दैनिक भास्कर, 15 फरवरी 2008 : अगले सप्ताह होने वाले चुनाव पाकिस्तान को किधर ले जाऍंगे? वे पाकिस्तान की पहली को सुलझाऍंगे या उलझाऍंगे? अगर पाकिस्तान की उलझनें बढ़ गई तो भारत पर उनका क्या असर होगा? भारत अभी से क्या-क्या तैयारी करे, ये सब सवाल आज हमारी नीति-निर्माताओं के मन को मथ रहे हैं| पाकिस्तान के पिछले चुनावों के मुकाबले यह चुनाव ऊपरी तौर पर अधिक लोकतांत्रिक दिखाई पड़ रहा है| इसके कई कारण हैं| पहला तो यह कि जनरल मुशर्रफ ने अपनी फौजी वर्दी उतार दी है| पिछले चुनाव में वे राष्ट्रपति और सेनापति, दोनों ही थे| अब वे सिर्फ राष्ट्रपति हैं| दूसरा, पिछले चुनाव में बेनज़ीर भुट्टो और नवाज़ शरीफ दोनों ही देश के बाहर थे| इस बार दोनों को अंदर आने देना पड़ा| अब बेनज़ीर न सही, आसिफ जरदारी और नवाज़ अपना-अपना चुनाव-अभियान जोरों से चला रहे हैं| तीसरा, पिछले चुनाव में मुशर्रफ ने पीपल्स पार्टी और मुस्लिम लीग (नवाज) में अंदरूनी फूट डाल दी थी| इस बार दोनों पार्टियां अंदर से एकजुट हैं और चुनाव मैदान में डटी हुई हैं| चौथा, पिछले चुनाव में क़ायदे-आजम जिन्ना के नाम का इस्तेमाल करके मुशर्रफ ने मुस्लिम लीग (क़ा) नामक नई पार्टी खड़ी कर दी थी, जिसे सबसे ज्यादा सीटें मिली थीं| इस बार इस पार्टी को ‘किंग्स पार्टी’ नहीं, किसी भी अन्य पार्टी की तरह चुनाव लड़ना पड़ रहा है| पॉंचवॉं, शौकत अजीज़ मंत्रिमंडल की बजाय अब एक अंतरिम सरकार की देखरेख में चुनाव हो रहे हैं| छठा, मुशर्रफ ने अन्तरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों को चुनाव पर निगरानी रखने का खुला आमंत्र्ण दिया है| सातवॉं, पाकिस्तान के अखबार और टीवी चैनलों पर से लगभग सभी प्रतिबंध उठा लिए गए हैं| आठवॉं, इस बार अमेरिका किसी भी पार्टी को सत्तारूढ़ करवाने के लिए बेताब नहीं है, खास तौर से बेनज़ीर की हत्या के बाद ! नौवॉं, बेनज़ीर की हत्या के कारण पाकिस्तान का माहौल इतना गरमा गया है कि लोग घर में नहीं बैठेंगे| मतदान जमकर होगा| बलूचिस्तान में अकबर बुगती की हत्या, स्वात और वज़ीरिस्तान की बगावत और पंजाब में नवाज़ शरीफ की उपस्थिति पाकिस्तानी चुनाव में नया रंग घोल रही है| दसवॉं, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश इफ्तिखार चौधरी तथा अन्य 60 जजों की बर्खास्तगी ने पाकिस्तान में जिस स्वत:स्फूर्त्त जन-आंदोलन को भड़काया है, वह इस चुनाव में पैदा होनेवाले नए रंगों को और गहरा करेगी|
