नया इंडिया, 18 अगस्त 2014: पाकिस्तान में नई सरकार बने अभी सवा साल भी नहीं हुआ है और वहां एक बड़ा राजनीतिक संकट खड़ा हो गया है। आतंकवाद के खिलाफ जबर्दस्त फौजी अभियान तो चल ही रहा है, मियां नवाज़ शरीफ की सरकार के विरुद्ध दो जन-आंदोलन भी छिड़ गए हैं। एक तो इमरान खान की पार्टी तहरीके-इंसाफ का और दूसरा डॉ. ताहिरुल कादिरी की आवामी लीग का! पहले दोनों संगठन एक साथ मिलकर नवाज शरीफ सरकार पर धावा बोलने वाले थे लेकिन अब दोनों ने अपनी अलग-अलग पटरी पकड़ ली है। इमरान का कहना है कि यह सरकार इस्तीफा दे, क्योंकि पिछले चुनाव में पूरी धांधली हुई है और कादिरी का कहना है कि वह संपूर्ण क्रांति चाहते हैं। उन्होंने अपनी दस मांगों का घोषणा-पत्र पेश किया है। उनके समर्थकों पर मई में गोलियां चला दी गई थीं। वे इस खूनी सरकार को एक दिन के लिए भी बर्दाश्त नहीं कर सकते।
दोनों नेताओं ने पाकिस्तान के स्वाधीनता दिवस पर विराट् प्रदर्शन की घोषणा की थी। उसकी तैयारी जबर्दस्त थी। सरकार ने भी उसका मुकाबला करने की पूरी तैयारी कर रखी थी। सड़कों पर बड़ी-बड़ी अड़चनें लगा दी गई थीं ताकि प्रदर्शनकारी इस्लामाबाद तक पहुंच ही नहीं पाएं। इस्लामाबाद का इंतजाम फौज के हवाले कर दिया गया था लेकिन कुछ प्रांतीय नेता की मध्यस्थता के कारण दोनों तरफ से कुछ ढील दी गई और प्रदर्शन की इजाजत मिल गई लेकिन इस प्रदर्शन में 10 लाख लोगों की बजाय कुछ ही हजार लोग आए। एक तो जोरदार बरसात ने लोगों का उत्साह ठंडा कर दिया। दूसरा, लाहौर में कादिरी के प्रदर्शनकारियों पर बरसी गोलियों और लाठियों ने लोगों को डरा दिया ओर तीसरा लोगों को अभी तक यह समझ में नहीं आया कि पाकिस्तान की फौज किसके साथ है?
अगर लोग यह मान बैठते कि फौज मियां नवाज की सरकार को उलटना चाहती है तो वे लोग शायद बड़ी संख्या में मैदान में उतर आते। नवाज़ शरीफ की सरकार से लोगों को अभी संतोष नहीं है लेकिन उनकी मुद्रा बगावत की भी नहीं है। यों भी मियां नवाज़ फूंक-फूंककर कदम बढ़ा रहे हैं। फौज को नाराज़ करने का हश्र क्या होता है, उनसे ज्यादा कौन जानता है। मुशरर्फ के मामले में भी वे कड़ा रुख नहीं अपना रहे हैं। पाकिस्तान की अदालतों ने इमरान और कादिरी की मांगों को असंवैधानिक घोषित कर दिया है। जाहिर है कि इस्लामाबाद के आबपारा में चल रहा धरना सफल नहीं हो सकता। इससे इमरान और कादिरी को धक्का जरुर लगेगा। लेकिन यदि नवाज़ शरीफ सरकार ने लाहौर की तरह इस धरने पर खून बहा दिया तो उनकी सरकार सांसत में पड़ जाएगी। जो भी हो, इस घटना-क्रम के बाद मियां नवाज और उनके भाई शाहबाज को ठंडे दिमाग से सोचना होगा कि पाकिस्तान की जनता को तुरंत ठोस राहत पहुंचाने के लिए क्या-क्या कदम उठाए जाएं और फौज के साथ पूर्ण सद्भाव कैसे कायम किया जाए।
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