प्रस्ताव को परवान चढ़ाना | भारत सरकार ने इस सचिवालय को बनाने-चलाने के लिए दस करोड़ रु. के अनुदान की घोषणा की है और मानव संसाधन मंत्री डॉ. मु.म. जोशी ने मोरिशस जाकर भवन-भूमि का शिलान्यास भी कर दिया है | मोरिशस की संसद ने प्रस्ताव पारित किया है और हिन्दीसेवी अजामिल माताबदल को संयोजक बनाया है लेकिन भारत सरकार अभी तक वहॉं किसी को भी नहीं भेज पाई है | ‘हिन्दी स्पीकिंग यूनियन’ के अध्यक्ष राजनारायण गति और कोषाध्यक्ष देवतम संतोखी भी साथ आए हैं | वे सरकार, हिन्दी संस्थाओं और प्रमुख हिन्दीसेवियों से बात कर रहे हैं | हिन्दी की स्थिति में क्रांतिकारी परिवर्तन कर सकनेवाली संस्थाओं की बड़ी दुर्दशा है | उनका कोई धनी-धोरी दिखाई नहीं पड़ता | महात्मा गॉंधी अन्तरराष्ट्र्रीय हिंदी विश्वविद्यालय बन जाने के बावजूद अधर में लटका हुआ है, लेकिन विश्व हिंदी सचिवालय का तो बनना ही अधर में लटका हुआ है | अगर वह बन भी गया तो क्या बनेगा ? सरकारी बाबुओं का बसेरा बनेगा | दोनों देशों की सरकारें मिलकर एक नया लकड़ी का घोड़ा खड़ा कर लेंगी | ये सरकारें उसे जहॉं खड़ा रखेंगी, वह बरसों वहीं खड़ा रहेगा |
भारतीय राजदूतों की चिंता
दिल्ली में कई वर्षों से भारत के सेवा-निवृत्त राजदूतों का एक संगठन सकि्रय है | यह संगठन बिना प्रचार के काम करता है | इसमें विदेशनीति की ज्वलंत समस्याओं पर गंभीर विचार-विमर्श होता है | इसने इस बार मुझे अफगानिस्तान पर बोलने के लिए बुलाया | विदेश नीति के दिग्गजों की इतनी बड़ी जमात के दर्शन कम ही होते हैं | भाषण के बाद जो टीका-टिप्पणी और प्रश्नोत्तर हुए, उससे पता चलता है कि इन दिग्गजों की मुख्य चिंता यह है कि कहीं अफगानिस्तान दुबारा तालिबान के हाथ में न चला जाए | उनका मानना था कि यदि तालिबान काबुल लौट गए तो कश्मीर अब से ज्यादा उलझ जाएगा | वे चाहते हैं कि भारत सरकार कुछ अधिक सकि्रय हो | लेकिन असली मुद्रदा यह है कि क्या भारत के पास क्षेत्रीय महाशक्ति का रोल अदा करने के लिए पर्याप्त साधन और इच्छाशक्ति भी है या नहीं ?
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