ऊपर गिनाए गए कारणों के आधार पर माना जा सकता है कि यह चुनाव पाकिस्तान को लोकतंत्र् के नए युग में ले जाएगा| जो भी सरकार बनेगी, वह लोकपि्रय होगी और पाकिस्तान में चली आ रही अस्थिरता समाप्त होगी| ऐसा हो जाए तो क्या कहने? भारत का बहुत-सा सिरदर्द हल्का हो जाएगा| लेकिन यदि गंभीरता से विचार किया जाए तो ऐसा होने की संभावना बहुत कम है| इसके कई कारण हैं| एक ताज़ातरीन अमेरिकन सर्वेक्षण के अनुसार पीपल्स पार्टी और नवाज़ की मुस्लिम लीग को मिलाकर 72 प्रतिशत जनता का समर्थन हैं| याने इन दोनों राष्ट्रीय पार्टियों का 2/3 से ज्यादा बहुमत मिल सकता है| यदि ऐसा हुआ तो पाकिस्तान में अस्थिरता का पहला कारण तो यही होगा| दोनों पार्टियॉं पहले ही दिन मुशर्रफ पर महाभियोग चलाने की घोषणा करेंगी| यदि बेनज़ीर जिंदा होतीं तो वे शायद मुशर्रफ और उनकी पार्टी से कुछ सांठ-गांठ कर सकती थीं लेकिन आसिफ ज़रदारी और मुशर्रफ में 36 का आंकड़ा है| बेनज़ीर की हत्या में मुशर्रफ का हाथ भी देखा जा रहा है| इसीलिए संभावना यह है कि ज़रदारी और नवाज मिलकर सरकार बनाऍंगे और वे मुशर्रफ को हटाने की कोशिश करेंगे| क्या मुशर्रफ आसानी से हट जाऍंगे? वे कहते तो यही हैं| मुशर्रफ ने कहा है कि महाभियोग की नौबत ही नहीं आने देंगे| महाभियोग चले, उसके पहले ही वे इस्तीफा दे देंगे| इस्तीफा तो बाद की बाद है, वे सचमुच इन दोनों पार्टियों को 2/3 बहुमत के बिंदु तक ही नहीं पहुंचने देंगे| या तो चुनावों में बड़ी धांधली होगी, जैसे कि अभी ही 7 करोड़ 70 लाख मतदाताओं में से लगभग 2 करोड़ मतदाताओं के नाम उड़ा दिए गए हैं या फिर चुनाव पूरे होते ही इन पार्टियों में फूट डालने की कोशिश की जाएगी| पीपल्स पार्टी में फूट डालना ज्यादा आसान है, क्योंकि उसके कार्यकर्ता जरदारी को पसंद नहीं करते| उप-नेता मख्दूम अमीन फहीम को पहले प्रधानमंत्री का उम्मीदवार घोषित किया गया था, अब जरदारी खुद बनना चाहते हैं| पीपल्स पार्टी के अन्य बड़े नेता एतजाज अह़सन हैं, जिन्होंने सर्र्वोच्च न्यायाधीश चौधरी के आंदोलन का नेतृत्व किया है| वे भी जरदारी को पसंद नहीं करते| इसका फायदा मुशर्रफ उठाऍंगे| उधर नवाज़ शरीफ के भाई शाहबाज शरीफ पर भी मुशर्रफ डोरे डाल रहे हैं| नवाज़ की पार्टी को काबू करने के लिए मुशर्रफ साम, दाम, दंड, भेद सभी साधनों का इस्तेमाल कर रहे हैं| अगर ये सब साधन फेल हो गए तो आपातकाल की घोषणा का ब्रह्रमास्त्र् उनके हाथ में है ही| उसके लिए बहाने भी बहुत हैं| राजनीतिक दलों में ताल-मेल के अभाव के अलावा सबसे बड़ा बहाना आतंकवाद का है| वजीरिस्तान में पाकिस्तानी फौज तालिबान के हाथों रोज़ पिट रही है| सभी प्रांतों में लगभग रोज़ाना कोई न कोई विस्फोट हो रहा है| इसके अलावा अमेरिका-विरोधी लहर और चौधरी के प्रति सहानुभूति की लहर को मिलाकर ऐसा ज्वार खड़ा किया जा सकता है कि पाकिस्तान में आपात्काल अपने आप पैदा हो जाए| पाकिस्तान में आजकल गेहूं, गैस और बिजली के भाव आसमान छू रहे हैं| आम आदमी बहुत बौखलाया हुआ है| नवाज़ शरीफ और ज़रदारी भ्रष्टाचार के कारण काफी बदनाम हुए हैं लेकिन चुनाव के बाद