नया इंडिया, 19 अगस्त 2013 : हमारे पांच जवानों की हत्या को लेकर दो-तीन पाकिस्तानी टीवी चैनलों ने मुझे इंटरव्यू किया तो पता चला कि पाकिस्तान का पारा हमसे ज्यादा चढ़ा हुआ है। अलग-अलग चैनलों पर मेरे साथ फौज के कुछ सेवा-निवृत्त आला अफसर, कुछ प्रसिद्ध पत्रकार और कुछ प्रतिष्ठित विद्वान भी थे। एकाध को छोड़कर सभी लोग भारत पर टूटे पड़ रहे थे। उनकी मिली-जुली बात यह थी कि भारत इस वक्त पाकिस्तान पर हमला करने का कोई न कोई बहाना खोज रहा है!
उनके अनुसार पहले भारत ने दो जवानों के सिर काटने का इल्जाम पाकिस्तान के सिर मढ़ा और अब वह पांच जवानों की हत्या के लिए उसे दोषी ठहरा रहा है। पाकिस्तानी वार्ताकारों का मानना है कि जवानों को भारतीय फौज ने खुद ही मारकर युद्ध का माहौल खड़ा कर दिया है। उनका कहना है कि भारत किसी साजिश के तहत इस तरह के आरोप लगाता है। पाकिस्तान में आतंकवाद के भयंकर फैलाव का कारण भी भारत ही है। भारत की मदद के बिना बलूच और पख्तून लोग बगावती तेवर कैसे धारण कर सकते हैं? भारत इन आतंकवादियों को पालता-पोसता है और भूखे कुत्तों की तरह पंजाब और कराची पर दौड़ा देता है। वरना ये पाकिस्तानी लोग मुसलमान होकर मुसलमानों के खून के प्यासे क्यों होंगे?
इनके अनुसार भारत को पता है कि इन दिनों पाकिस्तान की हालत खस्ता है। आर्थिक बदहाली तो है ही, आतंकवाद ने सरकार, फौज और पुलिस की इज्जत भी पैंदे में बिठा दी है। फौज या तो अफगान-सीमा पर तैनात है या आतंकवादियों का मुकाबला कर रही है। यही मौका है जबकि भारत 1971 दोहरा सकता है। वह दुबारा पाकिस्तान के टुकड़े करना चाहता है। उसने पाकिस्तान के निर्माण को अभी तक तस्लीम (स्वीकार) नहीं किया है। यदि भारत कोई भी बहाना बनाकर पाकिस्तान पर हमला करेगा तो पाकिस्तान भारत को मुंहतोड़ जवाब देगा। वह घुटने नहीं टेकेगा। वह एटम बम चला देगा। पाकिस्तानी वार्ताकारों ने परमाणु-युद्ध पर इतना जोर दिया कि मुझे उन्हें डपटना पड़ा। एक वातार्कार ने कहा कि हिंदुओं ने भूतकाल में कभी भी मुसलमानों के शासन को स्वीकार नहीं किया और वे अब पाकिस्तान को कभी नहीं मानेंगे।
मैंने उनसे कहा कि भारत में इस्लामी शासन कभी रहा ही नहीं। यहां तो तुर्क, ईरानी, मुगल, अफगान और अरब शासक रहे। उन्होंने इस्लामी शासक होने का कभी दावा किया ही नहीं। कई बादशाह इस्लाम के सिद्धांतों का सरासर उल्लंघन करते थे। उन्हें अपनी हुकूमत से मतलब था, इस्लाम से नहीं। हां अगर हुकूमत के लिए इस्लाम का इस्तेमाल हो सकता था तो वे जरूर कर लेते थे। इसलिए अब हिंदू-मुसलमान के चश्मे को उतारें और जिन मुद्दों को बातचीत से हल कर सकते हैं, उन पर युद्ध के ढोल न पीटें। मैंने दोनों देशों की संसदों द्वारा एक-दूसरे के विरुद्ध पारित प्रस्तावों को भी अनावश्यक बताया। दोनों देशों के मीडिया से भी अनुरोध किया कि वे सनसनी फैलाने से बाज आएं। दुख यही है कि दोनों देशों का नेतृत्व इस मुद्दे पर काफी कमजोर सिद्ध हुआ है।
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