नया इंडिया, 22 अगस्त 2014: अमेरिकी पत्रकार जेम्स फोले का सिर काटते हुए एक वीडियो सारी दुनिया में बड़े दुख के साथ देखा जा रहा है। जेम्स की मां डायना उसे ‘जिम’ कहती हैं।‘जिम’ को सीरिया के इस्लामिक आतंकवादियों ने नवंबर 2012 में सीरिया में गिरफ्तार कर लिया था। वह सीरिया में चल रहे आतंकवाद युद्ध में शुद्ध पत्रकारिता के लिए गया हुआ था। वह अमेरिकी पत्रकार था। उसने लीबिया के युद्ध की भी आंखों देखी रपट भेजी थी। यह बहादुर पत्रकार न्यूजसाइड ‘ग्लोबल पोस्ट’, फ्रांसीसी समाचार समिति ‘एजांस-फ्रांस’ और कई पत्रों के लिए काम करता था। ‘जिम’ की निष्पक्ष निर्भीक और कुशल पत्रकारिता की सर्वत्र सराहना की जाती थी।
वह किसी सरकार का एजेंट नहीं था। कोई खुफिया जासूस नहीं था और न ही इस्लामी बागियों के खिलाफ था। उसका दोष बस यही है कि वह अमेरिकी नागरिक था और गोरी चमड़ी का था। इसीलिए वह अलग से पहचाना जाता था।
उसे इस्लामी बागियों ने सिर्फ इसलिए पकड़ लिया था कि उन्हें अमेरिका से अपना बदला निकालना था। सीरिया के शासक बशार-अल- असद का अमेरिका डटकर फौजी समर्थन कर रहा था। ये बागी लोग अल कायदा की तरह अमेरिका पर कोई हमला नहीं कर पा रहे हैं तो उन्होंने इस निहत्थे पत्रकार को ही पकड़ लिया। उधर मोसुल नामक शहर बागियों के हाथ से फिसला जा रहा है। अमेरिकी हमलों की रफ्तार और मार बढ़ती जा रही है। इस मौके पर जिम की क्रूर-हत्या करके उसके वीडियो को सारी दुनिया में घुमाने का मकसद क्या है? यही कि अमेरिकियों को डरा देना। लेकिन बागी लोग यह क्यों नहीं समझते कि इसका उल्टा असर हो रहा है।
इससे सारी दुनिया में वे बदनाम हो रहे हैं। इस्लामी राष्ट्र भी उनकी निंदा कर रहे हैं। शांति और सलामती का मजहब इस्लाम उनकी वजह से बदनाम हो रहा है। अमेरिकी और पश्चिमी राष्ट्रों की सरकारें पहले से अधिक कट्टर हो गई हैं। वे बागियों को अब और बुरी तरह से मारेंगी। जो लोकतांत्रिक देश तथा पत्रकार असद की सरकार के विरुद्ध थे, वे भी ‘जिम’ की हत्या की निंदा कर रहे हैं। दुनिया के हर पत्रकार की नज़र में बागियों की इज्जत गिर गई है। यदि वे ऐसी इस्लामी सल्तनत का निर्माण करना चाहते हैं जिसमें बेकसूर पत्रकार के सिर काट दिए जाएं तो उसका समर्थन कोई सच्चा मुसलमान भी नहीं कर सकता। बेकसूर पत्रकारों के हत्या के 2014 में अब तक 30 मामले सामने आए हैं। उन देशों में भी ऐसी हत्याएं हुई हैं, जो मुसलमान नहीं हैं। इससे क्या सिद्ध होता है? यही कि यह मामला किसी खास मजहब से जुड़ा हुआ नहीं है। यह इंसानी गिरावट का मामला है।
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