अगर वे आंदोलन की राह पर उतर आए तो मुशर्रफ का राष्ट्रपति बने रहना कठिन हो जाएगा| मुशर्रफ का राष्ट्रपति पद सुरक्षित रहेगा या नहीं, यह फौज पर भी निर्भर है| फौज का प्रभा-मंडल काफी फीका पड़ गया है और जनरल अशफ़ाक कियानी ने फौजियों को राजनीति से दूर रहने की सलाह भी दी है लेकिन वे अमेरिका की राय को दरकिनार नहीं कर सकते| मुशर्रफ अब भी अमेरिका के चहेते हैं| ऐसी स्थिति में मुशर्रफ को टिकाए रखने के लिए अगर खून की नदियॉं भी बहेंगी तो अमेरिका कुछ नहीं कहेगा| मुशर्रफ की लोकपि्रयता एक दम पैंदे में बैठती चली जा रही है| नए चुनाव के बाद उन्हें नए गृहयुद्घ की तैयारी करनी होगी| यदि सचमुच पाकिस्तान में गुहयुद्घ छिड़ गया तो उसके दो परिणाम भारत को भुगतने पड़ सकते हैं| जनता का ध्यान बंटाने के लिए भारत पर हमला हो सकता है या फिर लाखों शरणार्थियों से भारत भर जाएगा| दोनों स्थितियां भयावह हैं| यदि पाकिस्तान में उथल-पुथल नहीं मची और जनरल मुशर्रफ अपनी कुर्सी में डटे रहे तो भारत और पाकिस्तान के संबंध उसी गति से चलते रहेंगे, जैसे कि आजकल चल रहे हैं| यही कारण है कि भारत हाथ पर हाथ धरे बैठा है| वह न तो लोकतांत्रिक शक्तियों के पक्ष में बोल रहा है और न ही मुशर्रफ की तारीफ में कसीदे काढ़ रहा है| इस राजनयिक निष्कि्रयता का आनंद वह अभी एक हफ्ते तक और उठा सकता है|
पाकिस्तान की उलझनें अभी और बढ़ेगी
दैनिक भास्कर, 15 फरवरी 2008 : अगले सप्ताह होने वाले चुनाव पाकिस्तान को किधर ले जाऍंगे? वे पाकिस्तान की पहली को सुलझाऍंगे या उलझाऍंगे? अगर पाकिस्तान की उलझनें बढ़ गई तो भारत पर उनका क्या असर होगा? भारत अभी से क्या-क्या तैयारी करे, ये सब सवाल आज हमारी नीति-निर्माताओं के मन को मथ रहे हैं| पाकिस्तान के पिछले चुनावों के मुकाबले यह चुनाव ऊपरी तौर पर अधिक लोकतांत्रिक दिखाई पड़ रहा है| इसके कई कारण हैं| पहला तो यह कि जनरल मुशर्रफ ने अपनी फौजी वर्दी उतार दी है| पिछले चुनाव में वे राष्ट्रपति और सेनापति, दोनों ही थे| अब वे सिर्फ राष्ट्रपति हैं| दूसरा, पिछले चुनाव में बेनज़ीर भुट्टो और नवाज़ शरीफ दोनों ही देश के बाहर थे| इस बार दोनों को अंदर आने देना पड़ा| अब बेनज़ीर न सही, आसिफ जरदारी और नवाज़ अपना-अपना चुनाव-अभियान जोरों से चला रहे हैं| तीसरा, पिछले चुनाव में मुशर्रफ ने पीपल्स पार्टी और मुस्लिम लीग (नवाज) में अंदरूनी फूट डाल दी थी| इस बार दोनों पार्टियां अंदर से एकजुट हैं और चुनाव मैदान में डटी हुई हैं| चौथा, पिछले चुनाव में क़ायदे-आजम जिन्ना के नाम का इस्तेमाल करके मुशर्रफ ने मुस्लिम लीग (क़ा) नामक नई पार्टी खड़ी कर दी थी, जिसे सबसे ज्यादा सीटें मिली थीं| इस बार इस पार्टी को ‘किंग्स पार्टी’ नहीं, किसी भी अन्य पार्टी की तरह चुनाव लड़ना पड़ रहा है| पॉंचवॉं, शौकत अजीज़ मंत्रिमंडल की बजाय अब एक अंतरिम सरकार की देखरेख में चुनाव हो रहे हैं| छठा, मुशर्रफ ने अन्तरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों को चुनाव पर निगरानी रखने का खुला आमंत्र्ण दिया है| सातवॉं, पाकिस्तान के अखबार और टीवी चैनलों पर से लगभग सभी प्रतिबंध उठा लिए गए हैं| आठवॉं, इस बार अमेरिका किसी भी पार्टी को सत्तारूढ़ करवाने के लिए बेताब नहीं है, खास तौर से बेनज़ीर की हत्या के बाद ! नौवॉं, बेनज़ीर की हत्या के कारण पाकिस्तान का माहौल इतना गरमा गया है कि लोग घर में नहीं बैठेंगे| मतदान जमकर होगा| बलूचिस्तान में अकबर बुगती की हत्या, स्वात और वज़ीरिस्तान की बगावत और पंजाब में नवाज़ शरीफ की उपस्थिति पाकिस्तानी चुनाव में नया रंग घोल रही है| दसवॉं, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश इफ्तिखार चौधरी तथा अन्य 60 जजों की बर्खास्तगी ने पाकिस्तान में जिस स्वत:स्फूर्त्त जन-आंदोलन को भड़काया है, वह इस चुनाव में पैदा होनेवाले नए रंगों को और गहरा करेगी|
ऊपर गिनाए गए कारणों के आधार पर माना जा सकता है कि यह चुनाव पाकिस्तान को लोकतंत्र् के नए युग में ले जाएगा| जो भी सरकार बनेगी, वह लोकपि्रय होगी और पाकिस्तान में चली आ रही अस्थिरता समाप्त होगी| ऐसा हो जाए तो क्या कहने? भारत का बहुत-सा सिरदर्द हल्का हो जाएगा| लेकिन यदि गंभीरता से विचार किया जाए तो ऐसा होने की संभावना बहुत कम है| इसके कई कारण हैं| एक ताज़ातरीन अमेरिकन सर्वेक्षण के अनुसार पीपल्स पार्टी और नवाज़ की मुस्लिम लीग को मिलाकर 72 प्रतिशत जनता का समर्थन हैं| याने इन दोनों राष्ट्रीय पार्टियों का 2/3 से ज्यादा बहुमत मिल सकता है| यदि ऐसा हुआ तो पाकिस्तान में अस्थिरता का पहला कारण तो यही होगा| दोनों पार्टियॉं पहले ही दिन मुशर्रफ पर महाभियोग चलाने की घोषणा करेंगी| यदि बेनज़ीर जिंदा होतीं तो वे शायद मुशर्रफ और उनकी पार्टी से कुछ सांठ-गांठ कर सकती थीं लेकिन आसिफ ज़रदारी और मुशर्रफ में 36 का आंकड़ा है| बेनज़ीर की हत्या में मुशर्रफ का हाथ भी देखा जा रहा है| इसीलिए संभावना यह है कि ज़रदारी और नवाज मिलकर सरकार बनाऍंगे और वे मुशर्रफ को हटाने की कोशिश करेंगे|
क्या मुशर्रफ आसानी से हट जाऍंगे? वे कहते तो यही हैं| मुशर्रफ ने कहा है कि महाभियोग की नौबत ही नहीं आने देंगे| महाभियोग चले, उसके पहले ही वे इस्तीफा दे देंगे| इस्तीफा तो बाद की बाद है, वे सचमुच इन दोनों पार्टियों को 2/3 बहुमत के बिंदु तक ही नहीं पहुंचने देंगे| या तो चुनावों में बड़ी धांधली होगी, जैसे कि अभी ही 7 करोड़ 70 लाख मतदाताओं में से लगभग 2 करोड़ मतदाताओं के नाम उड़ा दिए गए हैं या फिर चुनाव पूरे होते ही इन पार्टियों में फूट डालने की कोशिश की जाएगी| पीपल्स पार्टी में फूट डालना ज्यादा आसान है, क्योंकि उसके कार्यकर्ता जरदारी को पसंद नहीं करते| उप-नेता मख्दूम अमीन फहीम को पहले प्रधानमंत्री का उम्मीदवार घोषित किया गया था, अब जरदारी खुद बनना चाहते हैं| पीपल्स पार्टी के अन्य बड़े नेता एतजाज अह़सन हैं, जिन्होंने सर्र्वोच्च न्यायाधीश चौधरी के आंदोलन का नेतृत्व किया है| वे भी जरदारी को पसंद नहीं करते| इसका फायदा मुशर्रफ उठाऍंगे| उधर नवाज़ शरीफ के भाई शाहबाज शरीफ पर भी मुशर्रफ डोरे डाल रहे हैं| नवाज़ की पार्टी को काबू करने के लिए मुशर्रफ साम, दाम, दंड, भेद सभी साधनों का इस्तेमाल कर रहे हैं| अगर ये सब साधन फेल हो गए तो आपातकाल की घोषणा का ब्रह्रमास्त्र् उनके हाथ में है ही| उसके लिए बहाने भी बहुत हैं| राजनीतिक दलों में ताल-मेल के अभाव के अलावा सबसे बड़ा बहाना आतंकवाद का है| वजीरिस्तान में पाकिस्तानी फौज तालिबान के हाथों रोज़ पिट रही है| सभी प्रांतों में लगभग रोज़ाना कोई न कोई विस्फोट हो रहा है| इसके अलावा अमेरिका-विरोधी लहर और चौधरी के प्रति सहानुभूति की लहर को मिलाकर ऐसा ज्वार खड़ा किया जा सकता है कि पाकिस्तान में आपात्काल अपने आप पैदा हो जाए| पाकिस्तान में आजकल गेहूं, गैस और बिजली के भाव आसमान छू रहे हैं| आम आदमी बहुत बौखलाया हुआ है| नवाज़ शरीफ और ज़रदारी भ्रष्टाचार के कारण काफी बदनाम हुए हैं लेकिन चुनाव के बाद अगर वे आंदोलन की राह पर उतर आए तो मुशर्रफ का राष्ट्रपति बने रहना कठिन हो जाएगा|
मुशर्रफ का राष्ट्रपति पद सुरक्षित रहेगा या नहीं, यह फौज पर भी निर्भर है| फौज का प्रभा-मंडल काफी फीका पड़ गया है और जनरल अशफ़ाक कियानी ने फौजियों को राजनीति से दूर रहने की सलाह भी दी है लेकिन वे अमेरिका की राय को दरकिनार नहीं कर सकते| मुशर्रफ अब भी अमेरिका के चहेते हैं| ऐसी स्थिति में मुशर्रफ को टिकाए रखने के लिए अगर खून की नदियॉं भी बहेंगी तो अमेरिका कुछ नहीं कहेगा| मुशर्रफ की लोकपि्रयता एक दम पैंदे में बैठती चली जा रही है| नए चुनाव के बाद उन्हें नए गृहयुद्घ की तैयारी करनी होगी| यदि सचमुच पाकिस्तान में गुहयुद्घ छिड़ गया तो उसके दो परिणाम भारत को भुगतने पड़ सकते हैं| जनता का ध्यान बंटाने के लिए भारत पर हमला हो सकता है या फिर लाखों शरणार्थियों से भारत भर जाएगा| दोनों स्थितियां भयावह हैं| यदि पाकिस्तान में उथल-पुथल नहीं मची और जनरल मुशर्रफ अपनी कुर्सी में डटे रहे तो भारत और पाकिस्तान के संबंध उसी गति से चलते रहेंगे, जैसे कि आजकल चल रहे हैं| यही कारण है कि भारत हाथ पर हाथ धरे बैठा है| वह न तो लोकतांत्रिक शक्तियों के पक्ष में बोल रहा है और न ही मुशर्रफ की तारीफ में कसीदे काढ़ रहा है| इस राजनयिक निष्कि्रयता का आनंद वह अभी एक हफ्ते तक और उठा सकता है|
Leave a Reply